सुपरटेक ईको विलेज, रजिस्ट्री को लेकर यहां फंसा पेंच

दिल्ली NCR

ग्रेटर नोएडा वेस्ट, नोएडा एक्सटेंशन की सोसायटी सुपरटेक ईकोविलेज-1-2-3 के फ्लैट खरीदार रजिस्ट्री ना होने से बेहद परेशान हैं। एक तो बिल्डर का दिवालिया होना दूसरा 500 करोड़ के चक्कर में 11 हजार फ्लैट खरीदारों  अपने फ्लैट की रजिस्ट्री कराने के लिए भटक रहे हैं।

ग्रेटर नोएडा प्राधिकरण का करीब 500 करोड़ रुपये बकाया है जिसकी वजह से रजिस्ट्री रुकी हुई है।   प्राधिकरण, बिल्डर और खरीददारों के बीच रजिस्ट्री को लेकर कई बार बैठक हुई, लेकिन नतीजा सिफर रहा।

ग्रेटर नोएडा वेस्ट में सुपरटेक ने इको विलेज-1, 2 और 3  के खरीददारों ने बिल्डर को पैसा तो दे दिया, लेकिन उनकी रजिस्ट्री नहीं हो पा रही है। फ्लैट खरीददार रजिस्ट्री के लिए काफी दिनों से धरना प्रदर्शन भी कर रहे हैं। बावजूद इसके अभी तक समस्या का हल नहीं निकला है।

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बिल्डर व प्राधिकरण के अलग-अलग दावे

सुपरटेक बिल्डर की ओर से बताया गया है कि उसे प्राधिकरण का 80 प्रतिशत पैसा जमा कर दिया है। बिल्डर का कहना है कि उसे करीब 120 करोड़ रुपये देना है। जबकि प्राधिकरण के अनुसार यह रकम कहीं अधिक है। प्राधिकरण की ओर से बताया गया कि तीनों परियोजनाओं में करीब 500 करोड़ रुपये बकाया है। दरअसल सुप्रीम कोर्ट में ब्याज दर को लेकर मामला लंबित है। बिल्डरों को एमसीएलआर की दर से ब्याज देने का आदेश हुआ था। इस फैसले की समीक्षा के लिए प्राधिकरण अदालत गए हैं। यह फैसला आने के बाद ही इस पर आगे की कार्रवाई हो सकेगी।

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क्या कहते हैं फ्लैट ऑनर

इको विलेज-1 के फ्लैट खरीदार राजीव बताते हैं कि बताते हैं कि 2018 में फ्लैट का पूरा पैसा बिल्डर को दे दिया था। अभी तक रजिस्ट्री नहीं हो पाई है। सोसाइटी में मूलभूत सुविधाओं की कमी है। हर जगह शिकायत कर चुके हैं, लेकिन अब तक न्याय नहीं मिला है। अब अदालत में केस करेंगे। मृत्युंजय झा, इको विलेज-3 ने बताया कि  2017 में फ्लैट का पूरा पैसा जमा कर दिया था। इसके बाद से रजिस्ट्री के इंतजार में बैठे हैं। फ्लैट पर कब्जा दे दिया, लेकिन सभी सुविधाएं नहीं मिल पा रही हैं। रजिस्ट्री के लिए आंदोलन कर रहे हैं। 

हर जगह बड़ा खेल

बिल्डर परियोजनाओं में एफएआर का बड़ा खेल है। पहले कम एफएआर पर परियोजना मंजूर होती है। बाद में एफएआर बढ़वा लिया जाता है। बिना एफएआर बढ़वाए भी बिल्डर फ्लैट बना देते हैं। ग्रेटर नोएडा में सिजार नाम से परियोजना है। इसमें करीब 900 फ्लैट बनाने की मंजूरी मिली थी। जबकि यहां पर इससे अधिक फ्लैट बना दिए गए। अदालत के आदेश के बाद यह मामला सुलझाया गया।
यमुना प्राधिकरण क्षेत्र में सुपरटेक की अपकंट्री परियोजना में तो अलग तरह का मामला निकला। यहां एफएआर के लिए शासन का फर्जी आदेश लगाया गया। इस मामले की जांच हुई तो मुकदमा दर्ज किया गया।

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