डॉक्टर राधाकृष्णन ( Dr. Radhakrishnan) की जीवनी

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डॉक्टर राधाकृष्णन ( Dr. Radhakrishnan) भारत के पहले उपराष्ट्रपति ( 1962 – 1967) और दूसरे राष्ट्रपति थे। मद्रास के प्रेसीडेंसी कॉलेज से अध्यापन के काम को शुरू करने वाले राधाकृष्णन आगे चलकर मैसूर विश्वविद्यालय में प्रोफेसर बनें। इसके बाद देश के कई विश्वविद्यालयों में पढ़ाई का काम किया।

सन 1939 से लेकर के 1948 तक डॉक्टर राधाकृष्णन बनारस हिंदू विश्वविद्यालय यानी की बीएचयू के कुलपति भी रहे हैं। इनके सम्मान में उनके जन्मदिन को भारत में शिक्षक दिवस ( Teachers day) के रूप में मनाया जाता है।

जानिए डॉक्टर राधाकृष्णन ( RadhaKrishnan) के आरंभिक जीवन के बारे में

डॉक्टर राधाकृष्णन (Doctor RadhaKrishnan) को बचपन से ही किताबें पढ़ने का शौख था। इनका जन्म तमिलनाडु के तिरूतनी गांव में 5 सितंबर 1888 को हुआ था। इन्हें बचपन से ही पढ़ने लिखने बहुत ही ज्यादा शौक था। डॉक्टर राधाकृष्णन (Doctor RadhaKrishnan) की प्रारंभिक शिक्षा क्रिश्चियन मिशनरी संस्था लूथर्न मिशन स्कूल में हुई और आगे की पढ़ाई मद्रास क्रिश्चियन कॉलेज में पूरी हुई।

 सन 1902 में डॉक्टर राधाकृष्णन (Doctor RadhaKrishnan) ने मैट्रिक स्तर की परीक्षा प्रथम श्रेणी से पास की ओर फिर छात्रवृति भी प्राप्त की। Doctor RadhaKrishnan ने 1916 में दर्शन शास्त्र में M.A किया और मद्रास रेजीडेंसी कॉलेज में इसी विषय के सहायक प्राध्यापक के पद को संभाला।

1903 में केवल 16 वर्ष की उम्र में उनकी शादी हो गई। तब उनकी पत्नी केवल 10 वर्ष की थी। सन 1908 में RadhaKrishnan जी को संतान के रूप में पुत्री की प्राप्ति हुई।

कैसा रहा डॉक्टर राधाकृष्णन (Doctor RadhaKrishnan) का प्रारंभिक जीवन

भारत की आजादी के बाद यूनिस्को में उन्होंने देश का प्रतिनिधत्व किया। 1949 से लेकर 1952 तक डॉक्टर राधाकृष्णन सोवियत संघ में भारत के राजदूत रहे। साल 1952 में उन्हें देश का पहला उपराष्ट्रपति बनाया गया। सन 1954 में उन्हें भारत रत्न देकर सम्मानित किया गया। इसके 1962 में उन्हें देश का दूसरा राष्ट्रपति चुना गया। डॉक्टर राधाकृष्णन ( Dr. Radhakrishnan) का निधन 17 अप्रैल 1975 को एक लंबी बीमारी के चलते हो गया था।

डॉक्टर राधाकृष्णन ( Dr. Radhakrishnan) को 1938 में ब्रिटिश अकादमी के सभासद के रूप में नियुक्ति मिली। वहीं, सन 1954 में उन्हें भारत रत्न के जैसा सम्मान प्राप्त हुआ। सन 1961 में जर्मन बुक ट्रेड का शांति पुरस्कार भी इन्हें मिला। 1962 भारतीय शिक्षक दिन संस्था, हर वर्ष 5 सितंबर को शिक्षक दिवस के रूप में मानती है।