महिला आरक्षण बिल क्यों जरूरी..पूरी A-B-C-D समझिए

उत्तरप्रदेश दिल्ली दिल्ली NCR

उद्भव त्रिपाठी, ख़बरीमीडिया
Women Reservation Bill: देश के नए संसद भवन के पहले दिन ही संसद के विशेष सदन में महिला आरक्षण बिल पेश किया गया। इस बिल के बहाने महिलाओं के मुद्दों को राजनीति के केंद्र में लाने की कोशिश की जा रही है। महिलाओं को चुनाव में साइलेंट फैक्टर कहा जाता है, जिस पर सरकार फोकस करके अपने पक्ष में लाने की कोशिश में जुटी है। महिला आरक्षण बिल के बहाने देश में एक बार फिर महिला मुद्दों की राजनीति केंद्र में आएगी। आइए जानते हैं कि क्या है ये महिला आरक्षण विधेयक

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क्या है महिला आरक्षण विधेयक
महिला आरक्षण विधेयक के अनुसार, संसद और राज्यों की विधानसभाओं में महिलाओं के लिए 33 फीसदी सीटों को आरक्षित हो जाएंगी। इस बिल के मुताबिक, अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति के लिए आरक्षित सीटों में से एक-तिहाई सीटें एससी-एसटी समुदाय से आने वाली महिलाओं के लिए आरक्षित हो जाएंगी। इन आरक्षित सीटों को राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों में अलग-अलग क्षेत्रों में रोटेशन प्रणाली से आवंटित किया जा सकता है। लैंगिक समानता और समावेशी सरकार की ओर उठाए जा रहे जरूरी कदमों के बावजूद महिला आरक्षण विधेयक लंबे समय से संसद में लंबित है। साल 2010 में ही इस बिल को राज्यसभा से पारित किया जा चुका था, लेकिन अब तक लोकसभा में पेश नहीं किया जा सका। महिला आरक्षण बिल के अनुसार, महिलाओं के लिए सीटों का आरक्षण 15 साल के लिए ही होगा।
27 सालों से अधर में लटका है बिल
साल 1996 में तत्कालीन प्रधानमंत्री एचडी देवेगौड़ा ने पहली बार सदन में महिला आरक्षण बिल पेश किया था, लेकिन भारी विरोध के कारण पास नहीं हो सका। इसके बाद अलग-अलग सरकारों में समय-समय पर बिल सदन में पेश किया गया, लेकिन भारी विरोध के चलते अभी तक इसे मंजूरी नहीं मिल पाई। बिल का सबसे बड़ा विरोध 1998 और 1999 में अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार में देखने को मिला था। बिल को लेकर सदन में हाई-वॉल्टेज ड्रामा हुआ और सत्ता पक्ष और विपक्ष के बीच सिर्फ जोरदार बहसबाजी नहीं बल्कि, कानून मंत्री के हाथ से बिल छीनकर उसकी कॉपियां सदन में फाड़ दी गई थीं। हालांकि, 2008 में यूपीए सरकार में बिल को राज्यसभा में मंजूरी मिल गई, लेकिन लोकसभा में पेश न हो पाने के कारण बिल 27 सालों से अधर में लटका है।

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वोटिंग में बढ़ती भागीदरी बना कारण
महिलाओं की बढ़ते प्रभाव के पीछे एक बड़ा कारण बना उनकी वोटिंग में बढ़ती भागीदरी है। बिहार और उत्तर प्रदेश जैसे राज्यों में पिछले दो विधानसभा चुनाव में महिलाओं ने पुरुषों से अधिक वोट डाले। यह कई जगहों पर ट्रेंड सेटर हो गया। लोकसभा से लेकर विधानसभा चुनाव तक सभी जगह इनकी वोटिंग में 10 से 15 तक भारी इजाफा हुआ। खासकर ग्रामीण क्षेत्रों में तो उनकी संख्या और भी बढ़ी। पूरे देश में महिला वोटरों की तादाद लगभग 42 करोड़ है। मतलब कुल वोटों का लगभग 48 फीसदी।
समय पर लागू करना होगा बड़ी चुनौती
महिला आरक्षण बिल कई वर्षों से सियासी चर्चाओं में रहा लेकिन कभी हकीकत नहीं बना। अभी के हालात के अनुसार संसद के दोनों सदनों से इसके पास होने की संभावना तो पूरी दिखती है लेकिन संसद से पास होने के बाद भी इसे अमली जामे तक पहुंचने में कई बाधा से गुजरना होगा। सबसे बड़ी चुनौती जनगणना और परिसीमन की प्रक्रिया को तय समय पर पूरा करवाना होगा। वह अभी के हिसाब से अगर बहुत जल्दी हुआ तब भी 2027 से पूरा होते नहीं दिखता है। साथ ही परिसीमन पर उत्तर बनाम दक्षिण का विवाद अभी से शुरू है जो उसके कानून विवाद में फंसने की पूरी आशंका दिखती है। तो क्या केंद्र सरकार इसमें परिसीमन की बाध्यता हटाकर 2024 में भी लागू करेगी या फिर 2024 के बाद तुरंत जल्द से जल्द इसका फ्रेमवर्क बनाएगी यह देखना होगा। हालांकि, आम चुनाव से चंद महीने पहले नरेंद्र मोदी की अगुवाई में बीजेपी इसका पूरा सियायी लाभ लेने की पूरी कोशिश करेगी।
महिला आरक्षण बिल पास हुआ तो
अगर महिला आरक्षण बिल पास हो जाता है तो लोकसभा की कुल 543 सीटों में से 179 महिलाओं के लिए आरक्षित हो जाएंगी। वहीं, विभिन्न विधानसभाओं की 4,123 सीटों में से 1,361 महिलाओं के लिए आरक्षित हो जाएंगी।

महिलाओं की बढ़ेगी भागीदारी
महिला आरक्षण विधेयक में दिल्ली विधानसभा में भी महिलाओं के प्रतिनिधित्व को बढ़ाने का प्रावधान है। इसके तहत दिल्ली विधानसभा में भी महिलाओं की एक तिहाई भागीदारी अनिवार्य हो जाएगी। इससे राष्ट्रीय राजधानी में महिलाओं को सक्रिय राजनीति में आगे बढ़ने में गति मिलेगी। इस कानून के बाद लोकसभा में कम से कम 181 महिला सांसद चुनकर आएंगी, फिलहाल सदन में महिला सदस्यों की संख्या 82 है।

सभी विधानसभाओं में भी लागू होगा प्रावधान
लोकसभा और दिल्ली विधानसभा की तर्ज पर ही देश के सभी राज्यों के विधानसभाओं में भी ये बदलाव लागू होगा। जैसे लोकसभा में महिलाओं के लिए 33 फीसदी सीटें आरक्षित हो जाएंगी। ठीक उसी तरह से सभी राज्यों के विधानसभाओं में महिलाओं की 33 प्रतिशत सीटें अनिवार्य हो जाएगी। इसके तहत अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति के लिए आवंटित सीटों में भी महिलाओं के लिए 33 प्रतिशत सीटें आरक्षित हो जाएंगी।

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