तेलंगाना के CM रेवंत रेड्डी क्यों हैं सोनिया के ख़ास..पढ़िए

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Assembly Elections : देश में हुए तीन राज्यों के विधानसभा चुनाव (Assembly Elections) का परिणाम आने के बाद कांग्रेस ने तेलंगाना में नयी सरकार का गठन कर दिया है। गुरुवार को कांग्रेस पार्टी (Congress Party) के नेता रेवंत रेड्डी (Revanth Reddy) ने तेलंगाना के सीएम पद की शपथ ली है। हैदराबाद के एलबी स्टेडियम में आयोजित एक भव्य समारोह में रेवंत रेड्डी ने शपथ ली। सीएम के साथ ही 11 अन्य मंत्रियों ने भी शपथ लिया है। सीएम (CM) पद की दौर में शामिल मल्लू भट्टी विक्रमार्क ने डिप्टी सीएम के रूप में शपथ ली।
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कार्यक्रम में वरिष्ठ कांग्रेस नेता सोनिया गांधी, राहुल गांधी और प्रियंका गांधी वाड्रा, पार्टी प्रमुख मल्लिकार्जुन खरगे और विभिन्न राज्य इकाइयों के प्रमुखों ने हिस्सा लिया। कांग्रेस पार्टी की तरफ से गद्दाम प्रसाद कुमार के नाम को विधानसभा अध्यक्ष के तौर पर नामित किया गया है।

तेलंगाना में कांग्रेस की इस धमाकेदार जीत के नायक रेवंत रेड्डी बनकर उभरे हैं। उनकी बात इसलिए भी हो रही है क्योंकि उनका स्वभाव संघर्ष का है, उनकी छवि तेलंगाना में एक जननेता की है। यही कारण है कि जब वो टीडीपी के साथ थे तब भी वहां की जनता का उन्हें प्यार मिला और जब वो कांग्रेस के साथ हैं तब भी वो कमाल कर रहे हैं। यही कारण है कि सीएम रेवंत रेड्डी सोनिया गांधी के सबसे खास हैं।

जानिए किसने और लिया शपथ

मल्लू भट्टी विक्रमार्क
मल्लू भट्टी विक्रमार्क मुख्यमंत्री के रेस में भी शामिल थे। विक्रमार्क कांग्रेस के बड़े नेता में गिने जाते हैं। वो विधानसभा में विपक्ष के नेता थे। अनुसूचित जाति के माला समुदाया से आने वाले विक्रमार्क ने अपने खम्मम जिले में 12 में से 11 सीटें कांग्रेस पार्टी को जीत दिलाई है। पार्टी के लिए उन्होंने 4 महीने तक 1370 किमी की पदयात्रा की थी। वो साल 2009 से लगातार चुनाव जीत रहे हैं।

उत्तम कुमार रेड्डी
उत्तम कुमार रेड्डी को कांग्रेस के खास नेता में गिना जाता है। पूर्व में वो वायु सेना पायलट रह चुके हैं। अब तक वो सात बार चुनाव जीत चुके हैं। उत्तम कुमार रेड्डी 2021 तक तेलंगाना कांग्रेस के अध्यक्ष भी रह चुके हैं। चुनाव से पहले वह तेलंगाना के नलगोंडा से पार्टी के लोकसभा सांसद थे।

श्रीधर बाबू
कांग्रेस के एक अन्य वफादार, श्रीधर बाबू पार्टी की घोषणापत्र समिति के अध्यक्ष थे और इसलिए, वह ऐसे व्यक्ति हैं जो मतदाताओं से किए गए वादों को समझते हैं। ब्राह्मण समुदाय से आने वाले श्रीधर बाबू अविभाजित आंध्र प्रदेश सरकार (जब कांग्रेस सत्ता में थी) में भी विधायक थे और नागरिक आपूर्ति और उपभोक्ता मामलों के मंत्री भी रह चुके हैं।

पोन्नम प्रभाकर
अपने छात्र जीवन से ही पोन्नम प्रभाकर राजनीति में सक्रिय रहे हैं। प्रभाकर करीमनगर संसदीय सीट से सांसद भी रहे हैं। उन्होंने 2009 में यह सीट जीती थी। जो पहले तेलंगाना के निवर्तमान मुख्यमंत्री के.चंद्रशेखर राव के पास थी। साल 2014 में बीआरएस के बीवी कुमार और 2019 में भाजपा के बंदी संजय कुमार से वो चुनाव हार गए थे। पोन्नम प्रभाकर पिछड़े वर्ग के गौड़ समुदाय से आते हैं। इस बार के चुनाव में वो हुस्नाबाद सीट से चुनाव जीते हैं।

कोमाटिरेड्डी वेंकट रेड्डी
कोमाटिरेड्डी वेंकट रेड्डी भी कांग्रेस के बड़े नेता में आते हैं। पार्टी में तीन दशकों से अधिक समय से वो जुड़े हुए हैं। 2019 के लोकसभा चुनाव में भी उन्हें जीत मिली थी। उनके गृहजिले के 12 में से 11 सीटों पर जीत मिली है।

दामोदर राजा नरसिम्हा
(अविभाजित) आंध्र प्रदेश के पूर्व उप मुख्यमंत्री, नरसिम्हा उच्च शिक्षा और कृषि मंत्री भी रहे हैं। नरसिम्हा दलित समाज के बड़े नेता हैं। इस चुनाव में उन्हें एंडोले विधानसभा सीट से जीत मिली है। यह सीट उन्होंने बीआरएस उम्मीदवार सी छीन लिया है।

पोंगुलेटी श्रीनिवास रेड्डी
साल 2014 में आंध्र प्रदेश की सत्तारूढ़ वाईएसआर कांग्रेस पार्टी के टिकट पर खम्मम लोकसभा सीट चुनाव जीते थे। वह 2018 में बीआरएस और इस चुनाव से ठीक पहले कांग्रेस में शामिल हो गए।

दाना अनसूया
दाना अनसूया, सीथक्का के नाम से लोकप्रिय हैं, अनसूया मुलुगु जिले के एक आदिवासी समुदाय की सदस्य हैं और आने वाले मुख्यमंत्री रेवंत रेड्डी उन्हें प्यार से अपनी “बहन” कहते हैं। खास बात यह है कि अनसूया राजनीति में आने से पहले एक नक्सली समूह की सदस्य थीं। वह एक युवा लड़की के रूप में शामिल हुईं लेकिन मोहभंग होने के बाद उन्होंने नक्सल संगठन को छोड़ दिया। उन्हें मुलुग विधानसभा सीट से जीत मिली है।

थुम्मला नागेश्वर राव
पहले आंध्र प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री एन चंद्रबाउ नायडू की टीडीपी के वो सदस्य थे, राव 2014 में प्रतिद्वंद्वी बीआरएस में शामिल होने से पहले उस पार्टी से तीन बार विधायक बने थे। जहां उन्होंने सड़क और भवन मंत्री के रूप में कार्य किया था। इस चुनाव से पहले उन्होंने बीआरएस छोड़ दिया और कांग्रेस में शामिल हो गए।

कोंडा सुरेखा
कोंडा सुरेखा एक अनुभवी राजनेता मानी जाती हैं। सुरेखा ने वारंगल (पूर्व) विधानसभा सीट से चुनाव जीता है। उन्होंने पहली बार 2014 के चुनाव में जीता था। प्रभावशाली रूप से, वह आठ चुनावी मुकाबलों में केवल दो बार हारी हैं।

जुपल्ली कृष्णा राव
साल 1999 से लगातार पांच बार कोल्लापुर विधानसभा सीट के लिए चुने जाने से पहले उन्होंने एक बैंक कर्मचारी के रूप में शुरुआत की थी। पहली बार वो निर्दलीय उम्मीदवार के तौर पर चुनाव में उतरी थी। साल 2012 और 2014 में वो बीआरएस के उम्मीदवार के तौर पर चुनावी मैदान में उतरी थी।

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