दर्शकों व पाठकों ने आज मीडिया पर विश्वास करना छोड़ दिया है: शमशेर सिंह

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ज्योति शिंदे के साथ राहुल मिश्रा, ख़बरीमीडिया

मीडिया संवाद कार्यक्रम में इंडिया डेली लाइव(INDIA DAILY LIVE) के एडिटर इन चीफ शमशेर सिंह (Shasmsher Singh) ने मीडिया और इसके उतार-चढ़ाव पर खुलकर बात की। उन्होंने कहा कि पच्चीस सालों से ज्यादा समय से मैं टेलीविजन में हूं और देश के चार से पांच न्यूज चैनल में काम कर चुका हूं। ‘आजतक’ से करियर की शुरुआत की थी। इसके बाद ‘इंडिया टीवी’, ‘रिपब्लिक भारत’, ‘जी मीडिया’ में काम कर चुका हूं और अब डेढ़ महीने पहले ‘इंडिया डेली लाइव’ चैनल लॉन्च किया है। अभी तक मैंने दो चैनल लॉन्च किए हैं, पहला ‘रिपब्लिक भारत’ और अब दूसरा ‘इंडिया डेली लाइव’। मैं रिपोर्टर रहा हूं और दस देशों के बड़े इवेंट्स को मैं बतौर रिपोर्टर कवर कर चुका हूं। रिपोर्टिंग के लिए रामनाथ गोयनका अवॉर्ड भी प्राप्त कर चुका हूं।

जब मैंने सोशल मीडिया पर पोस्ट किया कि ‘मीडिया संवाद’ कार्यक्रम में मैं भी चर्चा करूंगा, तो मुझे कई कमेंट्स आए, जिनमें से कई मीडिया में काम करने वाले लोगों थें। कुछ कमेंट्स मीडिया में आने की चाह रखने वाले लोगों के थे और कुछ ऐसे भी कमेंट्स थे, जो सिर्फ मीडिया के बारे में जानना चाहते थे। लेकिन जब मैंने इन कमेंट्स को पढ़ा, तो बेहद निराश हुआ, बड़ी हताशा महसूस हुई, क्योंकि इनमें से कुछ लोगों ने कहा कि मीडिया आज वेंटिलेटर पर है, इस पर चर्चा जरूर करना। एक ने लिखा कि मीडिया की ऐसी स्थिति है कि कोई व्यक्ति ऑफिस लंंच लेकर जाता है और उससे लंच से पहले ही कह दिया जाता है कि अब आपकी नौकरी नहीं रही और दूसरे ही पल उसे अपना लंच घर जाकर करना पड़ता है। ये मेरे और अब सब के लिए चिंतन और आत्ममंथन करने का विषय है कि उस मैसेज बॉक्स में एक भी कमेंट ऐसा नहीं था, जिसको यहां मैं शेयर यहां कर सकूं। सभी निगेटिव कमेंट्स थे। इसलिए अब ये वक्त आत्ममंथन करने का है।

वरिष्ठ पत्रकार शमशेर सिंह ने आगे कहा कि आज के समय में सबसे बड़ी चुनौती ये है कि दर्शकों ने, पाठकों ने मीडिया पर विश्वास करना छोड़ दिया है। मीडिया को वह अविश्वास की नजर से देखते हैं और इस पर अब भरोसा नहीं करते हैं। हम भले ही खुश हो जाएं। जब हम चार-चार, पांच-पांच घंटे सर्वे दिखाते हैं, तो लोग पूछतें हैं कि यह सर्वे सही है, क्यां फलां आदमी जीत जाएगा या नहीं। घर पर भी लोग चर्चा करते हैं कि सर्वे तो दिखा दिया, पर कैसे दिखाया, समझ नहीं आता। इसलिए विश्वसनीयता की जो बात है, वह लगभग खत्म हो चुकी है। न कोई हमारी खबरों पर और न ही अब हम पर कोई विश्वास करता है। मैं तो रिपोर्टर रहा हूं और वो दौर भी देखा है, जब हम फील्ड में जाते थे, तब कितना सम्मान मिलता था और लोग हमें किस तरह से देखते थे। वहीं आज की स्थिति देख लो। जब आप पर किसी का भरोसा उठता है, आप पर किसी का विश्वास कम होता है, तो उसका दूसरा पहलू है कि आपके प्रति उसका सम्मान कम हो जाएगा। तो हमने भरोसा भी खोया और सम्मान भी। इसलिए आज हम जंग लड़ रहे हैं कि लोग हम पर भरोसा करें और सम्मान करें। दोनों चीजों की लड़ाई चल रही है।

वहीं दूसरा मुद्दा है चेहरा। आज की तारीख में सवाल उठता है कि चेहरा बनता कैसे है। आज कोई चेहरा कैसे बना। एंकर चेहरा बना अपनी खबरों से, अच्छी रिपोर्टिंग से, रिपोर्टर रिपोर्टर बना अपनी रिपोर्टिंग से। लेकिन आजकल चेहरे से लोगों का विश्नास कम हो गया है। आज कोई चेहरा कोई बात कहता है कि तो लोग उसे माउथ पीस समझते हैं। उनको लगता है कि इसमें दम नहीं है। ये कहीं की बात कहीं बोल रहा है। किसी के कहने पर बोल रहा है।

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