Income Tax विभाग ऐसे रखता है आपकी कमाई का हिसाब..ऐसे पड़ती है रेड

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Income Tax: इनकम टैक्स रिटर्न फाइल करते समय आपको हर स्रोत से हुई इनकम (Income) के बारे में बताना जरूरी होता है। कई लोग कुछ जानकारियां छुपा लेते हैं। लेकिन अब ऐसा करने वाले टैक्सपेयर्स (Taxpayers) का बचना नामुमकिन है। पढ़िए पूरी खबर…

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इनकम टैक्स रिटर्न फाइल (Return File) करते वक्त आपको हर स्रोत से हुई इनकम के बारे में बताना बहुत जरूरी है। कई लोग कुछ जानकारियां छुपा लेते हैं। अब ऐसा करने वाले टैक्सपेयर्स का बचना नामुमकिन है। इनकम टैक्स डिपार्टमेंट ने अपना सिस्टम फुल-प्रूफ बना दिया है। हाई-वैल्यू ट्रांजेक्शन (Transactions) के साथ पैन बताना जरूरी है।

आईटी विभाग टैक्स चोरी करने वालों पर रखता है खास नजर

आपका सेविंग्स अकाउंट जिस बैंक में है। आपका इंश्योरेंस प्लान (Insurance Plan) जिस कंपनी का है। आप ने जिस एएमसी कंपनी से म्यूचुअल फंड खरीदा है और जिस बैंक का क्रेडिट कार्ड लिया है। वे सभी आपके हर ट्रांजेक्शन की जानकारी इनकम टैक्स डिपार्टमेंट को देते हैं। इनकम टैक्स डिपार्टमेंट इस डेटा को आपके आईटीआर में दी गई जानकारियों के साथ मैच कराता है। आईटी विभाग प्रोजेक्ट इनसाइट के जरिए भी टैक्स चोरी करने वाले लोगों पर खास नजर रखता है।

क्या है इनकम टैक्स डिपार्टमेंट का प्रोजेक्ट इनसाइट?

प्रोजेक्ट इनसाइट (Project Insight) के अनुसार इनकम टैक्स के अधिकारी टैक्स चोरी का संदेह होने पर टैक्सपेयर के सोशल मीडिया अकाउंट पर भी नजर रखते हैं। उदाहरण के लिए अगर कोई व्यक्ति 10 लाख रुपये से ज्यादा कीमत की कार खरीदता है तो उसे एक फीसदी लग्जरी चार्ज चुकाना होता है। इनकम टैक्स डिपार्टमेंट किसी तरह का संदेह होने पर ऐसे व्यक्ति के इनकम टैक्स रिटर्न की जांच कर सकता है। इसका मकसद यह पता लगाना होगा कि व्यक्ति की इनकम के सोर्स क्या हैं?

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इनकम टैक्स अधिकारी के पास हैं कई अधिकार

इनकम टैक्स डिपार्टमेंट (Income Tax Department) के अधिकारी के पास किसी टैक्सपेयर्स की इनकम के बारे में बैंक से जानकारी मांगने का भी अधिकार होता है। वह इन आंकड़ों को टैक्सपेयर के आईटीआर से मैच करता है। गड़बड़ी पाए जाने पर वह टैक्सपेयर्स को नोटिस जारी कर स्थिति स्पष्ट करने को कहता है। इसलिए कोई व्यक्ति यह समझता है कि वह कुछ जानकारियां इनकम टैक्स डिपार्टमेंट से छुपा सकता है तो यह मुमकिन नहीं है।

इनकम टैक्स डिपार्टमेंट इन तरीकों का इस्तेमाल टैक्सपेयर्स पर रख रहें नजर

अगर आप 1 फाइनेंशियल ईयर में 10 लाख रुपये से ज्यादा मूल्य का डिपॉजिट करते हैं। बैंक ड्राफ्ट बनवाते हैं या बैंक में फिक्स्ड डिपॉजिट करते हैं। तो बैंक इसकी जानकारी इनकम टैक्स डिपार्टमेंट को भेजता है।

अगर आप 30 लाख रुपये से ज्यादा मूल्य की प्रॉपर्टी खरीदते या बेचते है। तो प्रॉपर्टी रजिस्ट्री (Property Registry) के लिए इसकी जानकारी इनकम टैक्स डिपार्टमेंट को देना जरूरी है।

अगर 50 लाख रुपये से ज्यादा कीमत की प्रॉपर्टी खरीदी जाती है। तो उस पर एक फीसदी टीसीएस कलेक्ट करना जरूरी है। खरीदने के लिए इस पैसे को इनकम टैक्स डिपार्टमेंट के पास जमा करना जरूरी है।

अगर आप किसी 1 फाइनेंशियल (Financial) ईयर में 1 लाख रुपये तक का कैश पेमेंट करते हैं या दूसरे तरीकों से 10 लाख रुपये तक खर्च करते है। तो क्रेडिट कार्ड जारी करने वाला बैंक इसकी जानकारी इनकम टैक्स डिपार्टमेंट को देता है।

अगर 1 फाइनेंशियल ईयर में 10 लाख रुपये तक म्यूचुअल फंड्स, शेयर या डिबेंचर्स आप खरीदनेत है। तो ट्रांजेक्शन से जुड़ी कंपनियों के लिए इसकी जानकारी इनकम टैक्स डिपार्टमेंट को देना जरूरी है।

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