Itv Network: इंडिया न्यूज के संपादक रहे वरिष्ठ टीवी पत्रकार और जाने माने न्यूज एंकर राणा यशवंत(Rana Yashwant) ने संस्थान को अलविदा कह दिया है। इसके साथ ही राणा यशवंत ने 12 साल की स्मृतियों का जिक्र भी किया है। साथ ही उन्होंने अपने साथ काम किए कुछ खास नामों का जिक्र भी किया है। पढ़िए राणा यशवंत का भावुक पत्र…


प्रिय साथियों,
यह कोई विदाई पत्र नहीं है. स्मृति-यात्रा है. वह भी सिर्फ़ पिछले 12 वर्षों की.
3 मार्च 2025. शाम 6.15 बजे, मीडिया हाउस की सीढ़ियाँ उतर रहा था. सीढ़ियों का अपना दर्शन होता है. वे आपको चढ़ने की सहूलियत देती हैं और उतरने का रास्ता आसान करती हैं. जो ऊपर-नीचे, आने-जाने का मर्म समझते हैं, सीढ़ियाँ उनके साथ अपना धर्म कहीं अधिक सावधानी से निभाती हैं. ज़्यादा उत्साह या अवसाद, सीढ़ियों को नहीं भाते. इंसान लुढ़क सकता है. इन सीढ़ियों से शाम 5 बजे चाय पीने के लिए अक्सर उतरता रहा. आज समय थोड़ा आगे था और फिर लौटना भी नहीं था. इंडिया न्यूज़ को 12 वर्षों में पहली बार छोड़कर निकल रहा था. अब तक वह 24 घंटे का साथी था. कई एहतियात के साथ एक महत्त्वपूर्ण ज़िम्मेदारी.
कार्तिक जी और ऐश्वर्या जी, दोनों कुछ देर पहले निकल चुके थे. लगभग डेढ़ घंटे हम तीनों बैठे रहे. एक निपट पारिवारिक और आत्मीयता से भरे माहौल में. पहली बार ऐसा था कि बीच में दरवाज़े पर कोई दस्तक नहीं हो रही थी या कोई और अपॉइंटमेंट नहीं थी. किसी संपादक और मैनेजमेंट के बीच शायद ही ऐसी समझदारी रही होगी कि समझने की अधिकतर बातें, बातों के बीच तहमंद की जाती हों और साफ़ समझ आती हों. कार्तिक जी के साथ मेरा कई स्तर पर संवाद चलता रहा- लेकिन यह बातों के भीतर बातों वाला ज़्यादा रहा. संयम, सम्मान, फिर भी निपट पेशेवर संबंध.
ऐश्वर्या जी से सीधा संवाद पिछले दो वर्षों से स्थापित हुआ. कुछ विशेषणों या मुहावरों की मानिंद लोग अमूमन नहीं मिलते. जब दिखते हैं तो वे अपना सही अर्थ पाते महसूस होते हैं. स्पष्टवादी, जुझारू, पेशेवर, धुन का पक्का – इन सभी की मिसाल हैं ऐश्वर्या जी. हमेशा की तरह इस बार भी उनकी वही हँसी और ऊर्जा स्निग्ध आवाज़ थी. हैलो राणा जी! कैसे हैं आप? पिछले कई दिनों में उनको यह समझाने में कामयाब रहा कि मैं, मेरे लिए कुछ करना चाहता हूँ. अक्सर लोग नौकरी छूट जाने पर मजबूरन कोई विकल्प अपनाते हैं. मैं जो करना चाहता हूँ उसकी खातिर नौकरी छोड़ने का विकल्प अपना रहा हूँ. वह भी एडिटर इन चीफ के पद से. उनको यह लग रहा था कि मैं उल्टी गंगा बहाने चला हूँ और मुझे यह लगता रहा कि अब वह सब कर गुज़रना चाहिए, जो वर्षों से प्रतीक्षा में है. आख़िरकार, ऐश्वर्या जी ने सहमति दी और फिर हम तीनों साथ बैठे. यह एक पारिवारिक बैठक थी फ़िक्र, हिम्मत, हौसला और हामी से भरी हुई.
गाड़ी में बैठा तो सारा वक्त ऐसे गुज़र रहा था, जैसे बस्ती से दूर,पेड़ों की पाँत के पार से रेलगाड़ी गुज़रती हो. टु नाइट विद दीपक चौरसिया, आसाराम के ख़िलाफ़ महीनों तक कवरेज वाला अभियान, अरविंद केजरीवाल को जंतर मंतर पर बहस की चुनौती, अर्धसत्य, रनयुद्ध, बेटियां, सलाखें, गुडलक गुरु, फ़ैमिली गुरु, पाकिस्तान के ‘दिन’ चैनल के साथ ‘आर-पार’, देश का सवाल, अद्भुत भारत वग़ैरह से लेकर ‘ये जो ज़िंदगी है और ‘शब्दोत्सव’ तक. न जाने कितने शोज़ प्लान किए, डिज़ाइन किए और सभी ने अपनी अलग व्यूअरशिप तैयार की. बाद के दोनों शोज़ की मियाद बहुत छोटी थी, लेकिन उनकी तासीर क़ायदे की थी.
टाइम के फ़्लैशबैक में वे तमाम चेहरे भी चलते रहे जो इन शोज़ के साथ जुड़े रहे. अजय आज़ाद, सत्य प्रकाश (सत्या), सुधीर पांडे, चित्रा त्रिपाठी, शीतल राजपूत, अनुराग मुस्कान, सुशांत सिन्हा, राजीव शर्मा, राजीव मिश्रा, गिरिजेश मिश्रा, प्रशांत मिश्रा, रवि शर्मा, वैभव वर्धन… कितने नाम लूँ? आज इनमें से ज़्यादा, कई चैनलों में सर्वाधिक महत्वपूर्ण जिम्मेदारियों के साथ काम कर रहे हैं. रवि शर्मा और वैभव वर्धन का असमय जाना बहुत तकलीफदेह था और अब भी खलता रहता है.
2013-2018 का समय इंडिया न्यूज़ का गोल्डन पीरियड था. कभी एडिटोरियल के अलावा दूसरे डिपार्टमेंट के लोगों पर अलग से लिखूँगा. ग़ज़ब की टीम थी!
2019-2025 के दौरान कई चुनौतियां आयीं. पहले BARC के साथ टकराव, उसका बड़ा फरेब और फिर कोविड के दो साल. इस मुश्किल दौर में चंद्रभान सोलंकी, पशुपति शर्मा, राशिद हाशमी, मनीष अवस्थी, रोहित पुनेठा, राकेश कुमार सिंह, मनोज मनु, उज्ज्वल त्यागी, आशीष दीक्षित, राकेश रंजन, आयुष जैसे तमाम साथी कंधे से कंधा मिलाकर हालात से उबरने और आगे निकलने के लिए चलते रहे. जम्मू से अजय जांड्याल, चंडीगढ़ से बिपिन परमार, राजस्थान से मनु शर्मा ऐसे ब्यूरो चीफ हैं, जो हरफनमौला हैं. मुश्किल असाइनमेंट में बड़े काम के साबित हुए, हमेशा.
शाम 7 बजे रात उतर आती है. आश्रम से डीएनडी की तरफ़ गाड़ी बढ़ती है तो मयूर विहार से कालिंदी कुंज तक, रोशनी की अद्भुत छटा दिखती है. अपार्टमेंट पर जलती लाइट्स, सड़कों पर खड़े लैंप-पोस्ट्स और भागती गाड़ियाँ, आपस में मिलकर बड़ा आकर्षक दृश्य रचते हैं. इस रास्ते रोज़ का आना रहा है. यमुना के ठीक ऊपर ड्राइवर से कार रोकने को कहा. बाहर निकला और सामने रेलिंग के पास जाकर खड़ा हो गया. कोविड के दिनों में कई बार डीएनडी पर यूँ ही लौटते समय रुक जाया करता था. कहीं कोई नहीं. या तो पुलिस की गाड़ी या फिर सायरन बजाते एम्बुलेंस ही नज़र आते.
उन दिनों दफ़्तर में सन्नाटा रहता. कुल 20-22 लोग ही आया करते. ज़्यादातर इस्तीफ़ा देने को तैयार थे, आने को नहीं. दोष आप उनको नहीं दे सकते. वक्त ही ऐसा था. उन दिनों इंडिया न्यूज़ पर मैंने OPD लाइव शुरू किया. लगातार कोई ना कोई बड़ा डॉक्टर ज़ूम से जुड़ा रहता और लोगों को ज़रूरी सलाह देता रहता. उसने घरों में क़ैद लोगों की बहुत मदद की. उन्हीं दिनों मैंने घर से दफ्तर जाते हुए एक गीत लिखा – “ समर शेष है, युद्ध है भीषण..” ऑफिस की सीढ़ियाँ चढ़ते हुए मैंने कैलाश खेर को फ़ोन किया. “कैलाश भाई, आज के हालत पर गीत लिखा है. अगर आप गा दोगे तो जान आ जाएगी. कुछ घंटे में उन्होंने तानपुरा के साथ गाकर भेज दिया. कमाल का बन निकला. कैलाश खेर की आवाज़ ने उस गीत में आत्मा डाल दी.
यादें जिन पन्नों को खोल रही हैं, उससे कहीं अधिक अभी बंद पड़े हैं. गाड़ी अब फ़िल्म सिटी से गुज़र रही है. यहाँ जो गुज़री और गुज़ारी, उस पर पूरी किताब हो सकती है. अंशुमान गायकवाड़, चेतन शर्मा, राजकुमार शर्मा, प्रवीण कुमार, तलत अज़ीज़, चंदन दास, नवाज़ देवबंदी, अयाज़ मेनन जैसी कितनी हस्तियों से जुड़ी कहानियों का गवाह,यहाँ का बोधि वृक्ष है. यह नाम राजीव मिश्रा का दिया हुआ है- बोधि वृक्ष. यहाँ की दास्तान भी कभी लिखी जाएगी. अंशु भाई ग़ज़ब के किस्सागो थे. 70 के दशक में इंडियन टीम के वेस्टइंडीज दौरे के प्रसंग वे क्या खूब सुनाते थे. उनको देख कर कभी नहीं लगा कि ब्लड कैंसर ने उनको इतना जकड़ रखा है!
इंडिया न्यूज़ के क्रिकेट एक्सपर्ट के तौर पर अंशुमान गायकवाड़, सबा करीम और राजकुमार शर्मा लंबे समय तक जुड़े रहे. सबा की क्रिकेट की अंडरस्टैंडिंग ज़बरदस्त है. बहुत ज़हीन इंसान भी हैं. राजकुमार भाई तो कई रातों के हम प्याला, हम निवाला रहे हैं. विराट कोहली की शादी में दोनों मियाँ बीवी इतने गुपचुप तरीक़े से इटली निकल गए कि शादी की तस्वीरें आयीं, तब पता चला, गुरु तो गच्चा दे गए! साथ रहकर हवा तक नहीं लगने दी कि जा रहे हैं.
पिछले 12 वर्षों में नोएडा बहुत बदल गया है! इस बदलाव को इंडिया न्यूज़ ने बखूबी देखा. 2019 के दिसंबर में नोयडा के रजनीगंधा चौक से ऑफिस दिल्ली के श्रीनिवासपुरी शिफ्ट हुआ. अभी नेटवर्किंग हुई ही थी, काम आधा-अधूरा पड़ा हुआ था कि कोविड का हमला हो गया. 2022 के अप्रैल-मई से दुनिया भर की गाड़ी पटरी पर लौटी. इंडिया न्यूज़ की भी. इस दौरान कई न्यूज़ शोज़ प्रयोग के तौर पर आए. उनमें ‘आँख कान खोल के’ और ‘आँकड़े हमारे फ़ैसला आपका’ – इन दोनों ने बेहतर किया. ये दोनों नाम कार्तिक जी ने सुझाए थे.
कार जिस फ्लाईवे पर चल रही है, अट्टा से सेक्टर 60 वाली – उसने इस इलाके को बहुत सहूलियत दी है. इसके ऊपर से गुज़रते समय नोएडा की सारी ऊँची इमारतें नज़र आती हैं. इस पर कोई भी गाड़ी 60 की रफ़्तार से कम पर नहीं होती और फ्लाईवे के बीचों-बीच जो कैमरा है,वैसी हर गाड़ी का 2 हज़ार का चालान काट देता है. मेरे ऑफिस जाने आने का समय – दोपहर 12 बजे और रात 10-11 बजे – ऐसा रहा कि ज़्यादातर दफ़ा इस कैमरे की ताकीद याद नहीं रहती.
कई और चेहरे शो रील की तरह चलते चले जा रहे हैं. नीरज सोनी, वरुण कोहली, दिलीप, सावी, शिखा रस्तोगी, आरके अरोड़ा, नंदिता कुमार, पूजा गुप्ता शर्मा… अलग अलग महकमों को हेड करने वाले इन लोगों की बड़ी भूमिका रही है, आईटीवी नेटवर्क को यहाँ तक पहुँचाने में. नंदिता कुमार को रिसर्च और टीआरपी की बेहतरीन समझ है. कई बार उनके साथ टीआरपी मीटिंग में तनातनी सी हो जाती, लेकिन निजी रिश्ते पर कभी उसका असर नहीं हुआ. मेरे साथ ऐसा सभी HOD का रहा. पूजा मार्केटिंग की माहिर है, लेकिन सेल्स की जिम्मेदारियों को भी उसने जिस खूबी के साथ उठाया-निभाया, काबिले तारीफ़ है.
अब सोसाइटी के अंदर आ गया हूँ. ड्राइवर ने कार पार्किंग के लिए रैंप पर डाल दी है. कल से अब रोज़ के रूटीन पर नहीं निकलना है. करियर में लगातार 28 साल बाद अपनी मर्ज़ी से, अपने लिए समय चाहता हूँ. जो ‘अनकिया’ रह गया, उसे शिद्दत से करना चाहता हूँ. घर को, दोस्तों को, अपनों को, समय की किल्लत का हवाला देकर, निराश करता रहा हूँ – उसकी भरपायी करना चाहता हूँ. खूब घूमना,पढ़ना, लिखना और जीना चाहता हूँ. जीवन और ‘मायनेदार’ हो सके, उसकी गुंजाइश निकालना चाहता हूँ. फिर आगे का सफ़र तय किया जाएगा.
दिनकर ने लिखा है न –
अब जो सिर पर आ पड़े, नहीं डरना है
जनमे हैं तो दो बार नहीं मरना है.
आपका
राणा यशवंत

