Electoral Bonds: क्या है..क्यों हुई थी शुरुआत..क्यों मचा है बवाल?

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Electoral Bonds: लोकसभा चुनाव 2024 के लिए देशभर में तैयारियां हो रही हैं। चुनाव आयोग ने लोकसभा चुनाव के लिए तारीखों का भी ऐलान कर दिया है। लोकसभा चुनाव (Lok Sabha Elections) के बीच इलेक्टोरल बॉन्ड खूब चर्चा में बना हुआ है। लोकसभा चुनाव के ऐलान के पहले ही सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) ने अपने एक बड़े फैसले में इलेक्टोरल बॉन्ड (Electoral Bond) को अवैध और असंवैधानिक बताकर रोक लगा दी। इलेक्टोरल बॉन्ड (Electoral Bond) को लेकर पिछले साल 31 अक्टूबर से सुनवाई चल रही थी जिस पर अब फैसला आया है। क्या आप जानते हैं कि आखिर क्या है इलेक्टोरल बॉन्ड औ क्यों हुई थी इसकी शुरुआत। आइए आप के इन्हीं सवालें का जवाब विस्तार से जानते हैं।

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पहले जानिए क्या होता है इलेक्टोरल बॉन्ड

इलेक्टोरल बॉन्ड (Electoral Bond) एक प्रकार का मनी इंस्ट्रूमेंट होता है जो एक वाहक बांड के रूप में काम करता है। इसे भारत में व्यक्तियों या कंपनियों द्वारा खरीदा जाता है। इसके नाम के अनुरूप ये बांड विशेष रूप से राजनीतिक दलों को चंदा यानी धन के योगदान के लिए जारी होते हैं। इलेक्टोरल बॉन्ड राजनीतिक दलों को चंदा देने का एक तरीका माना जाता है।

इस बांड की सबसे बड़ी अच्छी बात यह थी कि बैंक से इसे खरीदने वाले का नाम बांड पर नहीं होता है। इससे आप यह कह सकते है कि कोई भी व्यक्ति बिना अपनी पहचान बताए अपनी पसंद की पार्टी को फंडिंग कर सकता था। बता दें कि इन बांड को कोई भी खरीद सकता है। जब कोई इंडिविजुअल या संस्था इन बॉन्ड्स को खरीदती है तो उनकी पहचान गोपनीय रखी जाती है, ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि पॉलिटिकल फंडिंग की इस प्रक्रिया में किसी तरह के पक्षपात या प्रभाव से मुक्त है। खास बात है कि कोई व्यक्ति या संस्था कितने भी और कितनी भी बार इन बॉन्ड को खरीद सकती थी।

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कब हुई थी इसकी शुरूआत

आपको बता दें कि इलेक्टोरल बॉन्ड की शुरुआत भारत में साल 2017 में हुई थी जिसे जनवरी 2018 में क़ानूनी रूप से लागू कर दिया गया था। इसके अनुसार भारतीय स्टेट बैंक राजनीतिक दलों को पैसे देने के लिए बॉन्ड जारी करने का अधिकार मिला था।

जानिए किन पार्टियों को मिल सकता है इसका लाभ

इलेक्टोरल बॉन्ड (Electoral Bond) के तहत भारतीय स्टेट बैंक (State Bank of India) से कोई भी 1,000 रुपये, 10,000 रुपये, एक लाख रुपये, दस लाख और एक करोड़ रुपये में से किसी भी मूल्य के बांड खरीद सकता था। चुनावी बांड के जरिए से केवल उन्ही पार्टियों को फंडिंग की जा सकती थी जिन्हें लोकसभा या विधान सभा के लिए पिछले आम चुनाव में डाले गए वोटों का कम से कम 1% वोट प्राप्त हुआ हो।

जानिए कैसे काम करते हैं बॉन्ड

इलेक्टोरल बॉन्ड को प्रयोग करना बेहद आसान है। ये बॉन्ड 1,000 रुपए के मल्टीपल में पेश किए जाते हैं जैसे कि 1,000, ₹10,000, ₹100,000 और ₹1 करोड़ की रेंज में भी खरीदे जा सकते हैं। ये आपको एसबीआई की कुछ शाखाओं पर आपको मिल जाते हैं। कोई भी डोनर जिनका KYC- COMPLIANT अकाउंट हो इस तरह के बॉन्ड को खरीद सकता है, और बाद में इन्हें किसी भी राजनीतिक पार्टी को दे सकता है। इसके बाद रिसीवर इसे कैश में कन्वर्ट करवा सकता है। इसे कैश कराने के लिए पार्टी के वैरीफाइड अकाउंट का प्रयोग किया जाता है। इलेक्टोरल बॉन्ड भी सिर्फ 15 दिनों के लिए वैलिड रहते हैं। सरकार के मुताबिक, ‘इलेक्टोरल बॉन्ड के जरिए ब्लैक मनी पर अंकुश लगेगा और चुनाव में चंदे के तौर पर दिए जाने वाली रकम का हिसाब-किताब रखा जा सकेगा। इससे चुनावी फंडिंग में सुधार होगा।’ केंद्र सरकार ने अपने जवाबी हलफनामे में कहा कि चुनावी बांड योजना पारदर्शी है।

कब खरीद सकते थे इलेक्टोरल बॉन्ड्स ?

सरकार ने ऑथराइज्ड बैंकों की चुनिंदा ब्रांच से इन बॉन्ड को खरीदने के लिए एक खास अवधि का ऐलान किया था। हर साल जनवरी, अप्रैल, जुलाई और अक्टूबर यानी साल में चार बार 10 दिनों के लिए ये बॉन्ड खरीदने के लिए उपलब्ध होते थे। इसके अलावा आम चुनावी साल में 30 अतिरिक्त दिन भी मिले थे।

क्या है चुनावी बॉन्ड स्कीम मामला?

साल 2017 में केंद्र सरकार ने इलेक्टोरल बॉन्ड स्कीम को फाइनेंस बिल के जरिए संसद में पेश किया था। संसद से पास होने के बाद इसका नोटिफिकेशन 29 जनवरी 2018 को जारी कर दिया गया। इसके जरिए राजनीतिक दलों को चंदा मिलता है। सुप्रीम कोर्ट में असोसिएशन ऑफ डेमोक्रेटिक रिफॉर्म की ओर से इलेक्टोरल बॉन्ड को चुनौती देते हुए कहा गया कि इसका इस्तेमाल बड़े पैमाने पर कॉरपोरेट की ओर से किया गया। उन्होंने इसे पार्टियों को दिया है। ये लोग इसके जरिए नीतिगत फैसले को प्रभावित कर सकते हैं।

CJI ने क्या फ़ैसला दिया

इस साल की 15 फ़रवरी को इस मामले में फ़ैसला आया। CJI डीवाई चंद्रचूड़ की पांच जजों वाली संवैधानिक पीठ ने चुनावी बॉन्ड स्कीम को ही असंवैधानिक क़रार दिया। और कहा कि ये सूचना के अधिकार का उल्लंघन है। वोटर्स को चंदा देने वालों की जानकारी होनी चाहिए। साथ ही भारतीय स्टेट बैंक (SBI) को आदेश दिया कि वो बॉन्ड से जुड़ी जानकारी केंद्रीय चुनाव आयोग को सौंपे।

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चुनाव आयोग ने डेटा किया अपलोड

न्यायालय के निर्देश के बाद, भारतीय स्टेट बैंक (एसबीआई) ने 12 मार्च को आयोग के साथ आंकड़े साझा किए थे। भारतीय चुनाव आयोग ने चुनावी बांड के संबंध में भारतीय स्टेट बैंक द्वारा उपलब्ध कराए गए डेटा को अपनी वेबसाइट पर अपलोड कर दिया है।

लोकसभा चुनाव पर क्या होगा असर

चुनावी बांड को लेकर मामला पिछले कई सालों से कोर्ट में लंबित था और लोगों की इस पर निगाहें इसलिए भी थी कि यह फैसला लोकसभा चुनावों पर भी असर डाल सकता है।