उत्तराखंड की अनोखी लाइब्रेरी देखकर चौंक जाएंगे

उत्तराखंड दिल्ली NCR

नीलम सिंह चौहान, ख़बरीमीडिया

क्या आपने कभी चलती फिरती लाइब्रेरी के बारे में सुना या पढ़ा है। यदि नहीं तो अब इसे अपनी आंखों से देख सकते हैं। कुछ युवाओं ने एकसाथ मिलकर चलती फिरती लाइब्रेरी शुरू की है और इसका नाम घोड़ा लाइब्रेरी दिया है। जगह है उत्तराखंड का नैनीताल।

दरअसल, उत्तराखंड के नैनीताल में स्पेशल और खास लाइब्रेरी बहुत ही ज्यादा फेमस हो रही है। न तो इस लाइब्रेरी की कोई बिल्डिंग है और न ही ये लाइब्रेरी किसी कॉलेज अथवा स्कूल में है। सुनकर ताजुब होगा कि ये चलता फिरता पुस्तकालय घोड़े की पीठ के ऊपर है। घोड़ों में किताब लादकर बच्चों तक किताबें पहुचायीं जाती हैं। इंटरनेट में भी ये चलती फिरती लाइब्रेरी धूम मचाए है।

अधिकतर ऐसा होता है कि छुट्टियों के समय बच्चे स्कूलों से दूर हो जाते हैं, लेकिन पुस्तकें बच्चों से दूर नहीं है। नैनीताल के सुदूरवर्ती कोटाबाग विकासखंड के गांव बाघनी, महालधुरा, जलना, आलेख, गौतिया के हर तोक हिमोत्थान और संकल्प यूथ फाउंडेशन संस्था के द्वारा बच्चों तक बाल साहित्य की किताबें पहुंचाई जा रही हैं।

कब हुई थी इसकी शुरुआत
घोड़ा लाइब्रेरी की शुरुआत शुभम नाम लड़के ने 12 जून 2023 में किया था। गर्मियों की छुट्टी में शुरू हुई घोड़ा लाइब्रेरी का ये सिलसिला, रेनी सीजन की कठनाइयों में भी जारी है। पहाड़ी बच्चों के लिए ये किसी तोहफे से कम नहीं है। संपर्क मुख्य ब्लॉक से कट चुका है। हर परिस्थिति में पहाड़ी बच्चों के घर तक पुस्तकें पहुंचाने का लक्ष्य घोड़ा लाइब्रेरी के तहत रखा गया है।

क्या है ये घोड़ा लाइब्रेरी
जैसा कि आप इसके नाम से पहचान सकते हैं घोड़ा जो कि पीठ में किताबें लेकर के चलता है और एक गांव से दूसरे गांव तक जाता है। इसलिए इसे लोगों के द्वारा बहुत ही ज्यादा प्रोत्साहित किया जा रहा है और कई लोगों ने इसका इस्तेमाल करना भी एक दूसरे से देख देख के शुरू कर दिया है।

आखिरकार क्या है इस लाइब्रेरी का मुख्य उद्देश्य
इस पहल की सफलता अभिभावकों की सहभागिता की वजह से ही संभव हो पाई है। एक तरह की व्यवस्था की गई थी जहां पेरेंट्स हर हफ्ते अपने घोड़ों का एक दिन योगदान करते हैं और इससे बच्चो किताबें पढ़ने के लिए मिल जाती हैं। जिससे बच्चे पढ़ाई को मन लगा के करते हैं। घोड़ा लाइब्रेरी का अहम उद्देश्य गांव के बच्चों को किताबें और अन्य आवश्यक चीजें पहुंचाना है। ताकि जब भी स्कूल बंद हों, तो उनके पढ़ाई के ऊपर इसका असर न दिखे।

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