बिहार के CM नीतीश का आरक्षण वाला दांव..चलेगा या लुढ़क जाएगा?

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सूर्यांश सिंह, ख़बरीमीडिया

Bihar News: बिहार के सीएम नीतीश कुमार (CM Nitish Kumar) का आरक्षण वाला दांव काफी चर्चा में बना हुआ है। बिहार सरकार आने वाले समय में सभी वर्ग में से ओबीसी, एससी और एसटी के लिए आरक्षण बढ़ाने की जरूरत बताई है। उन्‍होंने सरकारी नौकरियों और शैक्षणिक संस्थानों में आरक्षण बढ़ाकर 65 फीसदी करने का प्रस्ताव दिया है। इसमें आर्थिक रूप से कमजोर वर्गों के लिए केंद्र सरकार के दस फीसदी आरक्षण को शामिल नहीं किया गया है। इस तरह कुल रिजर्वेशन 75 फीसदी हो जाएगा। जातीय जनगणना (Caste Census) को लेकर जारी शोर-शराबे के बीच मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने यह ऐलान किया है। कि लोकसभा चुनाव से पहले इसे नीतीश कुमार की ओर से चले गए राजनीतिक दांव के तौर पर भी निगरानी की जा रही है। हालांकि नीतीश कुमार के प्रस्‍ताव में सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) के फैसले का बड़ा दावा है। सुप्रीम कोर्ट ने सन् 1992 में इस बारे में फैसला दिया था। राज्य कोटे को पचास फीसदी की सीमा पर रोकने की बात करता है। नीतीश कुमार जो ऐलान कर रहे हैं वह रिजर्वेशन को निर्धारित 50 फीसदी की सीमा से आगे ले जाएगा। ताकि ज्यादा से ज्यादा किसान और मध्यम वर्ग के नागरिको को आरक्षण का फायदा मिल सके।

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बिहार सरकार ने जातिगत सर्वे के मुताबिक राज्य के 13.1 करोड़ लोगों में से 36 फीसदी ओबीसी से वर्ग से आते हैं। इनमें 27.1 फीसदी पिछड़े वर्ग से हैं और 19.7 फीसदी अनुसूचित जाति से। एससी 1.7 फीसदी हैं। वहीं, सामान्य वर्ग 15.5 फीसदी। इसका मतलब यह है कि बिहार के 60 फीसदी से ज्‍यादा लोग पिछड़े या अति पिछड़े वर्ग से आते हैं। वर्तमान समय में ओबीसी के लिए 18 फीसदी और पिछड़े वर्गों के लिए 12 फीसदी आरक्षण है। वहीं, अनुसूचित जाति के लिए 16 फीसदी और अनुसूचित जनजाति के लिए 1 फीसदी है। मुख्यमंत्री नीतीश ने जो प्रस्ताव किया है। उसमें संशोधित कोटा के तहत एससी कैंडिडेट को 20 फीसदी जबकि ओबीसी और ओबीसी को 43 फीसदी कोटा मिलने की बात कहीं गई है। यह पहले के मुकाबले कोटे में 30 फीसदी की बढ़ोतरी हुई है। एसटी के लिए 2 फीसदी आरक्षण का प्रस्ताव किया गया है।
आरक्षण की 50 फीसदी सीलिंग खत्‍म करने की मांग ने पकड़ा जोर
बिहार में जातिगत सर्वे के बाद से ही आरक्षण की पचास फीसदी की सीलिंग (Sealing) को खत्‍म करने की मांग ने जोर पकड़ा है। देश में रिजर्वेशन का मुद्दा बेहद संवेदनशील रहा है। इसका असर अगले साल होने वाले लोकसभा चुनाव पर भी देखने को मिल सकता है। ज्‍यादातर नीतीश कुमार के इस कदम को राजनीतिक रुप से ही देख रहे हैं। वहीं विपक्ष के दलों ने I.N.D.I.A गठबंधन को बनाने और खड़ा करने में वह शुरू से काफी सक्रिय रहे हैं।
बिहार सरकार के सीएम नीतीश कुमार के दांव को सुप्रीम कोर्ट ने सन् 1992 के फैसले के सामने खड़े रहना होगा। देश की सबसे बड़ी अदालत ने तब इंदिरा साहनी बनाम भारत सरकार (Indian government) मामले में आरक्षण को लेकर बड़ा फैसला सुनाया था। वहीं फैसले में कोर्ट ने आरक्षण को लेकर 50 फीसदी की सीमा तय की थी। इसमें तमिलनाडु राज्य इकलौता अपवाद था। उसे छोड़कर सभी राज्‍यों में इसका पालन करना होता है। कई राज्‍यों में अलग-अलग समुदायों को रिजर्वेशन देने की नीति के तहत इस सीलिंग को समाप्‍त करने की मांग उठती रही है। इनमें महाराष्‍ट्र और झारखंड शामिल भी हैं। महाराष्‍ट्र और कर्नाटक में तो रिजर्वेशन के प्रस्‍ताव भी पारित कर दिए गए है। लेकिन कोर्ट ने उन प्रस्‍तावों पर अमल करने से रोक लगा दी। इस मामले में 10 फीसदी ईडब्‍लूएस कोटा अपवाद रहा है।
कोर्ट ने 27 फीसदी ओबीसी आरक्षण को रखा था कामय
मीडिया रिपोर्ट के मुताविक सुप्रीम कोर्ट सन् 1992 में 9 जजों की संवैधानिक पीठ ने 6-3 के बहुमत से फैसला सुनाया था। जिसमें 27 फीसदी ओबीसी आरक्षण को कामय रखा था। सिर्फ अपवादों को छोड़ उसने आरक्षण की पचास फीसदी सीमा तय करने का फैसला सुनाया था। वहीं बाद में 1994 में 76वां संशोधन हुआ था। इसके अनुसार तमिलनाडु में रिजर्वेशन की सीमा 50 फीसदी से ज्‍यादा कर दी गई थी। यह संशोधन संविधान की 9वीं अनुसूची में शामिल किया गया है।
पिछले कुछ सालों में भाजपा (BJP) की सफलता की एक बड़ी वजह कई जातियों का उसके साथ जुड़े रहा है। उसका फोकस जाति के अलावा हिंदुओं को एक करने पर भी रहा है। पीएम नरेंद्र मोदी से लेकर भाजपा के बड़े दिग्‍गज नेता तक जातिवाद और क्षेत्रवाद पर निशाना साधते रहे हैं। हाल ही में पीएम ने जातिवाद और क्षेत्रवाद को समाज की बड़ी बुराई बताया था। उन्‍होंने इनके सहारे देश को विभाजित करने वाली ताकतों को उखाड़ फेंकने की अपील की थी।

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