क्या हैं हलाल-सर्टिफाइड प्रोडक्ट.. जिस पर योगी सरकार ने लगाया बैन?

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ज्योति शिंदे, ख़बरीमीडिया
Halal-Certified Products:
उत्तर प्रदेश सरकार ने हलाल-सर्टिफाइड प्रोडक्ट पर बैन (Ban) लगा दिया है। सरकार का दावा है कि इससे खाद्य पदार्थों (Food Products) की क्वालिटी को लेकर भ्रम होता है। हलाल सर्टिफिकेशन (Halal Certification) से 30 हजार करोड़ रुपये की कमाई का लालच है। हलाल सर्टिफिकेट लेने की कतार में फाइव स्टार होटलों से लेकर रेस्टोरेंट तक शामिल हैं। देश में 400 एफएमसीजी कंपनियों (FMCG Companies) ने हलाल सर्टिफिकेट ले लिया है। अब पतंजलि भी शामिल है।

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आपको बता दें कि उत्तर प्रदेश की योगी सरकार (Yogi Government) ने शनिवार 18 नवंबर को हलाल सर्टिफिकेशन वाले खाद्य पदार्थों को बनाने, बेचने और भंडारण पर तत्काल प्रभाव से बैन लगा दिया। यूपी सरकार ने कहा कि तेल, साबुन, टूथपेस्ट और शहद जैसे शाकाहारी प्रोडक्ट्स (Vegetarian Products) के लिए हलाल प्रमाणपत्र जरूरी नहीं है। सरकार ने दावा किया है कि यह प्रतिबंध सार्वजनिक स्वास्थ्य के हित में और भ्रम को रोकने के लिए है। यूपी सरकार के आदेश में कहा गया है कि खाद्य उत्पादों का हलाल प्रमाणीकरण से खाद्य पदार्थों की गुणवत्ता के बारे में भ्रम पैदा होता है। और यह पूरी तरह से कानून मूल इरादे के खिलाफ है।

2020 में पतंजलि को भी हलाल सर्टिफिकेट लेना पड़ा

विमानन सेवाओं, स्विगी जोमैटो और फूड चेन (Food Chain) इसके बिना काम नहीं करती हैं। यूपी में हलाल सर्टिफिकेट लेने वाले होटलों व रेस्तरां की संख्या लगभग 1,400 है। यहां हलाल सर्टिफाइड उत्पादों का बाजार 30 हजार करोड़ रुपये का है। ऐसे में इससे कहीं अधिक कमाई का लालच कंपनियों को है। इसके प्रभाव का असर ऐसे समझा जा सकता है कि साल 2020 में योग गुरु रामदेव की कंपनी पतंजलि (Patanjali) को भी हलाल सर्टिफिकेट लेना पड़ा था। क्योंकि आर्गेनाइजेशन ऑफ इस्लामिक कोऑपरेशन के तहत आने वाले 57 देशों में उत्पाद बेचने के लिए यह सर्टिफिकेट जरूरी है। आचार्य बालकृष्ण को सफाई देनी पड़ी थी कि आयुर्वेदिक दवाओं के लिए हलाल सर्टिफिकेट लिया है। जिनकी अरब देशों में काफी मांग है।

जानिए क्या होता है हलाल सर्टिफिकेशन?

वह प्रोडक्ट जो इस्लामी कानून (Islamic Law) की आवश्यकता को पूरा करते हैं। और मुसलमानों के इस्तेमाल करने के लिए उपयुक्त हैं। उन्हें हलाल सर्टिफाइड प्रोडक्ट कहा जाता है। हलाल एक अरबी शब्द है जिसका मतलब होता है अनुमति। वहीं कई कंपनियां अपने उत्पादों पर हलाल सर्टिफाइड का स्टाम्प (Stamp) लगाती हैं।
गौरतलब है कि हलाल सर्टिफिकेशन पहली बार 1974 में वध किए गए मांस के लिए शुरू किया गया था। लेकिन इससे पहले हलाल सर्टिफिकेशन का कोई रिकॉर्ड नहीं मिलता है। हलाल मांस का मतलब वह मांस है जिसे इस्लामी प्रक्रिया की मदद से हासिल किया जाता है। इसके मुताबिक जानवर को गले की अन्न प्रणाली और गले की नसें काट कर मारा जाता है। लेकिन 1993 में हलाल प्रमाणीकरण सिर्फ मांस तक सीमित नहीं रहा। और इसे अन्य उत्पादों पर लागू किया गया।

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हलाल और हराम में अंतर

हलाल सिर्फ मांस तक सीमित नहीं है। इस्लामिक काउंसिल (Islamic Council) के अनुसार हलाल एक अरबी शब्द है। इसका अर्थ होता है कानून सम्मत या जिसकी इस्लामिक कानून में दी गई हो। ये शब्द खाने-पीने की चीजों, मीट, कॉस्मेटिक्स, दवाइयां आदि सब पर लागू होता है। हराम उसका ठीक उलट होता है। यानी जो चीज इस्लाम में वर्जित है। लिपस्टिक से लेकर दवाइयां तक सभी को दोनों में बांटा जा सकता है। हलाल सर्टिफिकेशन के लिए सुअर या सुअर के मांस से जुड़ी चीज और अल्कोहल को खासतौर पर ध्यान में रखा जाता है।

गैर मांस प्रोडक्ट को हलाल प्रमाणपत्र क्यों मिलते हैं?

बता दें कि वंदे भारत ट्रेन में चाय प्रीमिक्स के एक पाउच को लेकर हंगामा हो गया। इस पर कंपनी ने बताया कि सर्टिफिकेशन अन्य देशों के लिए था। क्योंकि वे उस चाय का निर्यात करते थे। अब हलाल सर्टिफिकेशन मांस तक ही सीमित नहीं है। कुछ कॉस्मेटिक आइटम्स में भी इसकी जरूरत होती है। इसके जरिए यह दर्शाया जाता कि इन प्रोडक्ट्स में शराब, सुअर की चर्बी आदि जैसे कोई हराम प्रोडक्ट्स का इस्तेमाल नहीं किया गया है।

ऐसे में तो हर धर्म जारी करे सर्टिफिकेट

वंदे भारत एक्सप्रेस (Vande Bharat Express) के स्टाफ के जवाब पर सोशल मीडिया में बहस छिड़ गई। लोगों ने तर्क दिया कि क्या अकाल तख्त उपभोक्ता वस्तुओं को अपनी मुहर और प्रमाणन देता है? क्या ईसाइयों के सर्वोच्च धर्मगुरु वेटिकन सिटी से इस तरह का सर्टिफिकेट देते हैं? क्या तिब्बती बौद्धों द्वारा उपयोग किए जाने वाले उत्पादों पर दलाई लामा अपनी मुहर लगाते हैं? हिंदू आखिर कहां आवेदन करते हैं? ये भी सवाल उठे कि हलाल प्रमाणपत्र स्वीकार करने का मतलब है कि आईएसआई और एफएसएसएआई जैसे उपभोक्ता उत्पादों पर मौजूदा सरकारी प्रमाणपत्र किसी काम के नहीं है।

19 प्रतिशत हलाल उत्पादों की ग्लोबल स्तर पर हिस्सेदारी

एड्राइट रिसर्च (Adrite Research) और हलाल काउंसिल ऑफ इंडिया के मुताबिक हलाल उत्पादों की ग्लोबल स्तर पर हिस्सेदारी 19% की है। ये बाजार करीब 7 खरब डॉलर यानी 7.5 लाख करोड़ रुपये से अधिक का है। भारतीय कंपनियों और होटलों की हिस्सेदारी करीब 80 हजार करोड़ रुपये है। हलाल उत्पादों के कारोबार में केवल मांस ही नहीं है। खाने की सारी चीजें पेय पदार्थ और दवाएं भी शामिल हैं। ऐसे में कंपनियों को लगता है कि हलाल की बढ़ती मांग को नजरअंदाज करने से बड़ा नुकसान होगा।
हलाल सर्टिफिकेट प्रमुख रूप से हलाल इंडिया प्राईवेट लिमिटेड, हलाल सर्टिफिकेशन सर्विसेज इंडिया प्राईवेट लिमिटेड, जमीयत उलमा ए महाराष्ट्र और जमीयत उलेमा ए हिंद हलाल ट्रस्ट देते हैं। भारत में सरकारी संस्था ऐसा कोई सर्टिफिकेट जारी नहीं करती है। इस्लामिक देशों में निर्यात के लिए उत्पाद का हलाल सर्टिफाइड होना जरूरी है। इसकी देखादेखी देश में भी हलाल सर्टिफाइड उत्पादों की मांग बढ़ गई। इसका फायदा सर्टिफाई करने वाली कंपनियां उठा रही हैं।

जानिए कौन देता है हलाल प्रमाणपत्र?

प्रोडक्टों को आयात करने वाले देशों को भारत में किसी मान्यता प्राप्त निजी संगठन से हलाल प्रमाणपत्र (Halal Certificate) लेना होता है। क्योंकि इस क्षेत्र में कोई सरकारी विनियमन नहीं है। वाणिज्य मंत्रालय ने इस साल की शुरुआत में हलाल प्रमाणीकरण पर दिशा निर्देश जारी किया था। जिसमें कहा गया था कि कृषि और प्रोसेस फूड प्रोडक्ट्स को इसकी निगरानी नामित किया जाएगा।

सुप्रीम कोर्ट में साल 2020 में दाखिल हो चुकी है याचिका

मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक 22 अप्रैल 2020 को सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) में हलाल सर्टिफिकेशन के खिलाफ याचिका दायर की गई थी। इसमें कहा गया है कि देश के 15 फीसदी लोगों के लिए 85 फीसदी आबादी को उनकी इच्छा के विरुद्ध हलाल प्रमाणित वस्तुओं के इस्तेमाल के लिए मजबूर किया जा रहा है। वहीं सर्टिफिकेट निजी संस्थाएं जारी करती हैं। लिहाजा पाबंदी लगनी चाहिए। वकील विभोर आनंद की याचिका में कहा गया कि ये गैर मुस्लिमों के मूल अधिकारों का हनन है। एक धर्मनिरपेक्ष देश में किसी एक धर्म की मान्यताओं व विश्वास को दूसरे धर्म पर थोपा नहीं जा सकता है।

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