हरियाणा सहकारिता घोटाले का सच आएगा सामने..CM खट्टर ने दिए जांच के आदेश

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Haryana News: हरियाणा सहकारिता घोटाले का सच सामने आएगा। हरियाणा में सौ करोड़ सहकारिता घोटाले की जांच का दायरा बढ़ाकर मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर (Chief Minister Manohar Lal Khattar) ने मास्टर स्ट्रोक खेला है। उन्होंने साल 1995 से अब तक सहकारिता विभाग (Co-Operation Department) की एकीकृत सहकारिता विकास परियोजना (ICDP) का ऑडिट कराने के फैसले से कांग्रेस को भी सकते में डाल दिया है। सीएम मनोहर लाल खट्टर जांच के आदेश दिए। पढ़िए पूरी खबर…
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मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर (Chief Minister Manohar Lal Khattar) ने यह फैसला तब किया है जब विपक्ष उन्हें इस घोटाले को ढाल बनाकर विधानसभा में घेरने की तैयारी में है। विपक्ष इस बार 20 फरवरी से शुरू होने वाले बजट सत्र में सरकार के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव लाने वाला है। उसका आधार इस घोटाले को ही बनाया गया है।

लेकिन अब जांच केवल सीएम मनोहर का पिछले कार्यकाल की ही नहीं, बल्कि सूबे के 4 पूर्व मुख्यमंत्रियों के कार्यकाल की भी होगी। इसमें पूर्व मुख्यमंत्री और वर्तमान नेता प्रतिपक्ष भूपेंद्र सिंह हुड्‌डा का कार्यकाल भी शामिल है। उनके साथ पूर्व सीएम भजनलाल, बंसीलाल ओमप्रकाश चौटाला और वर्तमान सीएम मनोहर लाल के कार्यकाल में केंद्र और राज्य सरकार द्वारा भेजी गई ग्रांट की जांच की जाएगी।

जांच का दायरा बढ़ जाने के कारण इसमें कई बड़े ब्यूरोक्रेट्स (Bureaucrats) भी आएंगे। 1995 से अब तक 31 आईएएस (IAS) सहकारिता विभाग में रजिस्ट्रार रह चुके हैं। इस दौरान सूबे के 19 जिलों में 270 करोड़ रुपए जारी किए गए हैं।

जानिए सहकारिता घोटाला क्या है?

हरियाणा के सहकारिता विभाग की एकीकृत सहकारी विकास परियोजना (ICDP) में एंटी करप्शन ब्यूरो ने जो घोटाला पकड़ा है। वह 2018 से 2021 के बीच का है। जबकि इसमें साल 2010-11 से घोटाला चला आ रहा है।

एसीबी के सूत्रों का कहना है कि सहकारिता विभाग के अधिकारी खुद को बचाने के लिए बेशक बार-बार दावा कर रहे हैं कि उन्होंने बिना खर्च हुई राशि फील्ड (Amount Field) से वापस मंगवा ली थी। लेकिन एसीबी के पास पुख्ता सबूत हैं, जिनके आधार पर कहा जा सकता है कि घोटाला 100 करोड़ का न होकर 180 करोड़ या इससे भी काफी बड़ा है।

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इस घोटाले की मास्टरमाइंड विभाग की असिस्टेंट रजिस्ट्रार अनु कौशिश को बनाया गया है जबकि प्राइवेट कंपनी मालिक स्टालिन जीत सिंह भी मुख्य आरोपी है।

साल 1995 से कौन-कौन और कब रहा सीएम?

हरियाणा (Haryana) में चौधरी भजनलाल ने 23 जून 1991 को मुख्यमंत्री पद की शपथ ली। इसके बाद वह 10 मई 1996 तक हरियाणा की सत्ता पर काबिज रहे। इसके बाद 15 जून 1996 को बंसीलाल का कार्यकाल शुरू हुआ, जो 24 जुलाई 1999 तक जारी रहा। उसके बाद ओमप्रकाश चौटाला 9 महीने के लिए मुख्यमंत्री बने। इस दौरान उनका कार्यकाल 24 जुलाई 1999 से 2 मार्च 2000 तक रहा। इसके बाद फिर से वह मुख्यमंत्री बने।

उन्होंने 4 मार्च तक 2005 तक हरियाणा पर राज किया। फिर कांग्रेस सत्ता में आई और भूपेंद्र सिंह हुड्‌डा मुख्यमंत्री बने। वह लगातार 5 मार्च 2005 से 19 अक्टूबर 2014 तक मुख्यमंत्री रहे। इसके बाद भाजपा आई, और मनोहर लाल मुख्यमंत्री बने। वह 26 अक्टूबर 2014 से अभी सत्ता में काबिज हैं।

घोटाले का सच लोकसभा चुनाव से पहले आएगा

मुख्यमंत्री के फैसले के बाद सहकारिता विभाग अपने स्तर पर इस घोटाले की जांच करेगा। प्राइवेट चार्टर्ड अकाउंट फर्म इसकी फॉरेंसिक जांच और ऑडिट करेंगी। यह जांच 3 महीने में पूरी होगी। यानी लोकसभा चुनाव (Lok Sabha Elections) से पहले ही इस घोटाले का असली सच सबके सामने आ जाएगा। क्योंकि 29 साल से सहकारिता विभाग में जारी हुई ग्रांट का ऑडिट नहीं हुआ है। ऐसे में घोटाले की राशि सौ करोड़ से बहुत आगे बढ़ने की संभावना है।

कांग्रेस दूसरी बार लाने जा रही अविश्वास प्रस्ताव

घोटाला सामने आने के बाद कांग्रेस ने भी सरकार (Government) को घेरने की पूरी तैयारी कर ली है। पार्टी की रणनीति है कि हरियाणा के बजट सत्र में सरकार को घेरा जाए, और अविश्वास प्रस्ताव लाया जाए। बीते बुधवार को चंडीगढ़ में हुई विधायक दल की बैठक में इसे लेकर फैसला किया गया है। खट्टर सरकार के खिलाफ यह दूसरा अविश्वास प्रस्ताव होगा।

पूर्व सीएम भूपेंद्र सिंह हुड्‌डा की अध्यक्षता में हुई इस मीटिंग (Meeting) में आयुष्मान, खनन और एफपीओ घोटाले को भी मुद्दा बनाने पर फैसला लिया गया। इसके अलावा प्रदेश में बेरोजगारी, कौशल रोजगार निगम की गड़बड़ियों, युवाओं को युद्ध क्षेत्र इजराइल में भेजने, हरियाणा की भर्तियों में बाहरियों को प्राथमिकता देने, भर्ती घोटालों और अग्निपथ योजना जैसे मुद्दों पर भी सरकार से जवाब मांगा जाएगा।

10 अफसरों समेत 14 गिरफ्तार

बता दें कि साल 2017 से आईसीडीपी के नोडल अधिकारी (Nodal Officer) की जिम्मेदारी संभाल रहे एडिशनल रजिस्ट्रार नरेश गोयल को बर्खास्त करने के बाद उनकी जगह ज्वाइंट रजिस्ट्रार योगेश शर्मा को लगाया गया है। एसीबी ने मामले की गहनता से जांच करते हुए इसमें संलिप्त 6 गैजटेड अधिकारियों, आईसीडीपी रेवाड़ी के 4 अन्य अधिकारियों और 4 निजी व्यक्तियों की गिरफ्तारी की है।