Nasa

Nasa: ब्रह्मांड में जन्मा नया राक्षस, गैस, धूल सब चट कर जा रहा है

TOP स्टोरी Trending
Spread the love

Nasa: ब्रह्मांड में ग्रहों के निर्माण से जुड़ी एक चौंकाने वाली खोज सामने आई है।

Nasa: ब्रह्मांड में ग्रहों के निर्माण से जुड़ी एक चौंकाने वाली खोज सामने आई है। स्टॉकहोम यूनिवर्सिटी के वैज्ञानिकों ने जेम्स वेब स्पेस टेलिस्कोप (JWST) की मदद से एक ऐसी प्रोटोप्लैनेट डिस्क (गैस और धूल का घेरा) की पहचान की है, जो ग्रह निर्माण की प्रक्रिया में है। लेकिन इसकी सबसे बड़ी खासियत यह है कि इसमें पानी लगभग गायब है, और उसकी जगह कार्बन डाइऑक्साइड (CO₂) की भरमार है। इस खोज को Astronomy & Astrophysics जर्नल में प्रकाशित किया गया है।

Pic Social Media

कैसे बनते हैं ग्रह?

जब कोई तारा बनता है, तो उसके चारों ओर गैस और धूल का एक घेरा बनता है, जिसे वैज्ञानिक ‘डिस्क’ कहते हैं। इसी डिस्क से धीरे-धीरे ग्रहों का निर्माण होता है। आम तौर पर इस डिस्क के अंदरूनी हिस्से में पानी की भाप बहुत अधिक होती है, क्योंकि बाहर से आने वाले बर्फीले कण गर्म होकर पिघलते हैं और भाप बनाते हैं।

लेकिन इस बार जो डिस्क देखी गई है, उसमें पानी लगभग गायब है और उसकी जगह कार्बन डाइऑक्साइड का प्रभुत्व है यह वैज्ञानिकों के लिए एक बड़ा सवाल बन गया है।

पुराने साइंस मॉडल पर सवाल

इस रिसर्च की प्रमुख वैज्ञानिक जेनी फ्रीडियानी के अनुसार, इतनी मात्रा में कार्बन डाइऑक्साइड की मौजूदगी को मौजूदा विज्ञान मॉडल से समझाना बेहद मुश्किल है। दूसरी ओर, टीम के सदस्य अर्जन बीक का मानना है कि इस डिस्क पर तेज़ पराबैंगनी किरणों (UV Radiation) का असर पड़ा है, जो या तो उसी तारे से या आसपास मौजूद बड़े तारों से आई होंगी। इन किरणों ने डिस्क की पूरी रासायनिक संरचना को बदल दिया होगा।

ये भी पढ़ेंः Jio: Jio का ख़ास चश्मा, कॉलिंग, फोटोग्राफी के साथ वीडियो भी कर सकते रिकॉर्ड

उल्कापिंडों और धूमकेतुओं से जुड़ता है कनेक्शन

जेम्स वेब टेलिस्कोप के MIRI इंस्ट्रूमेंट ने न केवल कार्बन डाइऑक्साइड, बल्कि उसके आइसोटोप्स (विशेष रूप जैसे कार्बन-13 और ऑक्सीजन वेरिएंट) को भी पकड़ लिया है। यह वही सिग्नेचर हैं जो वैज्ञानिकों को पहले उल्कापिंडों और धूमकेतुओं में भी मिले हैं।

इसका मतलब है कि यह खोज हमारे सौर मंडल की शुरुआती रचना को समझने में मदद कर सकती है यह कि ग्रह कैसे बने, उनकी रसायन प्रक्रिया कैसे बदली और वे जीवन योग्य बने या नहीं, इस दिशा में यह एक अहम कदम है।

कितनी दूर है यह रहस्यमयी डिस्क?

यह डिस्क NGC 6357 नामक क्षेत्र में देखी गई है, जो धरती से लगभग 5,542 प्रकाश-वर्ष दूर है। इस जगह को “स्टार फैक्ट्री” के नाम से भी जाना जाता है क्योंकि यहां लगातार नए तारे जन्म लेते रहते हैं।

यह शोध XUE प्रोजेक्ट के तहत किया गया है, जिसका उद्देश्य यह समझना है कि तेज़ विकिरण से भरपूर इलाकों में डिस्क की रसायन प्रक्रिया कैसे बदलती है और उसका ग्रह निर्माण व उनकी जीवन-योग्यता पर क्या असर पड़ता है।

ये भी पढ़ेंः Adani’s Luxury Jet: अदानी ने खरीदा 1000 करोड़ का प्राइवेट जेट, इंटीरियर 5 स्टार होटल जैसा

जेम्स वेब की तकनीकी ताकत

इस खोज में जेम्स वेब टेलिस्कोप के MIRI इंस्ट्रूमेंट ने अहम भूमिका निभाई। यह इंस्ट्रूमेंट इन्फ्रारेड रोशनी में गैस और धूल के बीच छिपी चीजों को साफ-साफ देख सकता है। स्वीडन की यूनिवर्सिटियों के सहयोग से इस टेलिस्कोप ने ऐसी बारीक जानकारी दी, जो पहले संभव नहीं थी। यह खोज न केवल ग्रह निर्माण की प्रक्रिया को समझने में मदद करेगी, बल्कि हमारे सौर मंडल के इतिहास को भी उजागर कर सकती है।