आजतक के आकाशदीप की आख़िरी तस्वीर..आख़िरी पोस्ट

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ज्योति शिंदे के साथ राहुल त्रिपाठी, ख़बरीमीडिया

31 साल का आकाशदीप..इंडिया टुडे ग्रुप(India Today Group) जैसा संस्थान..असिस्टेंट एडिटर डिजिटल आजतक(Assitant Editor Digital-AajTak)..मतलब पद भी ठीक-ठाक..20 दिन पहले प्रमोशन..लेकिन पंखे से लटककर जान दे दी। मतलब मन में जिंदगी को लेकर बड़ी पीड़ा हुई होगी..किसी ने मरहम लगाने की जगह जख़्म कुदेर दिए होंगे.. नहीं तो आकाशदीप तो क्या ..कोई भी इंसान ज़िंदगी ख़त्म करने वाला क़दम नहीं उठाता।

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ज़िदंगी ख़त्म करने की इंसान तभी सोचता है जब उसके सारे रास्ते बंद हो चुके होते हैं। फिर भी ज़िंदगी ख़त्म किए बिना ही उन बंद रास्तों को फिर से खोला जा सकता था। आकाशदीप ने कोशिश भी की होगी। लेकिन शायद उनसे मुमकिन नहीं हो पाया। आकाश चिर अनंत में चला गया..लेकिन अपने आखिरी पोस्ट में जाने से पहले उसने दर्द बयां कर दिया।

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आकाशदीप की दोस्त रंजना त्रिपाठी उनके बारे में क्या लिखती हैं ये भी पढ़ लीजिए

रंजना त्रिपाठी-

इसकी मौत की जो भी वजहें बताई जा रही हैं, सब गलत हैं… इसकी जान लोगों ने ली है और वजह बताने वाले वही लोग हैं, जो इसके पीछे की वजह हैं… दुनिया कितनी गंदी है. किसी की मौत के बाद तो उसे सम्मान दे सकती है. जीते जी तो लोगों ने उसका जीना हराम कर रखा था.

इसी फरवरी की एक फोटो में हम!
आकाशदीप शुक्ला को मैं इतना ही समझ पाई थी पिछले आठ सालों में… फोन करते ही, उधर से Hello या Hi की अवाज़ नहीं आती थी, वो फोन उठाते ही कहता था ‘हां बोलो, कैसी हो? तुम ठीक तो हो न?’ फोन चाहे वो करता था या फिर मैं, उसका पहला सेंटेंस यही होता था… वो मेरे बारे में क्या सोचता था क्या नहीं अब इस बात से कोई फरक नहीं पड़ता क्योंकि वो अब इस दुनिया में नहीं रहा, लेकिन मैं उसे इतना ही समझ पाई थी, कि बड़े करीबी लोग देखे हैं, लेकिन वो फोन करते हुए इस तरह तो हाल नहीं लेते हैं, जैसे इस लड़के को बस इस बात से “फरक पड़ता था” कि मैं ठीक हूं कि नहीं.

मन अच्छा नहीं दोपहर से, इस खबर के बाद कैसे अच्छा रह सकता है? खबर के बाद इसे फोन भी किया, क्योंकि लगा खबर झूठी है और ये फोन उठा लेगा और कहेगा, ‘देख रही हो लोग क्या-क्या बातें चला रहे हैं अब मेरे बारे में…’ लेकिन 4 bell बजने के बाद मैंने फोन काट दिया और काफी देर के लिए एक अलग ही दुनिया में चली गई… लखनऊ-हरदोई-बेंगलोर-नोएडा की नजाने कितनी तस्वीरें मेरी आंखों के सामने घूम गईं. मैं कुछ पलों में आठ सालों का सफर तय करके आ गई और मैसिज जहां से आया था आकाश के जाने का उस नंबर पर फोन मिलाने लगी. जब आप किसी को बेहद करीब से जानते हैं, तो बहुत बुरा लगता है… बहुत ज्यादा बुरा लगता है. तकलीफ होती है यार… तकलीफ समझते हैं न आप लोग?

करीब 8 साल से जानती थी मैं इस नालायक लड़के को… ‘नालायक’, हमेशा इसके लिए इसके मुंह पर मेरी ज़ुबान से पहला शब्द यही आता था और ये मुस्कुरा कर एक तरफ की भोंहें चढ़ाकर कहता था, ‘तुम ही हो जो मुझे ऐसे नालायक कह देती हो और सच कहूं मुझे अच्छा लगता है.’ पांच दिन पहले ही तो बात हुई थी और मैसिजिस में तो अक्सर ही हो जाती थी और अगर इंस्टा पर कोई रील या पोस्ट डाल दी, तो इसका मैसिज आ ही जाता था. कभी-कभी अपनी पोस्ट्स से डरा भी देता था और मैं इनबॉक्स करके पूछ लेती थी, सब ठीक तो है न?

मैं बहुत कम किसी को परेशान करती हूं, जीवन के अधिकतर मसले अकेले ही निपटा लेती हूं, क्योंकि जानती हूं आसपास चिकनी-चुपड़ी बातें बनाने वाले, नकली बातें करने वाले, आपका इस्तेमाल करने वाले लोग भारी संख्या में बिखरे पड़े हैं, इसलिए दूसरों पर निर्भरता जितनी कम हो, जीवन उतना बेहतर और आसान होता है. पार्टी करने के लिए आपके आसपास लोगों की एक भीड़ होती है, लेकिन उन्हीं लोगों में से काम के लिए किसी को याद करके तो देखिए, एक भी काम नहीं आएगा… तो ऐसा काम किया ही क्यों जाये जिसका अंजाम आपको पहले से पता हो… लेकिन, आकाश ऐसा नहीं था… मिलते ही चेहरा देख कर मन का हाल जान जाता था और बिंदास पूछ बैठता था, ‘परेशान हो किसी बात से? तुम तो उदास बिल्कुल न रहा करो, उदासी तुम्हारे चेहरे पर इतनी-सी भी अच्छी नहीं लगती. मैं कुछ कर नहीं सकता हूं, लेकिन तुमको हंसा ज़रूर सकता हूं बोलो हंसोगी..’ और मैं हंस देती थी.

आकाश मुझसे उम्र में छोटा था, लेकिन मुझे तुम करके बात करता था पहले दिन से, मैंने उसे कभी टोका भी नहीं. शायद वो कंफर्टेबल था मेरे साथ ऐसे ही बात करने में. मेरे पास हर उम्र के दोस्त हैं और दोस्ती में मैं कभी उम्र और पोज़िशन पर ध्यान नहीं देती, बस इंसान पर ध्यान देती हूं. सामने वाला ईमानदार, सरल और सहज होता है, तो वो मेरी मित्रता सूची में शामिल हो ही जाता है, और वो चाहे कोई भी हो लेकिन अगर उसके भीतर मनुष्यता नहीं है और मुझे इस बात का हल्का-सा भी एहसास हो जाए कि ये नकली है तो मैं खामोशी से दूरी बना लेती हूं बिना कोई शिकायत किए. आकाश अच्छा इंसान था, इसके भीतर मनुष्यता थी.

ये किसी के बारे में कभी कोई गलत बात नहीं करता था, उनके बारे में भी नहीं जो लोग इसके बारे में जाने-अनजाने बुरा कहते या सोचते भी होते होंगे…क्योंकि ये हरदोई से था और हरदोई शहर से मेरा रिश्ता रहा है, एक समय में उस शहर मेरा आना जाना भी काफी रहा है, तो वहां के किस्से भी इसके पास खूब होते थे, लेकिन इसकी बातें हमेशा खुद के बारे में हुआ करती थीं, दूसरों के बारे में नहीं. ज़िंदगी में आगे बढ़ना चाहता था, करियर में ग्रो करना चाहता था. ये सच है कि पर्सनल लेवल पर परेशान था काफी समय से, लेकिन उसको भी ऐसे दिखाता था, जैसे सब लाइट है… हैंडल हो जाएगा… जैसे इसके पास तो हर प्रॉब्लम का सॉल्युशन है!

आकाश तुम्हें ऐसे तो बिल्कुल नहीं जाना था… तुमसे बात करके कितनी बार मुझे हिम्मत मिली… आज जब खबर मेरे पास आई दोपहर में तो लगा खबर झूठी है, जो पिछले हफ्ते तक नॉर्मल बात कर रहा था, वो अचानक से ऐसा क्यों कर जाएगा? और किया भी तो मुझे एहसास क्यों नहीं हुआ इस बात का? क्या मुझे बताना नहीं चाहता था? एक बार कह कर तो देखता, शायद मैं कुछ कर पाती, कुछ न कर पाती तो सुनती ज़रूर जैसे कि इसे हमेशा ही सुनती रहती थी, क्योंकि मेरे साथ होते हुए ये ज्यादा बोलता था मैं अच्छे श्रोता की तरह इसे सुनती थी, जो कि मैं अधिकतर लोगों के साथ होती हूं, मैं अकेले में अपनेआप से ढेर सारी बातें करने वाली इंसान हूं, इसलिए लोगों के सामने बोलना कम पसंद है, लेकिन फिर भी हमारी उम्र में कोई खास अंतर नहीं था थोड़ी ही बड़ी थी मैं इससे तो बातें ढेर सारी हो जाया करती थीं…

इस लड़के की सबसे अच्छी बात पता है क्या थी? ये लड़का स्वाभिमानी था, बहुत ज्यादा स्वाभिमानी… रोना-गिड़गिड़ाना इसको आता नहीं था, ना ही चिकनी-चुपड़ी बातें करना. जो अच्छा है वो अच्छा है, जो बुरा है वो बुरा है लेकिन बुरा कहने के लिए इसके पास बहुत ही कम कुछ होता था. अच्छी ही बातें करता था हमेशा. और सॉल्युशन होता था इसके पास, प्लान्स होते थे, सपने देखता था, और उन्हें पूरा भी करना चाहता था. फिर वही बात, कि करियर में आगे बढ़ना चाहता था, अच्छा काम करना चाहता था, अपने मन का कुछ, जिसमें इसे अपनी प्रतिभा को दिखाने का भरपूर मौका मिले. क्योंकि प्रतिभावान था, इसमें कोई संदेह नहीं. अच्छा लिखता था, अच्छा दिखता था, अच्छा गाता था, अच्छी आवाज़ थी, जिस फील्ड में था उस हिसाब से स्क्रीन प्रेजेंस अच्छा था इसका… मतलब अगर रुक जाता थोड़ा-सा और तो बहुत कुछ करने की संभावनाएं थी इसके भीतर. लेकिन वो शायद इतने ही दिनों के लिए था.

आमतौर पर, किसी के इस तरह जाने के बाद लोग कहते हैं, ‘अरे वो तो बहुत कमज़ोर था… अरे उसमें तो फलां-फलां ऐब थे… अरे आत्महत्या क्यों कर ली… वो तो बहुत समझदार था…’ और भी सौ तरह की बातें, लेकिन पता है सच ये बिल्कुल नहीं होता, कि कोई नासमझ होता है, कमज़ोर होता है, बेवकूफ होता है, तो आत्महत्या कर लेता है, बल्कि इंसान जिस समाज में रह रहा होता है, वो समाज इतना क्रूर है कि किसी को जिस स्तर तक परेशान कर सकता है परेशान करने में कोई कसर नहीं छोड़ता.

इंसान किसी को भी पर्सनली, प्रोफेशनली, सोशली परेशान करने से पहले ये क्यों नहीं सोचता कि इस जगह पर ‘मैं’ होता/होती तो क्या मैं अपने आसपास की दुनिया से ये सब पाने की उम्मीद रखता? नहीं न? फिर हम दूसरे के साथ इतने क्रूर कैसे हो जाते हैं? कैसे किसी के जीते जी उसे जी भर कर सताने के सारे हथियार खोल देते हैं? कैसे अपने सारे जाल बिछा देते हैं सामने वाले को जकड़ने के… क्या आपका बेटा-भाई-भांजा-भतीजा-साला-साढ़ू होंगे, तो उनके लिए भी आप उन्हें परेशान करने के सारे औज़ार उठा लेंगे? नहीं न? तो फिर हर इंसान को आप ‘स्वयं’ की तरह क्यों नहीं देखते?

हम उस दुनिया में रहते हैं, जहां पुरुष हो या महिला वो किसी को भी परेशान करने के लिए अपना स्तर किसी भी हद तक नीचे गिरा सकते हैं. किसी के बारे में दुष्प्रचार करके, किसी का करियर बरबाद करके, किसी के बारे में सैकड़ों कहानियां बना करके. और इंसान तब तक इस बात को नहीं समझता, जब तक कि सामने वाला कोई ऐसा कदम नहीं उठा लेता जैसा कि आकाश ने उठाया… क्योंकि मतलब तो साफ है, बिना वजह ही तो उसने अपने जीवन को समाप्त कर नहीं लिया… कोई तो बड़ी वजह रही होगी, जिसने उसे इतना परेशान कर दिया कि उसे ये कदम उठाना पड़ा, लेकिन वो कमज़ोर बिल्कुल नहीं था, बहुत बहादुर लड़का था.

उसे सबसे ज्यादा प्यार अपनी मां से था, और अपने भाई और बहन से भी. बहन की शादी के बाद एक निश्चिंतता देखी थी मैंने उसकी बातों में और मामा बनने के बाद तो वो खुशी से पागल ही हो गया था, बहुत प्यार था उसे उस नन्हीं परी से जो अब अपने मामा से कभी नहीं मिल पाएगी. अपने पिता के लिए भी वह अक्सर परेशान रहता था, चाहता था पिताजी को जीवन के सारे सुख दे दे. उसने अपने स्तर पर बहुत कुछ बनाने और संभाले रखने की कोशिश भी की. मैं परिवार के प्रति उसके प्रेम को देखकर हमेशा उससे कहती थी, ‘तुम बहुत अच्छे बेटे हो आकाश, तुम्हारी मां दुनिया की उन खुशनसीब मांओं में है जिसे इतना प्यार करने वाला बेटा मिला है. उससे जितना हो सका उसने अपने सभी रिश्तों को ईमानदारी से निभाने की कोशिश की…’

आकाश जा चुका है, मां-पिता की आंखों में ज़िंदगी भर के आंसू छोड़कर… लेकिन लोग उसकी मौत के बाद भी कहानियां बनाना नहीं छोड़ेंगे, क्योंकि उसने आत्महत्या जो कर ली है, और वो उस दुनिया की निगाह में बहुत ही कमज़ोर साबित हो गया जिसने उसके भीतर के इंसान को कभी देखा ही नहीं शायद और अपनी क्रूरता के सारे स्तर पार कर दिए. वो कमज़ोर नहीं था… उसने खुद को खत्म कर लिया, इसलिए नहीं कि वो डर गया किसी बात से, बल्कि इसलिए क्योंकि अपने आसपास वो जिस दुनिया की कल्पना और जैसे लोगों की उम्मीद करके बैठा था, असल में दुनिया वैसी बिल्कुल नहीं… दुनिया बहुत ही क्रूर और बद्सूरत है और वो एक सेंसिटिव लड़का था.

हम क्यों नहीं किसी का जाना जान पाते हैं?

तू बहुत याद आएगा लड़के और वो मैगी और चाय भी जो तूने बना कर खिलाई थी मेरे ही घर में. फोन कर लेता मुझे, इतना न हुआ तेरे से इडियट? अब तू कहां है, क्या देख पा रहा है क्या नहीं इसकी भी खबर नहीं दे सकता. जाना ही था, तो आखिरी बार बात तो करके जाना था न कल. ऐसे कौन करता है. सब बातें थीं बस? जाने से पहले खयाल भी नहीं आया तूझे हम जैसे दोस्तों का जो कुछ न कर पाते, लेकिन अब तूझे याद करके हमेशा रोते ज़रूर रहेंगे. सीरियसली तू नालायक था, मैं तूझे कुछ गलत नहीं कहती थी.

मिस यू नालायक!

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