जानिए कौन थे कर्पूरी ठाकुर, जिन्हें मोदी सरकार ने की भारत रत्न देने की घोषणा

TOP स्टोरी Trending बिहार राजनीति

Karpuri Thakur: भाजपा के शासनकाल में कर्पूरी ठाकुर को भारत रत्न मिला। इससे बिहार (Bihar) में ओबीसी और अति पिछड़ों के वोट बैंक (Vote Bank) में बड़ा बदलाव की संभावना से इंकार नहीं किया जा सकता है। और जानिए कौन थे कर्पूरी ठाकुर, जिन्हें मोदी सरकार (Modi Government) ने की भारत रत्न देने की घोषणा की है। आइए समझते हैं कि कैसे मोदी सरकार ने नीतीश कुमार के जातीय जनगणना (Census) कराने के फैसले की काट तैयार कर लिया है। पढ़िए पूरी खबर…
ये भी पढ़ेः शाह का संकेत..मांझी का ट्वीट..क्या नीतीश NDA में आने वाले हैं?

Pic Social Media

बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री कर्पूरी ठाकुर (Karpoori Thakur) को मरणोपरांत भारत रत्न दिया जाएगा। मोदी सरकार के इस फैसले के बाद बिहार की राजनीति गरमा गई है। पीएम मोदी के इस मास्टर स्ट्रोक (Master Stroke) के बाद भाजपा ने बिहार में फ्रंटफुट पर बैटिंग करना शुरू कर दिया है। लोकसभा चुनाव 2024 से पहले भाजपा का यह मास्टर स्ट्रोक कहा जा रहा है। भाजपा ने बिहार के अति पिछड़ों के वोट बैंक को साधने के लिए बड़ा ऐलान किया है।

समाजवादी राजनीति के बड़े नेता रहे कर्पूरी ठाकुर

कर्पूरी ठाकुर समाजवादी राजनीति के बड़े नेता रहे हैं। आरजेडी सुप्रीमो लालू प्रसाद यादव (Lalu Prasad Yadav) और नीतीश कुमार (Nitish Kumar) कुछ हद तक ठाकुर के विरासत को आगे बढ़ाया है। लेकिन भाजपा के शासनकाल में कर्पूरी ठाकुर को भारत रत्न मिलना कई मायने में खास है।

राजनीतिक विश्लेषकों की मानें तो बिहार में ओबीसी और अति पिछड़ों के वोट बैंक में बड़ा बदलाव होने जा रहा है। कर्पूरी ठाकुर को भारत रत्न देने के ऐलान के बाद से बिहार की राजनीति में बड़ा बदलाव आ जाएगा। बिहार में ओबीसी की राजनीति पर अब अति पिछड़ों की राजनीति भारी पड़ सकती है।

बिहार में तकरीबन 36 प्रतिशत आबादी अति पिछड़ों की है। कर्पूरी ठाकुर (Karpuri Thakur) जिस जाति से आते हैं, वह जाति बिहार में अति पिछड़ों में आती है। कर्पूरी ठाकुर नाई (हज्जाम) जाति से आते हैं। इस जाति की आज भी बिहार में सामाजिक और आर्थिक दशा पिछड़ी जातियों के मुकाबले कमजोर है।

बिहार की राजनीति अब किस पर करवट लेगी?

बिहार की राजनीति (Politics) को करीब से समझने वाले राजनीतिक विश्लेषक संजीव पांडेय कहते हैं कि निश्चित रूप से यह भाजपा का मास्टर स्ट्रोक साबित होगा। क्योंकि राज्य में अति पिछड़ों की आबादी 36 प्रतिशत के आस-पास है। हाल ही में जातीय जनगणना में कर्पूरी ठाकुर जिस जाति से आते हैं, उस जाति की भागीदारी 1.59 प्रतिशत के आस-पास है।

यह जाति अति पिछड़ों में आती है और बिहार में नाई के साथ-साथ लोहार, कुम्हार, बढ़ई, कहार, सोनार समेत 114 जातियां इसमें शामिल है। ऐसे में भाजपा ने नीतीश कुमार के जातीय जनगणना का काउंटर करने की कोशिश की है।

भाजपा को लगता है कि इस फैसले के बाद अति पिछड़ा वोट भाजपा की तरफ आ आएगा। मेरी समझ से भाजपा काफी हद तक कामयाब भी हो सकती है। क्योंकि बिहार में अति पिछड़ा और ओबीसी में नही पटती है। चुनावी संभावना के नजरिए से देखें तो भाजपा का यह प्रयास गेमचेंजर साबित हो सकता है।

पिछड़ों के लिए मसीहा थे कर्पूरी ठाकुर

बता दें कि कर्पूरी ठाकुर (Karpuri Thakur) की बुधवार को ही 100वीं जन्म जयंती मनाई गई। कर्पूरी ठाकुर के बेटे और जेडीयू के राज्यसभा सांसद रामनाथ ठाकुर ने मोदी सरकार को इसके लिए धन्यवाद दिया है। ठाकुर ने कहा है कि 36 साल की तपस्या का फल मिला है। मैं अपने परिवार और बिहार की जनता की तरफ से केंद्र सरकार को धन्यवाद देता हूं।

गौरतलब है कि कर्पूरी ठाकुर का जन्म समस्तीपुर (Samastipur) जिले के पितौझिया गांव में हुआ था। कर्पूरी ठाकुर 1942 के असहयोग आंदोलन में भी हिस्सा ले चुके हैं। देश आजाद होने के बाद कर्पूरी ठाकुर पहली बार वर्ष 1952 में विधायक बने थे। कर्पूरी ठाकुर 1970 में पहली बार राज्य के मुख्यमंत्री बने। ठाकुर का मुख्यमंत्री का पहला कार्यकाल महज 163 दिन का ही रहा।

लेकिन साल 1977 में जनता पार्टी (Janata Party) की सरकार में कर्पूरी ठाकुर दूसरी बार बिहार के मुख्यमंत्री बने। कर्पूरी ठाकुर दूसरा कार्यकाल भी पूरा नहीं कर सके। बिहार में कर्पूरी ठाकुर को जन नायक कह कर पुकारा जाता है। साल 1988 में कर्पूरी ठाकुर का निधन हो गया था, लेकिन इतने साल बाद भी वो बिहार के पिछड़े और अति पिछड़े मतदाताओं के बीच काफी लोकप्रिय हैं।