Delhi का DTC कंडक्टर..15 दिन की छुट्टी का खामियाजा 31 साल भुगता

दिल्ली दिल्ली NCR

सूर्यांश सिंह, ख़बरीमीडिया
Delhi High Court:
दिल्ली ट्रांसपोर्ट कॉर्पोरेशन के एक बर्खास्त कंडक्टर और उनके परिवार को इंसाफ (Justice) मिला है। वहीं 31 सालों तक कानूनी लड़ाई लड़नी पड़ी। बीमार होने की वजह से ड्यूटी से 15 दिन तक गैरहाजिर रहने वाले बस कंडक्टर रामेश्वर दयाल (Bus Conductor Rameshwar Dayal) को डीटीसी ने बर्खास्त कर दिया। लेबर कोर्ट (Labor Court) ने कंडक्टर के पक्ष में फैसला सुनाया और नौकरी बहाल करने का आदेश दिया।

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आपको बता दें कि डीटीसी हाई कोर्ट (DTC High Court) पहुंची और सिंगल बेंच ने भी लेबर कोर्ट के फैसले पर मुहर लगाई। इस बीच कंडक्टर की मौत हो गई। इसके बावजूद डीटीसी ने सिंगल बेंच के फैसले के खिलाफ डिवीजन बेंच में अपील की। दयाल के परिजन भी उनके दामन पर लगे दाग को छुड़ाने की कानूनी जंग लड़ते रहे। आखिरकार मौत के 16 साल बाद दयाल को इंसाफ मिला। दिल्ली हाई कोर्ट (Delhi High Court) ने डीटीसी को कंडक्टर के परिवार को बकाया सैलरी और दूसरे बेनिफिट्स देने का आदेश दिया है।

डीटीसी ने मेडिकल सर्टिफिकेट्स को भी नजरअंदाज किया

मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक मामले की शुरूआत 1991 में हुई। डीटीसी के बस कंडक्टर 31 मार्च 1991 से 14 अप्रैल 1991 तक बिना किसी सूचना के ड्यूटी से गैरहाजिर रहे। दूसरी तरफ बस कंडक्टर का दावा था कि उन्होंने बीमार होने की वजह से छुट्टी ली थी और अपने भाई से लीव एप्लिकेशन (Leave Application) भेज दिया था। डीटीसी ने उनके मेडिकल सर्टिफिकेट्स को भी नजरअंदाज कर दिया और सिर्फ इस आधार पर दयाल को बर्खास्त कर दिया कि उन्होंने प्राइवेट अस्पताल में इलाज कराया था।

लेबर कोर्ट ने पक्ष में सुनाया फैसला

बता दें कि बर्खास्तगी के खिलाफ रामेश्वर दयाल (Rameshwar Dayal) लेबर कोर्ट पहुंचे। 31 मई 2003 को लेबर कोर्ट ने दयाल को क्लीन चिट देते हुए डीटीसी को उनकी नौकरी बहाल करने और बकाया सैलरी देने का आदेश दिया। लेबर कोर्ट ने अपने आदेश में कहा कि कंडक्टर ने बीमार होने की वजह से छुट्टी ली थी और छुट्टी का आवेदन अपने भाई से भेज दिया था।

साल 1992 में नौकरी से निकाल दिया था

कंडक्टर को बगैर बताए 15 दिन का अवकाश लेने के आरोप में नौकरी (Job) से निकाल दिया गया था। विभाग का आरोप था कि वह 31 मार्च 1991 से 14 अप्रैल 1991 तक बिना किसी सूचना के छुट्टी पर रहा है।

साल 2007 में कंडक्टर की हो गई थी मौत

कंडक्टर की साल 2007 में मौत हो गई। इसके बाद मृतक की विधवा पत्नी और बच्चों ने इस कानूनी लड़ाई का आगे बढ़ाया। 16 साल बाद मृतक के परिवार के पक्ष में निर्णय आया है।

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लेबर कोर्ट का फैसला डीटीसी ने किया माना

आपको बता दें कि बेंच ने कहा लेबर कोर्ट ने 31 मई 2003 को ही कंडक्टर (Conductor) को क्लीन चिट देते हुए दोबारा नौकरी पर रखने, पूर्व बकाया देने व नौकरी जारी रखते हुए तमाम भत्ते देने के निर्देश दिए थे। इस आदेश को डीटीसी की तरफ से दिल्ली हाईकोर्ट की सिंगल जज बेंच (Single Judge Bench) के समक्ष चुनौती दी गई। बेंच ने वर्ष 2007 में लेबर कोर्ट के आदेश को बरकरार रखा। साथ ही कंडक्टर को दोबारा नौकरी पर रखने के आदेश दिए। इसके बावजूद डीटीसी ने इस आदेश को हाईकोर्ट की डिवीजन बेंच के समक्ष चुनौती दे दी। अब डिविजन बेंच ने भी कंडक्टर के पक्ष में दिए गए फैसले को सही माना है।

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