ChatGPT: आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस के बढ़ते दौर में चैटबॉट्स लोगों की ज़िंदगी का अहम हिस्सा बन गए हैं।
ChatGPT: आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस के बढ़ते दौर में चैटबॉट्स (Chatbots) लोगों की ज़िंदगी का अहम हिस्सा बन गए हैं। लेकिन हाल ही में आई एक नई स्टडी (New Study) ने इनके भरोसे को लेकर बड़ा सवाल खड़ा कर दिया है। रिसर्च (Research) में खुलासा हुआ है कि कई बार AI चैटबॉट्स सच नहीं बोलते, बल्कि वे अपने यूज़र्स (Users) को खुश करने के लिए झूठी या अधूरी बातें भी कह देते हैं। पढ़िए पूरी खबर…

ये भी पढ़ेंः क्या ज्योतिष गरीब को अमीर बना सकता है?
हर जगह छाया AI का इस्तेमाल
तेज़ी से बदलती तकनीक के साथ AI का इस्तेमाल आज हर क्षेत्र में देखा जा सकता है। कंपनियां इसे कस्टमर सपोर्ट, मार्केटिंग और डेटा एनालिसिस जैसे कामों के लिए इस्तेमाल कर रही हैं। वहीं, आम लोग भी अब करियर गाइडेंस, रिश्तों की सलाह और पर्सनल डिसीज़न लेने के लिए ChatGPT जैसे चैटबॉट्स पर भरोसा कर रहे हैं। लेकिन एक्सपर्ट्स के मुताबिक, यही भरोसा अब खतरनाक भी साबित हो सकता है।
नई स्टडी ने खोला बड़ा राज
हाल ही में प्रीप्रिंट सर्वर arXiv पर प्रकाशित एक स्टडी ने चौंकाने वाला खुलासा किया है। इसमें पाया गया कि AI चैटबॉट्स कई बार सच नहीं बताते, बल्कि यूज़र को फील गुड कराने के लिए गलत या अधूरी जानकारी दे देते हैं। यानी, जब भी आप चैटबॉट से कोई राय या सलाह मांगते हैं, तो वह आपकी बात से सहमत होकर जवाब देता है- भले ही वह तथ्यात्मक रूप से गलत ही क्यों न हो।
Chatbot बन गए हैं ‘चापलूस मशीनें’
रिसर्च में यह बात सामने आई कि चैटबॉट्स यूज़र को खुश करने के लिए उनकी हर बात से सहमत हो जाते हैं। अगर कोई यूज़र गलत राय भी रखे, तो ये मशीनें ‘आप सही हैं’ जैसे जवाब देती हैं। इसका मतलब है कि चैटबॉट्स अब ‘फैक्ट बेस्ड असिस्टेंट’ से ज्यादा ‘प्लीज़र मशीन’ बनते जा रहे हैं।
ये भी पढ़ेंः Google Map: गूगल मैप नहीं अब देसी नाविक बताएगा सही रास्ता, डेटा भी सुरक्षित रहेगा
ऐसे की गई थी यह रिसर्च
इस रिसर्च में वैज्ञानिकों ने 11 प्रमुख AI मॉडल्स (LLMs) की जांच की, जिनमें OpenAI, Google Gemini, Meta AI और DeepSeek जैसे बड़े नाम शामिल थे। शोधकर्ताओं ने इन मॉडलों से 11 हजार से ज्यादा सवाल पूछे और पाया कि कई बार चैटबॉट्स ने तथ्य की जगह यूज़र की राय से सहमति जताई। यह दर्शाता है कि ये मॉडल्स इंसानों की अपेक्षा ज़्यादा ‘अनुकूल व्यवहार’ (Agreeable Behaviour) दिखाते हैं।
चैटबॉट्स ने इंसानों से ज्यादा की चापलूसी
स्टडी में पाया गया कि इंसान बातचीत के दौरान कई बार असहमति जताते हैं, जबकि चैटबॉट्स हर स्थिति में यूज़र को सही ठहराने की कोशिश करते हैं। इससे यूज़र को लगता है कि उसकी सोच सही है, जबकि चैटबॉट सिर्फ उसे संतुष्ट करने की कोशिश कर रहा होता है। यह प्रवृत्ति गलतफहमी और गलत निर्णयों की वजह बन सकती है।
जब Chatbot को बना लिया डॉक्टर
एक्सपर्ट्स पहले भी चेतावनी दे चुके हैं कि AI चैटबॉट को डॉक्टर या सलाहकार समझना खतरनाक हो सकता है। कई लोग हेल्थ, दवा या मानसिक स्वास्थ्य से जुड़े सवालों के लिए चैटबॉट्स पर निर्भर हो जाते हैं, जबकि AI सिर्फ अनुमान लगाता है, इलाज नहीं करता। गलत जानकारी से सेहत या मानसिक स्थिति पर बुरा असर पड़ सकता है।
एक्सपर्ट्स ने दी चेतावनी
टेक्नोलॉजी एक्सपर्ट्स का कहना है कि चैटबॉट्स इमोशन या रियल-लाइफ रिस्क को नहीं समझ पाते। वे सिर्फ शब्दों के आधार पर जवाब देते हैं। ऐसे में किसी गंभीर या निजी विषय पर इनकी सलाह लेना भ्रामक या हानिकारक साबित हो सकता है।
ये भी पढ़ेंः Online Fraud: सोशल मीडिया पर कम क़ीमत के ज़रिए आईफ़ोन ख़रीदने वाले ये ख़बर पढ़ लीजिए
क्यों खतरनाक हैं चैटबॉट्स?
AI चैटबॉट्स निश्चित रूप से जानकारी देने के अच्छे साधन हैं, लेकिन वे अंतिम गाइड नहीं हैं। इनसे सामान्य जानकारी लेना ठीक है, लेकिन जिंदगी के अहम फैसलों, रिश्तों की सलाह या हेल्थ से जुड़ी राय हमेशा किसी एक्सपर्ट्स या भरोसेमंद इंसान से ही लेनी चाहिए। रिसर्चरों का कहना है कि आने वाले समय में चैटबॉट्स और स्मार्ट होंगे, लेकिन मानव निर्णय शक्ति और संवेदना की बराबरी वे कभी नहीं कर सकते।

