Mukhtar Ansari: पूर्वांचल का माफिया और पूर्व विधायक मुख्तार अंसारी (Mukhtar Ansari) की मौत हो गई है। मुख्तार अंसारी पूर्वांचल का बड़ा माफिया था। आपको बता दें कि 28 मार्च को जेल में मुख्तार को कॉर्डियक अरेस्ट (Cardiac Arrest) से मौत हो गई है। अब सवाल उठता है कि क्या मुख़्तार अंसारी के जाने के बाद पूर्वांचल से माफियागिरी समाप्त हो जाएगी।
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अच्युतानंद राय सच्चिदानंद राय के भाई हैं, जिनका 17 जुलाई 1986 को मर्डर कर दिया गया था। मुख्तार अंसारी (Mukhtar Ansari) का पहला सबसे बड़ा केस यही माना जाता है। अच्युतानंद ने करीब एक साल पहले कहा था कि पूर्वांचल की माफियागिरी भले चलती रहे, लेकिन मऊ-गाजीपुर से अंसारी परिवार का रुतबा जरूर धीरे-धीरे खत्म हो रहा है। एक समय था, जब मुख्तार के सामने DM-SP सिर झुकाए खड़े रहते थे। अब माहौल बदल गया है। पिछले 4 साल में उसकी 576 करोड़ की प्रॉपर्टी पर UP सरकार बुलडोजर चला चुकी है।
IS-191 गैंग चलाने वाले मुख्तार समेत अंसारी परिवार पर कुल 97 केस हैं। मुख्तार का बड़ा बेटा अब्बास जेल में बंद है। पत्नी फरार है और छोटा बेटा उमर जमानत पर बाहर है। पुलिस और ED के मुताबिक अंसारी परिवार (Ansari family) के पास करीब 15 हजार करोड़ रुपए की बेनामी संपत्ति है। परिवार में अब मुख्तार के बेटों के अलावा भाई सिबगतुल्लाह और अफजाल हैं।
आखिर कहां से आई मुख्तार के पास इतनी संपत्ति
मऊ के सीओ सिटी रहे धनंजय मिश्रा ने मुख्तार गैंग (Mukhtar Gang) पर शिकंजा कसने में खास रोल निभाया था। उन्होंने मुख्तार के गुर्गे और कृष्णानंद राय की हत्या में शामिल फिरदौस का मुंबई जाकर एनकाउंटर किया था। धनंजय मिश्रा के अनुसार 80 के दशक में मुख्तार अंसारी का नाम पूर्वांचल में अपराध की दुनिया में आ चुका था। हर क्रिमिनल को सर्वाइवल के लिए पैसे की जरूरत होती है। मुख्तार को कमाई के एक सिस्टम की आवश्यकता पड़ी, तो उसका सामना बृजेश सिंह-त्रिभुवन सिंह से हुआ। इन दोनों गैंग्स की कोई लड़ाई नहीं थी, पूरा झगड़ा कमाई पर कब्जे का था।
बिजली की समस्या को कर दिया था दूर
मऊ के सीनियर जर्नलिस्ट राहुल सिंह कहते हैं मुख्तार ने पहली बार मऊ से चुनाव लड़ा तो पोस्टर पर लिखा था शेर-ए-मऊ। इस सीट पर मुस्लिम वोटर्स की संख्या ज्यादा थी तो उसे जीतने में दिक्कत नहीं हुई। लोग उसे पसंद करते थे, वो बड़े-बड़े अधिकारियों से हनक से बात करता था, लोगों के काम करवाता था। उसने लोगों का काम करवाने के लिए तमंचा कल्चर की शुरुआत की थी। वो गुजरता था, तो DM भी सिर झुका लेते थे। 90 के दशक की शुरुआत में मऊ और गाजीपुर में बिजली बड़ी समस्या थी। मुख्तार पावर में जैसे ही आया, तो दोनों जिलों की हैसियत राजधानी जैसी हो गई। लखनऊ में जितने घंटे बिजली मिलती थी, यहां भी उतने ही घंटे आती थी।
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इससे मुख्तार की इमेज रॉबिन हुड वाली बनती गई और इलाके के नौजवान उसे अपना आदर्श मानने लगे। ये लोग मुख्तार के लिए जान देने के लिए तैयार थे। इनमें दोनों धर्मों के लोग थे। इसी से उसका गैंग बढ़ता गया। राजनीति में आने के बाद मुख्तार ने सीधे अपराध में शामिल होना बंद कर दिया था। वो गांव की लोकल लड़ाई से निकले अपराधियों को सहारा देता था। इन अपराधियों से ही बड़ी वारदात कराता था।
सरकारी जमीनों पर कब्जा करने लगा, गुर्गे गरीबों की जमीन छीन लेते
मुख्तार का गैंग (Mukhtar Gang) पहले भी जमीन कब्जाने का काम किया करता था, विधायक बनने के बाद उसकी नजर सरकारी और नजूल की जमीन पर पड़ी। जर्नलिस्ट राहुल सिंह आगे बताते हैं कि सरकारी और विवादित जमीनों पर मुख्तार के गुर्गे कब्जा करते थे। फिर किसी को बेच देते। इसके बाद अगली जमीन निशाने पर रहती।
मऊ के एक सोशल एक्टिविस्ट बताते हैं कि पूर्वांचल में किसी जमीन पर अगर मुख्तार की नजर पड़ जाती, तो वो चाहे 5 लाख की हो या फिर 5 करोड़ की। उसे देने से मुख्तार को कोई मना नहीं सकता था वह जितना पैसा देता था, वही जमीन मालिक को रखना पड़ता।
कागज पर एक बीघा जमीन खरीद कर आस-पास की 12 बीघा जमीन कब्जा कर लेता। अभी हाल में ही कई जमीनों से प्रशासन ने मुख्तार गैंग का कब्जा हटवाया है। सिर्फ मऊ में ही उसकी और उसके करीबियों की 200 करोड़ की संपत्ति जब्त हुई है।
गुंडा टैक्स से पैसा कमाया, उससे लीगल तरीके से जमीनें खरीदीं
ED की जांच में सामने आया है कि गुंडा टैक्स और जमीन कब्जाने से मिले पैसे को विकास कंस्ट्रक्शन नाम की कंपनी के खाते में जमा करता था। इस पैसे से लीगल तरीके से संपत्ति खरीदता था। अकाउंट से काफी पैसा मुख्तार के ससुर जमशेद राना की कंपनी आगाज प्रोजेक्ट एंड इंजीनियरिंग के अकाउंट में ट्रांसफर किया गया।
इन पैसों से, गाजीपुर, जालौन, दिल्ली, लखनऊ में 23 संपत्तियां खरीदी गईं। ये प्रॉपर्टीज भी बाजार भाव से आधी कीमत में खरीदी गई थीं। मुख्तार के सहयोगी गणेश दत्त मिश्रा ने गाजीपुर में दो प्रॉपर्टी खरीदी थीं। उसके पास पैसा तक नहीं था। दोनों प्रॉपर्टी का सौदा 1.29 करोड़ में तय हुआ, लेकिन उसने सिर्फ कब्जा किया, पैसे दिए ही नहीं। ये मुख्तार की बेनामी संपत्तियां थीं, जिसे गणेश दत्त मिश्रा के नाम से खरीदा गया था।
मुख्तार की यूपी में 576 करोड़ की संपत्ति जब्त और ध्वस्त
उत्तर प्रदेश में योगी सरकार आने के बाद से मुख्तार के खिलाफ लगातार एक्शन लिया जा रहा है। साल 2020 में गाजीपुर में मुख्तार का गजल होटल ढहा दिया गया। ये गाजीपुर में मुख्तार के ऑफिस की तरह था। इसके बाद मऊ के गाजीपुर तिराहे पर मुख्तार की आलीशान बिल्डिंग भी गिरा दी गई। अब वहां खंडहर बचा है।
भीटी चौराहे पर मुख्तार के खास माने जाने वाले उमेश सिंह की तीन मंजिला बिल्डिंग पर भी बुलडोजर गरजा। 2022 में मऊ सदर से जीते मुख्तार के बेटे अब्बास अंसारी का घर भी ढहा दिया गया। पुलिस के अनुसार, 3 साल में मुख्तार की 576 करोड़ की प्रॉपर्टी पर सरकार कार्रवाई कर चुकी है। इसमें 291 करोड़ 19 लाख की संपत्ति जब्त की गई। 284 करोड़ 77 लाख की संपत्ति पर बुलडोजर एक्शन हो चुका है।
मऊ में ही 200 करोड़ की संपत्ति पर बुलडोजर चला है। पुलिस और ED अब भी गाजीपुर-मऊ, वाराणसी, लखनऊ के अलावा पूर्वांचल के जिलों में मुख्तार की संपत्तियां खोज रही हैं।
क्या होगा मुख्तार की बेनामी संपत्ति का
मुख्तार को जानने वाले बताते हैं कि मुख्तार की बेनामी संपत्ति बेहिसाब है। पुलिस और ED के मुताबिक इसकी कीमत 15 हजार करोड़ से भी ज्यादा हैं। सवाल ये है कि इसे कौन संभालेगा। धनंजय मिश्रा इस सवाल को लेकर कहते हैं कि मुख्तार का पूरा परिवार जेल में है। पत्नी फरार है और अब सिर्फ बहू निखत अंसारी और छोटा बेटा उमर जमानत पर बाहर हैं। शायद वो दिन जल्द आए कि उसकी बेनामी संपत्ति संभालने वाला कोई न रहे। उसके साथी ही सब आपस में बांट लें।’
एक दूसरे जर्नलिस्ट बताते हैं कि अभी यह कहना गलत है कि उसकी बेनामी संपत्ति संभालने वाला कोई नहीं है। पूर्वांचल में मुख्तार की दहशत खत्म नहीं हुई है। अंसारी परिवार अब भी बुरा समय गुजर जाने का इंतजार कर रहा है।
मुख्तार का पैसा यूपी में ही नहीं देश और विदेशों में भी लगा है। लोग बताते हैं कि कहा जाता है कि मुख्तार के तेल के जहाज चलते हैं। मुंबई जैसे शहरों में होटल और जमीनें हैं।
जेल में रहकर कैसे चलाता था गैंग
अब आपके मन में यह सवाल जरूर आ रहा होगा कि मुख्तार जेल में रहकर कैसे गैंग चलाता था। उसके ऊपर 65 केस दर्ज थे। इसके बाद भी 2022 से उसे सजा मिलनी शुरू हुई। पुलिस सूत्र के मुताबिक मुख्तार जिस जेल में बंद होता था, गुर्गे भी जमानत तुड़वाकर वहीं चले जाते थे। जेल के आसपास भी उसके गुर्गे रहने लगते थे। उन्हीं के जरिए वो जेल में बंद छोटे अपराधियों को साथ मिलाकर पूरी बैरक पर दबदबा बना लेता था।
मुख्तार किसी भी प्रकार जेल में मोबाइल यूज कर लेता था। और फर्जी मेडिकल रिपोर्ट बनवाकर पेशी से बच जाता था। या फिर जिस मामले में आरोप तय होने होते हैं, वहां छोड़कर उसी दिन किसी और मामले में दूसरे कोर्ट में पेश हो जाता था।
मुख्तार का गैंग कौन संभालेगा
मुख्तार साल 2005 से जेल में था। इसके बाद पुलिस रिकॉर्ड के अनुसार, उसने जेल में रहकर 7 मर्डर कराए थे। मुख्तार का काम करने के लिए शूटरों की पूरी फौज थी। वे मुख्तार के कहने पर हत्या, अपहरण, रंगदारी और ठेकों को मैनेज करते थे।
योगी सरकार की सख्ती बढ़ी, तो उसने ऐसा कोई काम नहीं किया, जिससे लाइमलाइट में आए। साल 2022 का विधानसभा चुनाव भी नहीं लड़ा। 2012 और 2017 का विधानसभा चुनाव वो जेल से लड़ा और जीता। उसने 2022 में बड़े बेटे अब्बास अंसारी को चुनाव में उतारा। अब्बास जीत भी गया, लेकिन हेट स्पीच में पहले फरार हुआ, फिर सरेंडर कर जेल जाना पड़ा। अभी वो कासगंज जेल में बंद है।
मुख्तार की गैंग में तीन दर्जन से भी ज्यादा शूटर शामिल थे। इस समय सिर्फ तीन फरार हैं। इसमें उसके दो रिश्तेदार हैं और एक अनुज कनौजिया है। बाकी या तो एनकाउंटर में मारे जा चुके हैं या फिर जेल में हैं। फिलहाल मुख्तार गैंग को संभालने वाला कोई नहीं है। सरकार जिस तरह कार्रवाई कर रही है, उससे लगता भी नहीं है कि कोई गैंग चलाने वाला बचेगा।