पुणे बुक फेस्टिवल में शामिल हुए उपेन्द्र राय, कहा परिवार पहली पाठशाल..बिना गुरु के ज्ञान नहीं

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भारत एक्सप्रेस न्यूज नेटवर्क के सीएमडी और एडिटर-इन-चीफ उपेन्द्र राय पुणे बुक फेस्टिवल में मुख्य अतिथि के तौर पर शामिल हुए जहां उन्होंने ‘मनुष्य के चरित्र-निर्माण में शिक्षा की भूमिका’ विषय पर अपने विचार व्यक्त किए. इस फेस्टिवल का आयोजन पुणे के फर्ग्यूसन कालेज में किया जा रहा है।

भारत एक्सप्रेस के चेयरमैन ने कहा, “कहा जाता है कि नागरिकता की, शिक्षा की पहली पाठशाला हम अपने परिवार से ही सिखते हैं और वहीं से बड़े होते हैं. बिली ग्राहम एक बहुत बड़े सिविल राइट एक्टिविस्ट हुए, उनकी बात को हिंदुस्तान में बसने वाला हर आदमी जानता होगा लेकिन ये बात बिली ग्राहम ने कही, ये बहुत कम लोग जानते होंगे. उन्होंने कहा कि अगर तुम्हारे जीवन से धन चला जाता है तो समझो कि कुछ नहीं गया, अगर स्वास्थ्य चला जाता है तो समझो कि तुमने बहुत कुछ खो दिया, लेकिन चरित्र विदा हो जाता है तो समझो कि तुमने सब कुछ खो दिया. ये बातें हम लोग बचपन से जानते हैं लेकिन पश्चिम के एक विचारक ने ये कही थीं… ये बात मुझे भी बहुत बाद में पता चली.”

सीएमडी उपेन्द्र राय ने कहा, “वाल्मीकि रामायण में इस बात का जिक्र नहीं है लेकिन बहुत जगहों पर प्रसंग में एक कहानी हम सबने सुनी है. जब रावण युद्धभूमि में लड़ाई हार गया और मृत्यु शय्या पर लेटा था, तब भगवान श्रीराम ने अपने भाई लक्ष्मण को भेजा कि रावण अपने जीवन में प्रकांड विद्वान रहे हैं… आपको रावण से जाकर कुछ सुनना, सीखना और समझना चाहिए. रावण और लक्ष्मण के बीच का संवाद बहुत प्रेरणादायी, बहुत अच्छा और बहुत अनूठा है.”

भारत एक्सप्रेस के चेयरमैन ने रावण-लक्ष्मण संवाद का जिक्र करते हुए कहा, “रावण ने लक्ष्मण से कहा कि ये बताओ- मैं ज्ञान में तुम दोनों भाइयों से बड़ा, कुल में ब्राह्मण, वैभव में तीनों लोकों में कोई मुझसे बड़ा नहीं… फिर भी मैं युद्धभूमि में ऐसे असहाय पड़ा हुआ हूं. तुम जानते हो कि ये हश्र मेरा क्यों हुआ? लक्ष्मण ने कोई जवाब नहीं दिया तो रावण ने फिर कहा- मैं ही बताता हूं. इसका केवल एक ही कारण है कि तुम्हारा भाई राम बहुत चरित्रवान है और मैं चरित्र से गिर गया था. सिर्फ यही एक दोष मेरे अंदर आया जिसके कारण मैं युद्ध हार गया और युद्धभूमि में ऐसे ही असहाय लेटा हुआ हूं.”

उपेन्द्र राय ने कहा, “अब्राहम लिंकन ने भी कहा कि अगर चरित्र एक पेड़ है तो रेप्युटेशन उसकी छाया है. लेकिन ये चरित्र निर्माण कैसे होता है… सही अर्थों में कॉलेज में, विश्वविद्यालयों में जो शिक्षा हमें दी जाती है… क्या चरित्र-निर्माण में वो बड़ी भूमिका निभाती है या वो बातें जो हम नागरिकता की पहली पाठशाला- परिवार और समाज, जिससे हम बड़े होकर आते हैं, वो बातें चरित्र-निर्माण में बड़ी भूमिका निभाती हैं?”

भारत एक्सप्रेस के सीएमडी ने कहा, “हमारी जितनी भी शिक्षा है, जितनी चीजें हैं जो विश्वविद्यालयों में पढ़ाई जाती है, वो हमें दौड़ सिखाती है. रोजगार की दौड़, आगे आने की दौड़, नंबर एक होने की दौड़. लेकिन इस दुनिया में कुछ अनूठे शिक्षक भी हुए जिन्होंने पीछे होना सिखाया. लाओत्से ने कहा कि अगर तुम आगे होना चाहते हो तो पीछे होने की कला सीख लो, अगर तुम धन पाना चाहते हो तो धन को पाने का ख्याल छोड़ दो. उनका एक शिष्य उनके पास गया और कहा कि गुरुदेव, मैं आपकी बातों का 20 सालों से पालन कर रहा हूं और न मैं आगे बढ़ा और न मेरे पास धन आया. लाओत्से ने कहा कि तुम आगे भी जाते और तुम्हारे पास धन भी आता लेकिन जब तुम पीछे खड़े हुए तो तुमने इसे हथियार बना लिया कि मैं पीछे खड़ा हूं तो आगे होने का लाइसेंस मेरे पास आ गया है. मैंने कहा था कि इसका ख्याल ही छोड़ दो…धन की देवी तुमको जरूर आशीर्वाद देतीं लेकिन तुम बार-बार पीछे मुड़कर देखते रहे कि धन की देवी कब चलना शुरू करती हैं क्योंकि मैंने धन का ख्याल छोड़ा हुआ है.”

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