नई बुलंदी पर एंकर चित्रा त्रिपाठी

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वरिष्ठ पत्रकार विकास मिश्रा के फेसबुक वॉल से

18 सितंबर 2007 को मैंने न्यूज 24 चैनल ज्वाइन किया था। मुझसे पहले कई लोग आ चुके थे। कुछ पुराने साथी थे, कुछ नए साथियों से परिचय हुआ। न्यूज रूम में मैंने देखा कि एक खूबसूरत लड़की सिर झुकाए कुछ पढ़ रही थी। अगले दिन जब मैं दफ्तर आया तो वो लड़की फिर कुछ पढ़ते नजर आई। सीट से उठी नमस्कार किया, बोली- सर मैं चित्रा त्रिपाठी Chitra Tripathi। मैं भी गोरखपुर से हूं। विमलेश शुक्ला जी ने कहा था आप भी यहां आ रहे हैं। यहां से परिचय शुरू हुआ था।
चैनल का काम धाम शुरू हुआ। एंकरिंग की रिहर्सल भी शुरू हुई। मैंने चित्रा को किसी से ज्यादा बात करते नहीं देखा। वो कुछ न कुछ पढ़ती रहती थी या फिर एंकरिंग की प्रैक्टिस करती थी। गपबाजी नहीं करती थी। खांटी पूर्वांचल की लड़की। अंग्रेजी लिखनी-पढ़नी, समझनी तो ठीक से आती थी, लेकिन जुबान पर नहीं चढ़ पाई थी। अंग्रेजी सीखने और बोलने की ललक थी तो मेहनत सबसे ज्यादा अंग्रेजी पर ही की। समय बीतता रहा, हमारे घरेलू रिश्ते हो गए। कुछ साल बाद चित्रा जैसे परिवार में ही शामिल हो गई।


चित्रा गोरखपुर विश्वविद्यालय की उपज है। एनसीसी का सी सर्टिफिकेट उसके पास है। एमए में गोल्ड मेडलिस्ट रही। परिवार में लड़कियों के आगे जाने का कोई इतिहास नहीं था। संपन्नता से कोई करीबी नाता नहीं था। पढ़ाई के साथ उसे मौका मिला गोरखपुर के एक केबल चैनल- ‘सत्या’ में काम करने का। एक दिन की एंकरिंग के शायद 300 रुपये मिलते थे। फिर ई टीवी यूपी-उत्तराखंड में सेलेक्शन हुआ 5 हजार रुपये की तनख्वाह पर। वहां काम करने के बाद न्यूज-24 में 16 हजार रुपये की तनख्वाह पर उसने ज्वाइन किया था। आज चित्रा शायद देश की सबसे ज्यादा तनख्वाह पाने वाली महिला एंकर है। चित्रा को एबीपी न्यूज चैनल ने चर्चा के मुताबिक करीब 1 करोड़ 20 लाख रुपये के सालाना पैकेज पर रखा है।
जिन्हें चित्रा की ये तनख्वाह दिख रही है, ये मुकाम दिख रहा है, शायद उन्होंने उसका संघर्ष नहीं देखा है। यहां तक पहुंचने के लिए उसके पैरों में न जाने कितनी बार कितने छाले पड़े हैं। पीड़ा झेली है, अपमान भी सहा है। करियर में कई उतार चढ़ाव आए। कोई और लड़की होती तो शायद टूट जाती, लेकिन संघर्षों की आग में तपकर निकली इस लड़की ने हार नहीं मानी।
‘सहारा समय’ न्यूज से हटने के बाद चित्रा ने बहुत संघर्ष किया। कई चैनलों में कोशिश की, लेकिन नौकरी नहीं मिली। अच्छे रिश्तों का दावा करने वालों ने भी मुंह फेर लिया। एक चैनल में मैंने ही उसे भेजा था अपने एक मित्र के पास। तब शायद चित्रा वहां 50 हजार रुपये की तनख्वाह पर भी ज्वाइन कर लेती, लेकिन उसके विरोधियों ने वहां उसका चयन होने नहीं दिया।
जब इंडिया न्यूज में उसने कामयाबी की पटकथा लिखनी शुरू की तो उसी चैनल से उसे एक लाख रुपये की सैलरी का ऑफर मिला। मजे की बात सुनिए। अभी करीब साल भर पहले मेरे उसी मित्र का मेरे पास फोन आया, जो तब उस चैनल के हेड बन गए थे। उन्होंने मुझसे कहा कि चित्रा से बात कीजिए। अगर वो यहां आती है तो 10 लाख रुपये महीने का ऑफर तो चैनल की तरफ से है, अगर वो ज्यादा मांगेगी तो चैनल पीछे नहीं हटेगा। यानी जहां 50 हजार रुपये की नौकरी नहीं मिली थी, वहां से 10 लाख रुपये महीने का ऑफर मिला था। अगर वो चाहती तो उस वक्त वो डेढ़ करोड़ रुपये के पैकेज पर भी जा सकती थी, लेकिन उसने विनम्रता से मना कर दिया।


लंबे संघर्ष के बाद चित्रा को इंडिया न्यूज में काम मिला और वहां ‘बेटियां’ नाम से उसका शो शुरू हुआ। चैनल से ज्यादा चित्रा के उस शो को पहचान मिली। पत्रकारिता जगत का सबसे प्रतिष्ठित ‘रामनाथ गोयनका’ अवार्ड भी मिला। उसके बाद एबीपी न्यूज में चित्रा ने स्टूडियो में एंकरिंग और न्यूजरूम से बाहर रिपोर्टिंग में अपनी धाक जमाई।
जब आजतक में उसे मौका मिला तो फिर वो शोहरत की बुलंदी पर पहुंची। उसकी मेहनत, लगन की बदौलत उसे आजतक का प्रतिष्ठित ‘चेयरमैन अवार्ड’ भी मिला। आजतक के चैनल हेड सुप्रिय प्रसाद ने ‘बुलेट रिपोर्टर’ शो शुरू किया तो ये मौका उन्होंने चित्रा को दिया। चित्रा की बुलेट चली तो वो लड़कियों के लिए बुलेट की ब्रांड एंबेसडर बन गई। लड़कियों में बुलेट चलाने का पैशन हो गया। उसी तर्ज पर दूसरे चैनल्स ने बाइक और स्कूटी पर लड़कियों को चुनावी कवरेज में उतारा।
चित्रा दूसरी पीढ़ी की एंकर्स में फिलहाल टॉप-3 में है। कामयाबी की सीढ़ियां काफी तेज चढ़ी है, इसी वजह से उसे कई बार समकक्षों की ईर्ष्या का पात्र भी बनना पड़ा है। कई एंकर्स उसके साथ एंकरिंग नहीं करना चाहती थीं, लेकिन उसकी मेहनत और लगन का हर कोई कायल रहा। अभी कुछ ही दिन पहले एक महिला एंकर से बात हो रही थी। चित्रा को बहुत पसंद नहीं करती थी, मैं ये बात जानता हूं, लेकिन उसने कहा- सर चित्रा बहुत मेहनती है। करियर को लेकर बहुत ही गंभीर है। किसी भी मोर्चे पर कभी भी जाने के लिए तैयार रहती है, ऐसे में उसे ऊंचाई पर तो जाना ही है।


मैं जातिवाद, क्षेत्रवाद, संप्रदायवाद से दूर रहता हूं, लेकिन आज एक क्षेत्रवादी बात भी कहना चाहता हूं। चित्रा आज जिस मुकाम पर है वो गोरखपुर और पूर्वांचल के लिए गौरव की बात है। पूर्वांचल की जिन लड़कियों को बारहवीं पास करने के बाद शादी-ब्याह और चूल्हे-चौके में झोंकने के लिए तैयार कर दिया जाता है। चित्रा उन सबके लिए रोल मॉडल है। पूर्वांचल की लड़कियां कह सकती हैं- मैं पढ़ना चाहती हूं क्योंकि मैं चित्रा त्रिपाठी बनना चाहती हूं। मीडिया में जितनी भी नई लड़कियां आ रही हैं, उनमें ज्यादातर का सपना चित्रा त्रिपाठी जैसी एंकर बनने का है।
महिला एंकर्स के साथ एटीट्यूड का एक ऐसा रिश्ता है, जिसे अमूमन उनसे अलग नहीं किया जा सकता है। चित्रा में कोई एटीट्यूड नहीं है। कुछ भी गलत होता है तो वो माफी मांगने में देर नहीं लगाती। कामयाबी ने उसका दिमाग खराब नहीं किया। आज भी वो जमीन से जुड़ी है। पॉजिटिव है तो निगेटिव चीजों को नजरअंदाज कर देती है। कोई जिद नहीं, किसी से कोई बड़ी अपेक्षा नहीं, कोई शर्त नहीं, किसी से कोई शिकायत भी नहीं। वो चुनौतियां लेती है और उसे कामयाबी से अंजाम तक पहुंचाती है। आज भी अपने शो से पहले विषय का पूरा अध्ययन करती है, रिसर्च तैयार करती है। नई पीढ़ी की लड़कियां उससे सीख सकती हैं कि अगर मेहनत और लगन है तो कामयाबी दूर नहीं है। मैं जानता हूं कि चित्रा अभी रास्ते में है। मंजिल अभी दूर है। अभी तमाम मुकाम आएंगे, तमाम मंजिले आनी बाकी हैं। चित्रा को एबीपी न्यूज की इस पारी के लिए मेरी तरफ से ढेर सारी बधाइयां। ऐसे ही जीतती रहो।
(चित्रा श्वेता सिंह की जबर्दस्त फैन है, इस नाते एक तस्वीर श्वेता के साथ। )

दूसरी तस्वीर में मेरे और चित्रा के साथ उसकी प्रिय सहेली ममता है।)

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