Chhath Puja आज से शुरू..जानिए नाहाय खाय, खरना की पूरी डिटेल

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नीलम सिंह चौहान, खबरीमीडिया

Chhath Puja 2023: हर वर्ष कार्तिक महीने की शुल्क पक्ष की षष्ठी तिथि के दिन छठ का त्योहार मनाया जाता है। Chhath Puja का विषेश महत्व सनातन धर्म से है। दिवाली के त्यौहार के बाद ही लोग इस महापर्व का इंतजार करने लग जाते हैं। Chhath पर्व में सभी महिलाएं अपने बच्चों की लंबी आयु के लिए 36 घंटे का निर्जला व्रत रखती हैं। इस बार यानी कि साल 2023 में छठ का त्यौहार 17 नवंबर से शुरू हो रहा है। 17 नवंबर से शुरू होकर ये 20 नवम्बर तक मनाया जाएगा। वहीं इस व्रत को लेकर कई लोककथाएं भी प्रचलित हैं। जैसे मान्यता अनुसार ये व्रत संतान की लंबी आयु के लिए रखा जाता है और कुछ महिलाएं संतान प्राप्ति कि कामना से भी छठ का व्रत रखती हैं। लेकिन आज हम आपको बताएंगे कि इसकी शुरुआत कब से हुई और इससे जुड़ी कुछ पौराणिक कथाओं के बारे में

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pic: social media

क्या है छठ पर्व की पौराणिक कथा ( Chhath Puja Vrat Katha)

पुरानी प्रचलित कथाओं के मुताबिक मानें तो भगवान राम ने लंका पर विजय प्राप्त करने के बाद मां सीता जी के साथ राम राज्य की स्थापना की। ये स्थापना कार्तिक महीने के शुक्ल पक्ष की षष्ठी तिथि के दिन की गई और इस दिन भगवान राम और मां सीता ने व्रत कर सूर्यदेव की आराधना की। इसके बाद सप्तमी के दिन सूर्यदेव के समय अनुष्ठान कर सूर्यदेव से आशीर्वाद लिया था। इसलिए इस तिथि को बहुत ही ज्यादा खास माना गया है और तभी से छठ पूजा की शुरुआत हुई है।

द्रौपदी ने की थी सूर्य भगवान की पूजा

वहीं एक अन्य पौराणिक कथा के अनुसार पांडवों की पत्नी द्रौपदी ने भी भगवान सूर्य की आराधना की थी। द्रौपदी अपने परिवार जनों के उत्तम सेहत की कामना और लंबी उम्र के लिए नियमित रूप से भगवान सूर्य देव की पूजा करती थीं।

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जानिए कैसे व्रत रखते हैं छठ पूजा के चारों दिन

छठ का पहला दिन यानी कि कार्तिक शुक्ल चतुर्थी को नहाय काय है ये 17 नवंबर के दिन मनाया जाएगा। इस दिन सुबह जल्दी उठकर अच्छे से घर की साफ सफाई करके कुछ मीठा ग्रहण करते हैं। इस दिन व्रतधारियों के घर प्याज लहसुन भी नहीं बनता है। दूसरे दिन को खरना कहा जाता है, इस दिन उपवास रखा जाता है। तीसरे दिन का भी काफी ज्यादा महत्व होता है, इस दिन व्रत रखा जाता है और पानी नहीं पिया जाता है। तीसरा दिन काफी ज्यादा खास होता है क्योंकि इस दिन व्रत रखने के बाद शाम को डूबते हुए सूरज को अर्घ्य देते हैं। इसे सूर्य षष्ठी भी कहा जाता है। चौथा दिन छठ का सबसे अधिक महत्वपूर्ण और आखिरी दिन होता है। इस दिन आधी रात से ही घाट पर व्रतधारी अपने परिवार और मित्रों के साथ पहुंच जाते हैं। उगते हुए सूरज को अर्घ्य देते हैं और पूजा करने के बाद प्रसाद का वितरण करते हैं। प्रसाद खाकर ही उपवास तोड़ा जाता है।

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