Arvind kejriwal: IIT का स्टूडेंट कैसे बना राजनीति का मँझा हुआ खिलाड़ी

चुनाव 2024 दिल्ली राजनीति

Arvind Kejriwal: दिल्ली की सियासत इन दिनों पूरे देशभर में चर्चा का विषय बनी हुई है। आपको बता दें कि दिल्ली के सीएम अरविंद केजरीवाल जेल में हैं। ई़डी ने सीएम केजरीवाल (CM Arvind Kejriwal) को कथित शराब घोटाला (Liquor Scam) मामले में गिरफ़्तार किया है। हसीएम के गिरफ्तारी के बाद दिल्ली सरकार और पार्टी में नेतृत्व का संकट पैदा हो गया है। दिल्ली सरकार की मंत्री आतिशी ने कहा कि सरकार पहले भी चल रही थी, आज भी चलेगी और आगे भी चलेगी। अरविंद केजरीवाल सीएम (CM Arvind Kejriwal) थे, हैं और रहेंगे।
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दिल्ली के सीएम अरविंद केजरीवाल (CM Arvind Kejriwal) की गिरफ़्तारी पर विपक्षी नेताओं ने तीखी आलोचना की है। जिस कांग्रेस और उसके सहयोगी दलों के ख़िलाफ़ आंदोलन कर केजरीवाल ने अपनी राजनीतिक पारी शुरू की, उन सभी ने केजरीवाल का समर्थन किया है। लगभग सभी विपक्षी नेता और पार्टियों ने उनके साथ एकजुटता दिखाई है। विपक्ष के मौजूदा इंडिया गठबंधन में आम आदमी पार्टी एक घटक है और आगामी लोकसभा चुनावों के लिए दिल्ली समेत कई राज्यों में कांग्रेस के साथ उसकी सीट साझेदारी भी हुई है। भ्रष्टाचार के ख़िलाफ़ आंदोलन चलाने से लेकर दिल्ली की सत्ता पर अपना पांव जमाने वाले केजरीवाल को यहां तक आने में कई बार उतार-चढ़ाव से होकर गुज़रना पड़ा।

अरविंद केजरीवाल का राजनीतिक सफ़र बहुत दिलचस्प रहा है। आइए इस खबर में हम आपको विस्तार से बताते हैं कि कैसे एक IIT का स्टूडेंट दिल्ली का सीएम बन गया।

यहां से शुरू हुआ राजनीति का सफर

2 अक्तूबर 2012 को हाफ़ बाज़ू की क़मीज़, ढीली पैंट और सर पर’मैं हूं आम आदमी की टोपी पहनकर केजरीवाल दिल्ली के कॉन्स्टीटयूशन क्लब में मंच पर आए। पीछे मनीष सिसोदिया (Manish Sisodia), प्रशांत भूषण, योगेंद्र यादव, कुमार विश्वास, गोपाल राय और भ्रष्टाचार के ख़िलाफ़ आंदोलन में उनके साथ रहे कई और लोग बैठे थे। राजनीति में आने का ऐलान करते हुए केजरीवाल ने कहा था कि आज इस मंच से हम ऐलान करना चाहते हैं कि हां हम अब चुनाव लड़ कर दिखाएंगे। आज से देश की जनता चुनावी राजनीति में कूद रही है और तुम अब अपने दिन गिनना चालू कर दो।

केजरीवाल ने आगे कहा कि हमारी परिस्थिति उस अर्जुन की तरह है जो कुरुक्षेत्र के मैदान में खड़ा है और उसके सामने दो दुविधाएं हैं, एक तो ये कि हार तो नहीं जाऊंगा और दूसरा ये कि मेरे अपने लोग सामने खड़े हुए हैं। तब अर्जुन से कृष्ण ने कहा था, हार और जीत की चिंता मत करो, लड़ो। और फिर भ्रष्टाचार के ख़िलाफ़ आंदोलन को राजनीतिक पार्टी में बदलने के बाद केजरीवाल ने न सिर्फ़ चुनाव लड़े और जीते बल्कि तीसरी बार दिल्ली का चुनाव जीतकर उन्होंने जता दिया है कि केजरीवाल के पास ही ‘मोदी मैजिक’ का तोड़ है।

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भारतीय राजस्व सेवा (Indian Revenue Service) के अधिकारी और आईआईटी के छात्र रहे केजरीवाल ने अपनी राजनीतिक ज़मीन 2011 के भ्रष्टाचार विरोधी आंदोलन में तैयार की थी। लेकिन एक सामाजिक कार्यकर्ता के तौर पर अपनी एक अलग पहचान वो इससे पहले ही बना चुके थे। साल 2002 के शुरुआती महीनों में केजरीवाल भारतीय राजस्व सेवा से छुट्टी लेकर दिल्ली के सुंदर नगरी इलाक़े में एक्टिविज़्म करने लगे। यहीं केजरीवाल ने एक ग़ैर-सरकारी संगठन स्थापित किया जिसे ‘परिवर्तन’ नाम दिया गया था। केजरीवाल अपने कुछ दोस्तों के साथ मिलकर इस इलाक़े में ज़मीनी बदलाव लाना चाहते थे।

2006 में मिला रेमन मैग्सेसे अवॉर्ड

कुछ महीने बाद दिसंबर 2002 में केजरीवाल के एनजीओ परिवर्तन ने शहरी क्षेत्र में विकास के मुद्दे पर पहली जनसुनवाई हुई। उस समय पैनल में जस्टिस पीबी सावंत, मानवाधिकार कार्यकर्ता हर्ष मंदर, लेखिका अरुंधति राय, सूचना का अधिकार कार्यकर्ता अरुणा राय जैसे लोग शामिल थे। अगले कई साल तक केजरीवाल यूपी की सीमा से लगे पूर्वी दिल्ली के इस इलाक़े में बिजली, पानी और राशन जैसे मुद्दों पर ज़मीनी काम करते रहे। उन्हें पहली बड़ी पहचान साल 2006 में मिली जब ‘उभरते नेतृत्व’ के लिए उन्हें रेमन मैग्सेसे अवॉर्ड दिया गया।

भ्रष्टाचार के ख़िलाफ़ चलाया अभियान

केजरीवाल अगले कई साल तक सुंदर नगरी में ज़मीनी विवाद को लेकर काम करते रहे। सूचना के अधिकार के लिए चल रहे अभियान में भी उनकी सक्रिय भूमिका रही। साल 2010 में दिल्ली में हुए कॉमनवेल्थ गेम्स के आयोजन में हुए कथित घोटाले की ख़बरें मीडिया में आने के बाद लोगों में भ्रष्टाचार के ख़िलाफ़ ग़ुस्सा बढ़ रहा था। सोशल मीडिया पर इंडिया अगेंस्ट करप्शन मुहिम शुरू हुई और केजरीवाल इसका चेहरा बन गए। दिल्ली और देश के कई इलाक़ों में भ्रष्टाचार के ख़िलाफ़ जनसभाएँ होने लगीं।

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अप्रैल 2011 में गांधीवादी समाजसेवी अन्ना हज़ारे ने दिल्ली के जंतर-मंतर पर भ्रष्टाचार के ख़िलाफ़ जनलोकपाल की माँग को लेकर धरना शुरू किया। मंच पर अन्ना थे तो पीछे केजरीवाल। देश के अलग-अलग हिस्सों से आए नौजवान इस आंदोलन से जुड़ गए थे। हर बीतते दिन के साथ प्रदर्शन में भीड़ और भ्रष्टाचार के ख़िलाफ़ लोगों का ग़ुस्सा बढ़ता जा रहा था।

9 अप्रैल को अन्ना ने अचानक अपने अनिश्चितकालीन अनशन को समाप्त कर दिया। जोशीले युवाओं की एक भीड़ ने हाफ़ शर्ट पहने काली मूँछों वाले एक छोटे-क़द के व्यक्ति को घेर लिया। ये व्यक्ति केजरीवाल ही थे। युवा भारत माता की जय और इंक़लाब ज़िंदाबाद के नारे लगा रहे थे। उनसे सवाल कर रहे थे कि अन्ना को अनशन नहीं ख़त्म करना चाहिए और वो ख़ामोश थे।

टीम अन्ना का किया विस्तार

इस समय तक केजरीवाल भ्रष्टाचार विरोधी आंदोलन (Anti-corruption movement) के आर्किटेक्ट बन चुके थे। अगले कुछ महीनों में उन्होंने टीम अन्ना का विस्तार किया। समाज के हर वर्ग से लोगों को जोड़ा, सुझाव माँगे और एक बड़े जनआंदोलन की परिकल्पना की। इसके बाद अगस्त 2011 में दिल्ली के रामलीला मैदान में अन्ना हज़ारे का जनलोकपाल के लिए बड़ा आंदोलन शुरू हुआ।
लेकिन आंदोलन से वो हासिल नहीं हुआ जो केजरीवाल चाहते थे। अब केजरीवाल ने दिल्ली के अलग-अलग इलाक़ों में बड़ी सभाएँ करनी शुरू कीं। वो मंच पर आते और नेताओं पर बरसते। उनके कथित भ्रष्टाचार के चिट्ठे खोलते।
और फिर केजरीवाल ने अपना पहला बड़ा धरना जुलाई 2012 में अन्ना हज़ारे के मार्गदर्शन में जंतर-मंतर पर शुरू किया। अब तक उनके और उनके कार्यकर्ताओं के सिर पर ‘मैं अन्ना हूं’ की ही टोपी थी। और मुद्दा भी भ्रष्टाचार और जनलोकपाल ही था। इस धरने में केजरीवाल का हौसला बढ़ाने के लिए अन्ना हज़ारे भी जंतर-मंतर पहुंचे थे।

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धीरे धीरे केजरीवाल का वज़न कम होता गया और देश में उनकी पहचान बढ़ती गई। जब केजरीवाल का ये अनशन ख़त्म हुआ तो ये स्पष्ट हो गया कि वो राजनीति में आने जा रहे हैं। ये अलग बात है कि वो बार-बार कहते रहे थे कि वो कभी चुनावी राजनीति में नहीं आएंगे।

जंतर मंतर पर खूब किए प्रदर्शन

अब तक सड़क पर संघर्ष को अपनी पहचान बना चुके केजरीवाल ने 10 दिन चला अनशन ख़त्म करते हुए कहा कि छोटी लड़ाई से बड़ी लड़ाई की तरफ़ बढ़ रहे हैं। संसद का शुद्धीकरण करना है। अब आंदोलन सड़क पर भी होगा और संसद के अंदर भी होगा। सत्ता को दिल्ली से ख़त्म करके देश के हर गांव तक पहुंचाना है।
केजरीवाल ने साफ़ कर दिया था अब वो पार्टी बनाएंगे और चुनावी राजनीति में उतरेंगे।

केजरीवाल राजनीति में आने का निर्णय सुना रहे थे, और प्रदर्शन में शामिल भ्रष्टाचार विरोधी कार्यकर्ताओं के चेहरों के भाव बदल रहे थे। कई कार्यकर्ताओं ने जहां इस फ़ैसले को स्वीकार किया और आगे की लड़ाई के लिए अपने आप को तैयार किया तो कई ऐसे भी थे जिन्होंने उनके इस फ़ैसले पर सवाल उठाए।

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राजनीति में आने का फ़ैसला

केजरीवाल के राजनीति में आने के फ़ैसले को लेकर अमित बताते हैं कि शुरुआत में अरविंद हमेशा कहते थे कि मेरा राजनीति में आने का कोई इरादा नहीं हैं। वो कहते थे कि अगर अस्पताल में डॉक्टर इलाज नहीं करते तो इसका मतलब ये नहीं है कि हम डॉक्टर बन जाएं। लेकिन जब जनलोकपाल आंदोलन (Janlokpal Andolan) के दौरान हर ओर से निराशा मिली तो अरविंद ने ये निर्णय लिया कि अब राजनीति में आना ही होगा।

लेकिन केजरीवाल कभी राजनीति में नहीं आना चाहते थे। आईआईटी में उनके साथ रहे उनके दोस्त राजीव सराफ़ कहते हैं कि कॉलेज के टाइम में हमने कभी राजनीति पर बात नहीं की। मुझे याद नहीं आता कि चार साल में हमने कभी भी राजनीति पर कोई बात की हो। जब अरविंद को हमने राजनीति में देखा तो ये काफ़ी हैरान करने वाला था।

सराफ़ बताते हैं कि जब हम कॉलेज में थे तब अरविंद काफ़ी शर्मीला और शांत था। हम साथ ही घूमते थे। हमने कभी उसे बहुत ज़्यादा बोलते नहीं देखा था। अन्ना आंदोलन के बाद से हमने उनकी यंग एंग्री मैन की छवि देखी है। और ये उनके कॉलेज दिनों के बिलकुल विपरीत है। उस समय में वो शांत रहते थे, लोग वक़्त के साथ बदलते हैं, केजरीवाल में भी बदलाव आया है। 26 नवंबर 2012 को केजरीवाल ने अपनी पार्टी के विधिवत गठन की घोषणा की। केजरीवाल ने कहा कि उनकी पार्टी में कोई हाई कमान नहीं होगा और वो जनता के मुद्दों पर जनता के पैसों से चुनाव लड़ेंगे। केजरीवाल ने राजनीति का रास्ता चुना तो उनके गुरु अन्ना हज़ारे ने भी कह दिया कि वो सत्ता के रास्ते पर चल पड़े हैं।

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केजरीवाल ने ऐसे बढ़ाई संगठनात्मक क्षमता

शुरुआती दिनों में अरविंद को जो मिल रहा था उसे वो पार्टी से जोड़ने लगे थे। उनकी ये संगठनात्मक क्षमता ही आगे चलकर उनकी सबसे बड़ी ताक़त बनी। अंकित लाल इंजीनियर की नौकरी छोड़कर जनलोकपाल आंदोलन (Janlokpal Andolan) से जुड़े थे और जब केजरीवाल ने पार्टी बनाई तो इसी में शामिल हो गए। अंकित बताते हैं कि केजरीवाल अपने स्वयंसेवकों पर भरोसा करते हैं और स्वयंसेवक उन पर। यही पार्टी की सबसे बड़ी ताक़त है।

केजरीवाल ने 2013 में दिल्ली विधानसभा चुनाव लड़ा। राजनीति में पदार्पण करने वाली उनकी पार्टी ने 28 सीटें जीतीं। स्वयं केजरीवाल ने नई दिल्ली सीट से तत्कालीन सीएम शीला दीक्षित को पच्चीस हज़ार से अधिक वोटों से हराया। लेकिन उन्हें सरकार इन्हीं शीला दीक्षित की कांग्रेस पार्टी के साथ मिलकर बनानी पड़ी। केजरीवाल दिल्ली मेट्रो से बैठकर शपथ लेने के लिए रामलीला मैदान पहुंचे। अपनी जीत को क़ुदरत का करिश्मा बताते हुए केजरीवाल ने ईश्वर, अल्लाह और भगवान का शुक्रिया अदा किया।

शपथ लेने के कुछ दिन बाद ही केजरीवाल दिल्ली पुलिस में कथित भ्रष्टाचार के ख़िलाफ़ रेल-भवन के बाहर धरने पर बैठ गए। दिल्ली की ठंड में लिहाफ़ में दुबके केजरीवाल जब भ्रष्टाचार के ख़िलाफ़ बोले तो जनता को लगा कि कोई है जो उनकी बात कर रहा है। केजरीवाल की ये सरकार सिर्फ़ 49 दिन ही चल सकी। लेकिन इन 49 दिनों में दिल्ली ने राजनीति का एक नया युग देख लिया। केजरीवाल अपने सार्वजनिक भाषणों में भ्रष्ट अधिकारियों का वीडियो बनाने का आह्वान करते।

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और सीएम पद से दे दिया इस्तीफा

केजरीवाल जल्द से जल्द जनलकोपाल बिल पास कराना चाह रहे थे। लेकिन गठबंधन सरकार में साझीदार कांग्रेस तैयार नहीं थी। अंततः 14 फ़रवरी 2014 को केजरीवाल ने दिल्ली के सीएम पद से इस्तीफ़ा दे दिया और फिर सड़क पर आ गए। केजरीवाल ने कहा कि मेरे को अगर सत्ता का लोभ होता, तो मुख्यमंत्री पद नहीं छोड़ता। मैंने उसूलों पर मुख्यमंत्री की कुर्सी छोड़ी है।

इसके कुछ ही महीने बाद ही लोकसभा चुनाव (Lok Sabha Elections) होने थे। केजरीवाल बनारस पहुँच गए, नरेंद्र मोदी को चुनौती देने। अपने नामांकन से पहले दिए भाषण में उन्होंने कहा कि दोस्तों मेरे पास तो कुछ भी नहीं हैं, मैं तो आपमें से ही एक हूं, ये लड़ाई मेरी नहीं है, ये लड़ाई उन सबकी है जो भ्रष्टाचार मुक्त भारत का सपना देखते हैं। बनारस में केजरीवाल तीन लाख सत्तर हज़ार से अधिक मतों से हारे। उन्हें पता चल गया था कि राजनीति में लंबी रेस के लिए पहले छोटे मैदान में प्रैक्टिस करनी होगी।

निराश पार्टी कार्यकर्ताओं के लिए एक बयान जारी कर केजरीवाल ने कहा कि हमारी पार्टी अभी नई है, कई स्ट्रक्चर ढीले हैं। हम सबको मिल कर ये संगठन तैयार करना है। आने वाले समय में हम मिलकर संगठन को मज़बूत करेंगे मुझे उम्मीद है ये संगठन इस देश को दोबारा आज़ाद कराने में बड़ी भूमिका निभाएगा। केजरीवाल ने बिल्कुल आम आदमी का हुलिया अपनाया। वो सादे कपड़े पहन वैगनआर कार में चलते। धरना देते, लोगों के बीच सो जाते। इसी सब के बीच में एक वीडियो जारी कर केजरीवाल ने कहा, मैं आपमें से एक हूं, मैं और मेरा परिवार आपके ही जैसे हैं, आपकी ही तरह रहते हैं, मैं और मेरा परिवार आपकी ही तरह इस सिस्टम के अंदर जीने की कोशिश कर रहे हैं। और इसी दौरान खाँसते हुए केजरीवाल का मफ़लरमैन स्वरूप सामने आया। गले में मफ़लर डाले केजरीवाल को दिल्ली में जहां जगह मिलती वहीं जनसभा कर देते।

फिर दिल्ली को मिली पूर्ण बहुमत की सरकार

दिल्ली विधानसभा चुनावों में केजरीवाल ने दिल्ली (Delhi) की जनता से पूर्ण बहुमत माँगा और जनता ने उन्हें ऐतिहासिक जीत दी। 70 में से 67 सीटें जीत कर केजरीवाल ने 14 फ़रवरी 2015 को फिर दिल्ली के मुख्यमंत्री की शपथ ली। केजरीवाल को बहुमत तो मिला लेकिन जिस जनलोकपाल को लाने का उन्होंने वादा किया था वो नहीं आ सका।
पाँच साल उन्होंने दिल्ली की स्वास्थ्य, शिक्षा और अन्य सार्वजनिक सेवाओं पर काम करने में लगाए। बीच-बीच में वो केंद्र सरकार पर सहयोग न करने का आरोप लगाते रहे। बिजली-पानी मुफ़्त करने जैसी लोकलुभावन योजनाएँ लागू कीं। आज दिल्ली के अलावा आम आदमी पार्टी की पंजाब में पूर्ण बहुमत की सरकार है। हाल ही में चंडीगढ़ (Chandigarh) के निकाय चुनाव में भी पार्टी को बड़ी सफलता मिली। इंडिया गठबंधन में साझीदार बनकर इस लोकसभा चुनाव में केजरीवाल अपनी पार्टी को राष्ट्रीय स्तर पर मज़बूत करने की उम्मीद कर रहे थे।

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