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UP News: जौनपुर की बेटी चारू यादव के सिर सजा सेंट्रल यूनिवर्सिटी ऑफ पंजाब का लोगो बनाने का ताज

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UP News: उत्तर प्रदेश के जौनपुर जिले से करीब एक हजार 137 किमी दूर भटिंडा में स्थित सेंट्रल यूनिवर्सिटी ऑफ पंजाब का विशालकाय प्रांगण है। करीब 500 एकड़ में बने इस विश्वविद्यालय के परिसर में जब आप अपने कदम रखेंगे तो वहां मेन गेट पर आपको यूनिवर्सिटी की आत्मा नजर आएगी, वो आत्मा कोई और नहीं बल्कि इस केंद्रीय विश्वविद्यालय का लोगो है। ये लोगो सिर्फ एक आकार भर नहीं बल्कि इसने अपने भीतर मसूचे पंजाब की सांस्कृतिक, सामाजिक और शैक्षणिक विरासत को समाहित किए हुए है।

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हाल ही में यूनिवर्सिटी ने अपना लोगो बदला है। लिहाजा इस नये लोगो का चयन यूनिवर्सिटी प्रशासन के लिए आसान नहीं रहा होगा। जानकारी के मुताबिक सेंट्रल यूनिवर्सिटी ऑफ पंजाब ने नया लोग डिजाइन करने के लिए एक प्रतियोगिता का आयोजन किया। इसमें देशभर से प्रतिभागियों ने हिस्सा लिया। खूब ढेर सारी डिजायन भी यूनिवर्सिटी को मिलीं। जिसमें एक से बढ़कर एक डिजाइन थीं। लेकिन आखिरकार यूनिवर्सिटी ने उस लोगो का चयन किया जिसे जौनपुर की बेटी चारू यादव ने डिजाइन किया था। ये लोगो यूनिवर्सिटी प्रबंधन को इतना पसंद आया कि बिना देर किये इसे दीक्षांत समारोह से पहले यूनिवर्सिटी का आधिकारिक लोगो घोषित कर दिया। ऐसे में जब महामहिम राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मु दीक्षांत समारोह में शिरकत करने आईं तो हर जगह डॉ. चारू यादव का डिजाइन किया हुआ लोगो यूनिवर्सिटी की भव्यता में चार चांद लगा रहा था।

यह लोगो अपने रूप रंग और आकार को लेकर जितना आपको आकर्षित करता है उससे ज्यादा इसके भीतर के छिपे भाव हर किसी को मंत्र मुग्ध कर देते हैं। लोगो क डिजाइन करने वाली डॉ. चारू यादव के बारे में आपको बताएं उससे पहले ये जानते हैं कि आखिर इस लोग में वो कौन सी चीजें हैं जो इसे खास बनाती हैं.. इस लोगो को डिजाइन करते समय चारू यादव ने इन ऑब्जेक्ट को क्यों चुना और इसके पीछे उनकी सोच क्या था और ये 7 ऑब्जेक्ट कैसे समूचे पंजाब को अपने भीतर समाहित करते हैं. इस बारे में जारू यादव ने विस्तार से जानकारी दी।

पांच तरेंगें- सतलुज, व्यास, रावी, गिनाब और झेलम नदी को दर्शाती हैं जो पंजाब की जीवनदायिनी भी कही जाती हैं। पंजाब शब्द फारसी के पंज (पांच) और आब (पानी) को मिलाकर बना है। यानी पांच नदियों का क्षेत्र पंजाब। जिसे इस लोगो में पांच तरंगों के जरिए दर्शाया गया है । ये फारसी शब्द संस्कृत के पंचनाद पर आधारित है। पद्म – जिसे ज्ञान, उर्वरता, आत्मज्ञान, परम सत्य और विजय का प्रतीक माना जाता है। यह सौन्दर्य और अनासक्ति का भी प्रतीक है। कीचड़ में उगने के बाद भी इसमें से लोहबान जैसी सुगंध निकलती है।अर्थात ज्ञान प्राप्ति से ही व्यक्तित्व निखर सकता है। विद्या की देवी मां सरस्वती को भी पद्म पर विराजमान दर्शाया जाता है। जय जवान, जय किसान, जय विज्ञान, जय अनुसंधान- यह नारा विश्वविद्यालय के कुलगीत और मोमेंटो में परिलक्षित होता है। यह नारा कला और मानविकी, सामाजिक गिज्ञान, विज्ञान और प्रौद्योगिकी का मिश्रण है। अनुसंधान और विकास में हमारी ताकत हमारी केंद्रीय विश्वविद्यालयों की रीढ़ पर बनी है।

दीया – यह अन्धकार पर प्रकाश की विजय का प्रतीक है। प्रकाश को ज्ञान का प्रतिनिधित्व माना जाता है जो अज्ञानता के अंधेरे को दूर करता है। श्लोक- आ नो भद्रा: क्रतवो यन्तु विश्वत: यानि कल्याणकारक, न दबने वाले, पराभूत न होने वाले, उच्चता को पहुंचाने वाले, शुभ विचार, शुभ संकल्प, शुभ निश्चय चारों ओर से हमारे पास आएं। वर्ण (रंग) – इस लोगो में इस्तेमाल वर्ण (केसरिया रंग) ज्ञान और रचनात्मकता का प्रतीक है।केसरिया रंग दिमाग में ऑक्सीजन के प्रवाह को बढ़ाता है। जिसमें सामाजिक गतिविधि और रचनातत्मकता उत्तेजित होती है। वही हरा रंग प्रकृति को दर्शाता है। जिससे विकास, सद्भाव, उर्वरता और ताजगी का आभास होता रहता है। चक्र- यह गति, संपूर्णता और सभी प्रकार की संस्कृति तथा वातावरण को प्रदर्शित करता है। लोगो के बारे में विस्तृत जानकारी के बाद चलिए आपको लोगो डिजाइन करने वाली डॉक्टर चारू यादव के बारे में भी विस्तार से बता देते हैं।

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डॉ. चारू यादव उत्तर प्रदेश के जौनपुर जिले के एक छोटे से गांव इटैली की मूल निवासी हैं। उनके दादा आजाद भारत में अपने गांव के पहले ग्राम प्रधान थे, जिन्होंने अपने चारों बेटों को अच्छी शिक्षा दी और बाद में चलकर सिविल सेवा, इंजीनियरिंग क्षेत्र और कृषि के सेक्टर से लंबे वक्त तक जुड़े रहे। चारू के पिता मंगला प्रसाद यादव खुद सिविल सेवा से रिटायर्ड अधिकारी हैं. उनकी बेटी चारू यादव ने खुद पंजाब केंद्रीय विश्वद्यालय में बतौर असिस्टेंट प्रोफेसर कार्यरत हैं। बेटी की इस कामयाबी से ना सिर्फ उनका परिवार आह्लादित है बल्कि पूरा जौनपुर जिले अपनी बेटी की उपलब्धि पर नाज कर रहा है। चारू यादव उन बच्चों के लिए एक प्रेरणा श्रोत हैं जिसे अपने मन की पढ़ाई मिलने पर उस क्षेत्र में बुलंदियों तक पहुंचने की चाहत हो। चारू यादव शुरुआती पढ़ाई में सामान्य छात्र थीं, लेकिन जब उनकी कला की रुचि को उन्होंने अपना हायर एजुकेशन का माध्यम बनाने का फैसला किया तो उसके बाद कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा. इसलिए चारू यादव कहती हैं कि हर उस माता-पिता को अपने बच्चों पर अपने मन की पढ़ाई थोंपने की बजाय उसकी रुचि के हिसाब से उसे उच्च शिक्षा के चयन में मदद करनी चाहिए।