Rahul you will become a CEO one day, a journalist's years old prediction comes true

Rahul Kanwal: राहुल तुम एक दिन CEO बनोगे, एक पत्रकार की सालों पुरानी भविष्यवाणी सच

TV दिल्ली NCR
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Rahul Kanwal: राहुल कंवल, टीवी इंडस्ट्री का जाना-माना चेहरा, दो दशक से भी ज्यादा समय तक टीवी टुडे नेटवर्क में बड़ी जिम्मेदारी निभाने के बाद फिलहाल एनडीटीवी इंडिया के CEO-एडिटर-इन-चीफ हैं। राहुल कंवल को लेकर वरिष्ठ टीवी पत्रकार संजय सिन्हा ने एक भविष्यवाणी की थी। जो सच साबित हुई।

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संजय सिन्हा

मेरे चाल-ढाल और विचारों को देखकर पिताजी को काफी पहले अंदेशा हो गया था कि मैं अपनी मर्जी से शादी करूंगा। क्योंकि जाति और दहेज जैसी कुरीतियों पर मैं सिर्फ स्कूली वाद-विवाद प्रतियोगिताओं में बोलता नहीं था, बल्कि उन्हें जीता भी था। आप सोच रहे होंगे कि संजय सिन्हा फिर आ गए हैं अपनी घिसी-पिटी (दरअसल, बहुत हिट) कहानी सुनाने। लेकिन आज की कहानी कुछ अलग है। यह कहानी है आदमी के व्यवहार से उसकी योग्यता और संभावनाओं को पहचानने की।

मैंने 1999 में ज़ी न्यूज़ जॉइन किया था। तब मेरे पास जनसत्ता में लगभग 11 वर्षों का प्रिंट अनुभव था। इलेक्ट्रॉनिक मीडिया में मेरा पहला कदम था। मेरी जॉइनिंग के कुछ ही समय बाद, कॉलेज से निकला एक युवक ‘इंटर्नशिप’ के लिए ज़ी न्यूज़ आया। गोरा, लंबा, मेहनती और हिंदी-अंग्रेज़ी दोनों भाषाओं पर समान पकड़।

बहुत कम समय में वह संस्थान में लोकप्रिय हो गया-‘लोकप्रिय’ से भी बेहतर शब्द होगा ‘सबका दुलारा’। उसे जल्द ही रिपोर्टिंग की ज़िम्मेदारी मिल गई, और ट्रेनी से उसे ‘ज़ी’ में ही नौकरी भी मिल गई।

उन दिनों ‘ज़ी न्यूज़’ में दफ्तरीय राजनीति चरम पर थी। लेकिन वह लड़का इन सबसे दूर, फील्ड रिपोर्टिंग में डूबा रहता था। हमारी बातचीत होती थी। वह हमेशा मुस्कुराता रहता था और एक असाइनमेंट खत्म होते ही दूसरे के लिए तैयार हो जाता था। उसका व्यवहार ऐसा था कि वह सिर्फ संपादकों ही नहीं, मालिकों का भी चहेता बन गया था, वो भी बहुत कम समय में।

फिर मैं अमेरिका चला गया। कहानी वहीं थोड़ी रुक गई।

2005 में जब मैं भारत लौटा, वह उससे बहुत पहले ‘ज़ी’ छोड़ कर ‘आजतक’ से जुड़ चुका था। जब मैंने आजतक ज्वाइन किया वो वहां एंकर और रिपोर्टर था। अब आप पहचान ही गए होंगे- मैं राहुल कंवल की बात कर रहा हूं।

वह हिंदी की खबरें पढ़ता था, रिपोर्टिंग करता था, -जैसे उस समय रितुल जोशी, सोनिया सिंह, श्वेता सिंह, पुण्य प्रसून बाजपेयी रिपोर्टिंग और एंकरिंग दोनों करते थे। मुझे याद है, अचानक हेडलाइंस टुडे (आजतक का अंग्रेज़ी चैनल) के संपादक श्रीनी इस्तीफा दे गए। सवाल था, अब अगला संपादक कौन?

कुछ ही समय में खबर आई कि राहुल कंवल को हेडलाइंस टुडे का हेड बनाया गया है। उस समय उससे वरिष्ठ कई लोग थे। लेकिन शायद यह राहुल की मेहनत, विवादों से दूर रहने और संजीदा काम करने की आदत थी, जिसने प्रबंधन को प्रेरित किया सीधे चैनल हेड बना देने के लिए।

उस समय कमर वहीद नकवी पूरे टीवी टुडे (आजतक, हेडलाइंस टुडे, तेज़ और दिल्ली आजतक) के न्यूज डायरेक्टर थे। मैंने उनसे पूछा-“राहुल चैनल चला लेगा?”

नकवी जी मुस्कुराए और बोले, “अगर नहीं चला पाया तो हटा भी दिया जाएगा। लेकिन फिलहाल हमें वह इस पद के लिए उपयुक्त लगा है- एक प्रयोग के तौर पर।”

हमारा ऑफिस तब झंडेवालान के वीडियोकॉन टॉवर की चौथी मंजिल पर था। मेन डोर से बाईं ओर आजतक का संपादकीय विभाग, दाईं ओर हेडलाइंस टुडे।

एक दिन देखा, हेडलाइंस टुडे के संपादक का कमरा (केबिन) तोड़ा जा रहा है। मैं राहुल के पास गया, ”केबिन तुड़वा रहे हो?” उसने कहा, “संजय जी, अच्छा नहीं लगता। इतने लोग मुझसे सीनियर हैं। मैं केबिन में बैठूं और मीटिंग लूं, यह मुझे ठीक नहीं लगता।” केबिन टूट गया।

उस दौर में जब लोग केबिन के लिए तरसते थे पूरे फ्लोर पर सिर्फ नकवी जी का और हेड लाइंस टुडे के संपादक श्रीनी का केबिन था। श्रीनी के केबिन में राहुल को बैठना था। लेकिन राहुल ने खुद को खुले में सभी के बीच बिठा लिया।

अब तीस साल का एक लड़का चैनल हेड बन गया था। स्वाभाविक था कि कई लोगों के ‘कलेजे पर सांप लोटे’। सोचिए मत कि अंग्रेज़ी चैनल वालों के कलेजे पर ‘स्नेक’ नहीं लोटते। बराबर लोटते हैं।

कई वरिष्ठों ने चैनल तक छोड़ दिया, ”एक बच्चे को कैसे रिपोर्ट करें?” मैं किसी एक का नाम नहीं लिख रहा, लेकिन उनका इगो आड़े आ गया था, बिना ये समझे कि टीवी की दुनिया में सीनियर, जूनियर कुछ नहीं होता। कटेंट चलता है, सिर्फ कटेंट। ये एक प्रयोग था, शुद्ध प्रयोग।

राहुल के सामने चुनौतियां थीं। पीठ पीछे चर्चा थीं। लेकिन चैनल चलता रहा, वह चलाता रहा। बहुत कम समय में उसने लोगों के साथ खुद को एडजस्ट कर लिया था। कमाल की बात तो ये थी कि उसी साल जब प्रमोशन और इंक्रीमेंट का समय आया तो उसने अपने मातहत काम करने वालों के लिए जिस पद और प्रमोशन की सिफारिश की थी खुद सीनियर प्रोड्यूसर/स्पेशल कारेसपांडेट रहते हुए अपने ऊपर का पद दिलवाना आसान काम नहीं होता है। खैर, उसी साल राहुल को री-डेजिगनेट किया गया और वो चैनल हेड बना।

कुछ साल बाद हमारा ऑफिस झंडेवालान से नोएडा फिल्म सिटी शिफ्ट हो गया। वहां मेरा और राहुल का केबिन अगल-बगल था। इतना अगल-बगल की हमें एक-दूसरे तक साफ़ सुनाई देती थीं। (यह सब बताना कहानी का हिस्सा नहीं है।)

तब वह इनपुट हेड था, मैं तेज़ चैनल का हेड था।

एक दोपहर, लंच टाइम में मैंने उससे अचानक कहा, “राहुल तुम एक दिन सीईओ बनोगे।” एक पत्रकार, संपादक का सीईओ बनना आम बात नहीं। लेकिन न जाने क्यों, मुझे लगता था कि राहुल एक दिन प्रबंधन की भूमिका में जाएगा। 

पत्रकारिता कोर्स

सीईओ पद पूरी तरह प्रबंधकीय होता है। ये आसान नहीं होता है। लेकिन यह संजय सिन्हा की भविष्यवाणी थी। आप राहुल की रिपोर्टिंग या एंकरिंग को लेकर जो भी राय रखते हों, लेकिन उस दिन मेरे भीतर ये आवाज उठी थी कि ये लड़का एक दिन सीईओ बनेगा। मैंने उसे कह दिया। राहुल हंस पड़ा, “कहां संजय जी! मैं सीईओ क्यों और कैसे बनूंगा? और “सीईओ बन कर करूंगा क्या?”

बात वहीं खत्म हो गई। 27 मई 2021 को मैं आजतक से विदा हो रहा था। टाइम्स नेटवर्क में शामिल हो रहा था, उत्साहित भी था, भावुक भी।

उस शाम मैंने एक सार्वजनिक मेल लिखा। सभी के बारे में अपनी राय मैंने लिखी थी, जितने लोग मेरे जीवन समाहित हुए थे, जिनका मुझ पर थोड़ा भी असर था, उन सभी को मैंने अपने गुडबाय मेल में शुक्रिया कहा था। उसी मेल में मैंने राहुल के लिए जो लिखा था, उसे जस का तस आपके सामने रख रहा हूं (पूरा पत्र अंग्रेज़ी में था और बहुत लंबा भी):

“Now, Rahul Kanwal. I knew him since my Zee News days, where he had come as an intern. Soon, he carved a niche for himself, and we knew this hardworking and non-interfering young man would go far. I think he will reach much greater heights.”

अब राहुल कंवल। मैं उसे ज़ी न्यूज़ के दिनों से जानता हूं, जहां वह इंटर्न के तौर पर आया था। जल्दी ही उसने अपनी एक अलग पहचान बना ली थी, और हमें यह समझ आ गया था कि यह मेहनती और बिना हस्तक्षेप करने वाला युवा बहुत आगे जाएगा। मुझे लगता है कि वह शिखर तक पहुंचेगा।

यही मेरी भविष्यवाणी थी। असल में ज्योतिषियों के शो करते-करते शायद मेरे भीतर भी यह गुण आ गया था-और मेरी कही बात सही साबित हुई। अब आप इस बहस में मत पड़िए कि राहुल ने सही किया या क्या ग़लत। बस इतना देखिए कि किसी व्यक्ति के भविष्य की रेखाएं कैसे उसके शुरुआती व्यवहार में छिपी होती हैं।

जैसे मेरे पिताजी की आंखों ने पढ़ लिया था कि मैं एक जुझारू जीवन जीऊंगा। वैसे ही, मेरी आंखों ने सालों पहले एक पत्रकार के सीईओ बनने की कहानी पढ़ ली थी। 

पत्रकारिता कोर्स

आपकी जानकारी के लिए-राहुल कंवल अब NDTV न्यूज चैनल के सीईओ हैं। एनडीटीवी के सीईओ बनने के बाद मैंने राहुल को यह याद दिलाया कि मेरी भविष्यवाणी सही निकली। उसने कहा,” संजय जी, अभी बहुत मेहनत करनी है।”

नोट- ट्रेनी से सीईओ तक की ये यात्रा आसान नहीं होती है। कम से कम एक पत्रकार के लिए। पत्रकार संपादक तो बन जाते हैं, सीईओ बनना सबके हिस्से नहीं आता। सौ. भड़ास

लेखक- संजय सिन्हा( संजय सिन्हा वरिष्ठ पत्रकार और कहानीकार हैं और कई टीवी न्यूज़ चैनलों को लीड कर चुके हैं)