भाभी की शिकायत पर धोखेबाज’ बताकर 9 साल पहले निकाल फेंका था आर्मी से बाहर
दोबारा सुनवाई का आदेश!
Lucknow News: इलाहाबाद उच्य न्यायालय, लखनऊ पीठ के एक ऐतिहासिक आदेश ने उस युवा की जिंदगी में नई उम्मीद जगा दी, जिसे ‘धोखाधड़ी’ के आरोप में सेना से बाहर निकाल दिया गया था। अधिवक्ता चन्दन कुमार पाण्डेय और राज कुमार मिश्र की जोरदार बहस के उपरांत इलाहाबाद हाईकोर्ट की लखनऊ बेंच ने 4 नवंबर 2025 को आर्ड फोर्स ट्राइब्यूनल (AFT), लखनऊ का आदेश रद्द करते हुए कहा कि “15 साल का कोई बालक यह कैसे समझ सकता था कि उसके खिलाफ कोई मुकदमा दर्ज हुआ है।”
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जनपद इटावा का मामलाः
यह मामला इटावा जिले के विशंभर कॉलोनी निवासी जितेंद्र यादव से जुड़ा है। वर्ष 2013 में पारिवारिक विवाद के कारण उसकी भाभी ने दहेज उत्पीड़न के मुकदमे मे पूरे परिवार समेत मासूम जितेंद्र (15 वर्ष) को भी नामजद कर दिया, उस व्यक्त वह नौवीं कक्षा में पढ़ता था। ना पुलिस की कोई कार्रवाई हुई, ना कोई समन या नोटिस मिला। जितेंद्र अपनी पढ़ाई में लगा रहा और 2015 में वह इंडियन आर्मी के रिमाउंट वेटरनरी कॉर्म्स (RVC) में भर्ती हो गया। सेना मे प्रशिक्षण पूरा होने के बाद जितेंद्र की सिर्फ कसम परेड (अटेस्टेशन) की प्रक्रिया होनी थी।
भाभी की शिकायत बनी बर्खास्तगी का कारणः
अगस्त 2016 में जितेंद्र कि भाभी ने मेरठ स्थित RVC सेंटर के कमांडेंट को एक पत्र भेजकर आरोप लगाया कि जितेंद्र “एक आरोपी” है और उसके खिलाफ केस लंबित है। इसके बाद सेना ने दोबारा पुलिस सत्यापन करने का आदेश जारी किया, जिसमें पुराना FIR सामने आया, जिसके उपरांत सेना ने 15 दिसंबर 2016 को नौकरी से निकालने का आदेश जारी कर दिया।
9 साल लंबी कानूनी लड़ाई:
बर्खास्तगी के बाद जितेंद्र ने आर्मी चीफ तक अपनी अर्जी भेजी पर कोई सुनवाई नहीं हुई, फिर उसने आर्ड फोर्स ट्राइब्यूनल, लखनऊ में याचिका दायर की। लेकिन 28 अप्रैल 2023 को AFT ने भी याचिका खारिज करते हुए लिखा कि “भर्ती के समय जितेंद्र द्वारा सच छिपाया गया, यह धोखाधड़ी का मामला है।” इससे निराश होकर जितेंद्र ने लखनऊ के एक जाने माने लॉ फर्म प्रोएक्टिव लीगल के माध्यम से हाईकोर्ट की लखनऊ बेंच में रिट पिटिशन दाखिल की।
हाईकोर्ट की तीखी टिप्पणीः
जस्टिस संगीता चंद्रा और जस्टिस अमिताभ कुमार राय की खंडपीठ के समक्ष अधिवक्ता चंदन कुमार पाण्डेय और राज कुमार मिश्र ने जोरदार बहस करते हुवे यह तर्क रखी कि “15 साल के बच्चे को ‘फ्रॉड’ कैसे कहा जा सकता है? क्या पुलिस या अदालत ने कभी उसे बुलाया? क्या उसे जानकारी थी कि उसका नाम किसी एफआईआर में दर्ज है?” कोर्ट ने कहा कि ऐसा मामला “न्याय के सिद्धांतों के विपरीत” है और AFT का निर्णय रद्द कर दिया। अदालत ने साफ आदेश दिया कि मामले की पुनः सुनवाई की जाए और सबसे पहले यह तय किया जाए कि क्या जितेंद्र को वाकई मुकदमे की जानकारी थी।
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वर्दी की चमक लौटने की उम्मीदः
फैसले के बाद जितेंद्र और उसके परिवार की आँखों में राहत के आँसू थे। उसके पिता ने भावुक होकर कहा कि “नौ साल के बाद भगवान ने हमारी सुन ली। अब मेरा बेटे को वर्दी मे देखने कि उम्मीद फिर से जग गई है” इटावा का यह केस अब एक मिसाल बन गया है।

