Lok Sabha Bill: क्या भारत में अब कानून सबके लिए एक समान होगा? यह सवाल आज पूरे देश में चर्चा का विषय बना हुआ है।
Lok Sabha Bill: क्या भारत में अब कानून (Law) सबके लिए एक समान होगा? यह सवाल आज पूरे देश में चर्चा का विषय बना हुआ है। केंद्र सरकार ने लोकसभा में तीन भ्रष्टाचार निरोधक बिल (Bill) पेश किए हैं, जो प्रधानमंत्री, मुख्यमंत्रियों और मंत्रियों पर गंभीर आपराधिक आरोपों के तहत 30 दिन की हिरासत के बाद पद से हटाने का प्रावधान करते हैं। इन बिलों ने एक तीखी बहस छेड़ दी है, क्योंकि सरकार इसे भ्रष्टाचार के खिलाफ कड़ा कदम बता रही है, जबकि विपक्ष इसे संविधान के खिलाफ और लोकतंत्र विरोधी करार दे रहा है। पढ़िए पूरी खबर…

क्या खत्म होगी ‘दागी बनो, नेता बनो’ की परंपरा?
अब तक ऐसे कई उदाहरण देखे गए हैं जहां नेता अपने आपराधिक रिकॉर्ड को गर्व की बात समझते हैं, और इसे अपनी ‘लोकप्रियता’ का प्रमाण मानते हैं। लेकिन नए बिल के जरिए इस परंपरा पर रोक लग सकती है।
आपको बता दें कि केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह (Minister Amit Shah) ने लोकसभा में 130वां संविधान संशोधन बिल 2025 पेश किया। इस बिल के तहत प्रधानमंत्री, केंद्रीय मंत्री और राज्य मंत्री अगर गिरफ्तार होते हैं तो उन्हें पद से हटना होगा। गृह मंत्री अमित शाह ने कहा कि लोकतंत्र में जनता का विश्वास सर्वोपरि है। यदि कोई नेता गंभीर आरोपों में जेल में है, तो उसके पद पर बने रहना नैतिक और संवैधानिक दोनों स्तरों पर उचित नहीं। उन्होंने कहा कि यह कानून भ्रष्टाचार के खिलाफ जीरो टॉलरेंस नीति का हिस्सा है और इससे जनता का भरोसा लोकतांत्रिक संस्थाओं पर और मजबूत होगा।
लोकसभा में तीन अहम बिल पेश
केंद्र सरकार ने लोकसभा में तीन ऐसे बिल पेश किए हैं, जिनमें प्रधानमंत्री, मुख्यमंत्री और मंत्रियों पर सख्त प्रावधानों की बात कही गई है। बिल के अनुसार, अगर किसी संवैधानिक पद पर बैठे व्यक्ति पर ऐसी धाराएं लगती हैं जिनमें पांच साल या उससे अधिक की सजा का प्रावधान है, और वह गिरफ्तार होता है, तो उसे 31वें दिन तक अपने पद से इस्तीफा देना होगा। ऐसा न करने पर उसे उस पद से स्वतः हटा दिया जाएगा।
प्रधानमंत्री पर भी लागू होगा ये प्रावधान
अगर प्रधानमंत्री स्वयं किसी गंभीर आपराधिक केस में गिरफ्तार होते हैं और 30 दिनों तक जेल में रहते हैं, तो उन्हें भी 31वें दिन पद छोड़ना होगा। अगर वो नहीं हटते, तो उन्हें स्वतः हटा दिया जाएगा। लेकिन, यदि कोर्ट से उन्हें ज़मानत मिल जाती है, तो सत्तारूढ़ पार्टी चाहे तो उन्हें फिर से प्रधानमंत्री बना सकती है।
राज्य के मुख्यमंत्री और मंत्रियों पर भी लागू होंगे नियम
यह कानून राज्यों पर भी लागू होगा। अगर किसी राज्य के मुख्यमंत्री या मंत्री को गिरफ्तार किया जाता है, तो राज्यपाल उन्हें 31वें दिन तक पद से हटा सकते हैं। अगर मुख्यमंत्री खुद गिरफ्तारी के बाद जेल में रहते हैं, तो उन्हें भी इस्तीफा देना होगा या 31वें दिन स्वतः पद से हट जाएंगे।
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विधायक-सांसदों पर नहीं लागू होगा नया नियम
इस बिल में सिर्फ संवैधानिक पदों यानी प्रधानमंत्री, मुख्यमंत्री और मंत्रियों का जिक्र है। इसका मतलब यह है कि सांसद और विधायक इस नियम के दायरे में नहीं आएंगे। उनकी सदस्यता तब तक वैध मानी जाएगी, जब तक अदालत उन्हें दोषी करार न दे और दो साल या उससे अधिक की सजा न सुनाए।
सरकार की दलील- नैतिकता और भरोसे के लिए ज़रूरी
सरकार का कहना है कि यह कानून देश के लोकतंत्र में जनता का विश्वास मजबूत करेगा। इससे यह संदेश जाएगा कि जो नेता गंभीर आरोपों में फंसे हैं, उन्हें नैतिकता के आधार पर पद नहीं मिलना चाहिए।
विपक्ष ने जताई आपत्ति- बताया लोकतंत्र के खिलाफ
विपक्ष ने इस बिल का विरोध करते हुए इसे संविधान विरोधी बताया है। उनका तर्क है कि दोषी साबित होने से पहले ही किसी को पद से हटाना लोकतंत्र की भावना के खिलाफ है। साथ ही विपक्ष को आशंका है कि सरकार इस कानून का दुरुपयोग करके किसी भी मुख्यमंत्री को सिर्फ 30 दिन जेल भेजकर हटवा सकती है।
बिल को भेजा गया संयुक्त संसदीय समिति के पास
विरोध के बाद सरकार ने यह बिल संयुक्त संसदीय समिति (JPC) के पास भेज दिया है, जिसमें सत्ता पक्ष और विपक्ष दोनों के सांसद होते हैं। अब समिति इसमें जरूरी सुधार और सुझाव दे सकती है।
2013 का अध्यादेश बनाम 2025 का बिल
यह बहस 2013 की उस घटना की याद दिलाती है, जब यूपीए सरकार ने एक अध्यादेश लाकर दोषी सांसदों को बचाने की कोशिश की थी। उस वक्त राहुल गांधी ने प्रेस के सामने उस अध्यादेश को “कूड़ेदान में फेंकने लायक” बताया था। आज की सरकार उससे एक कदम आगे जाकर कह रही है कि अगर प्रधानमंत्री भी दोषी हैं, तो उन्हें पद छोड़ना होगा।
दागी सांसदों की हकीकत
मौजूदा लोकसभा में 543 सांसदों में से 251 यानी 46% सांसदों पर आपराधिक मामले दर्ज हैं। इनमें से 27 सांसद ऐसे हैं जिन पर आरोप निचली अदालतों में साबित भी हो चुके हैं। कांग्रेस के 49% और बीजेपी के 39% सांसद दागी हैं। वहीं, 170 सांसदों पर हत्या, रेप और अपहरण जैसे संगीन अपराधों के मामले दर्ज हैं।
नेता जेल में, फिर भी मंत्री बने रहने की जिद
देश में आम नागरिक को संसद की विजिटर गैलरी में जाने के लिए भी बैकग्राउंड चेक से गुजरना पड़ता है। लेकिन कई ऐसे सांसद और मंत्री हैं जो आपराधिक मामलों में जेल जा चुके हैं और फिर भी मंत्री या मुख्यमंत्री बने रहना चाहते हैं।
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अब सवाल यह है कि यह बिल देश में राजनीति को साफ करने की दिशा में अहम कदम है या फिर सत्ता का नया हथियार? इसका जवाब आने वाले समय और संसदीय बहस के बाद मिलेगा। लेकिन इतना तय है कि अगर ये कानून बनता है, तो नेताओं के लिए राजनीति अब पहले जैसी आसान नहीं रहेगी।

