उद्भव त्रिपाठी, ख़बरीमीडिया
Mahatma Gandhi Birth Anniversary: हर साल 2 अक्टूबर को हम सभी राष्ट्रपिता महात्मा गांधी (Mahatma Gandhi) की जयंती मनाते हैं। कल यानी 2 अक्टूबर को देश ने बापू की 154वीं जयंती मनाई। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (Prime Minister Narendra Modi) जब रूस-यूक्रेन (Russia-Ukraine) जंग के संबंध में दो टूक कहते हैं कि यह युग युद्ध का नहीं है तो उनके इस कथन में बापू का ही दृष्टिकोण झलकता है। अहिंसा परमो धर्म: को आत्मसात कर अपने जीवन काल में इस विचार की ताकत से बापू ने पूरी दुनिया को अपनी शक्ति का एहसास करवाया। और अहिंसक सत्याग्रहों के माध्यम से स्वतंत्रता आंदोलन में महत्वपूर्ण योगदान देकर देश और दुनिया के मन में हमेशा के लिए बस गए।
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देशों में उथल-पुथल, संकट और कई मोर्चों पर असमानता के चलते युद्ध के समीप खड़ी इस दुनिया में बापू के विचारों की कितनी जरूरत है, यह किसी से छिपा नहीं है। सादा जीवन उच्च विचार और सत्य के मार्ग पर चलकर अहिंसा का पालन करने का उनका सिद्धांत आज भी दुनिया को शांति की राह दिखाता है।
बापू की शिक्षा
अपनी प्राथमिक शिक्षा के बाद, गांधीजी अपने पिता की नई नौकरी के कारण राजकोट (Rajkot) चले गये। 11 साल की उम्र में उन्होंने अल्फ्रेड हाई स्कूल (High School) में दाखिला लिया। यहां उन्होंने अंग्रेजी समेत कई विषयों में महारत हासिल की। हालाँकि गांधीजी ने विभिन्न विषयों में महारत हासिल की, लेकिन उन्होंने अपनी लिखावट में कभी सुधार नहीं किया, क्योंकि उन्होंने शुरू में धूल पर लिखना सीखा था। 2017 में, जिस स्कूल में गांधी ने पढ़ाई की थी, उसे एक संग्रहालय में बदल दिया गया।
13 साल की उम्र में उनकी शादी हो गई, जिससे उनकी हाई स्कूल की पढ़ाई एक साल के लिए बाधित हो गई, लेकिन कड़ी मेहनत करके उन्होंने इसकी भरपाई की। अपनी हाई स्कूल की शिक्षा पूरी करने के बाद, उन्हें सामलदास आर्ट्स कॉलेज में दाखिला दिया गया, जो उस समय डिग्री प्रदान करने वाला क्षेत्र का एकमात्र स्थान था। कुछ समय बाद उन्होंने कानून की पढ़ाई करने का फैसला किया। अपने परिवार को छोड़ कर लंदन (London) जाने के उनके इस फैसले की आलोचना की गई, लेकिन फिर भी उन्होंने 1888 में यूनिवर्सिटी कॉलेज लंदन (यूसीएल) में प्रवेश लिया और तीन साल में कानून की डिग्री पूरी की।
जब जो बाइडेन को याद आए बापू
महात्मा गांधी के सिद्धांत आज भी दुनिया को साझा प्रयासों के लिए किस कदर प्रेरित करते हैं, इसका एक उदाहरण तब मिलता है जब कुछ दिन पहले ही भारत की अध्यक्षता में देश में ही संपन्न हुए जी-20 शिखर सम्मेलन के दौरान देखने को मिला, जब दुनिया के सबसे ताकतवर देश अमेरिका के राष्ट्रपति जो बाइडेन ने बापू की समाधि पर श्रद्धांजलि अर्पित कर कहा कि भारत और अमेरिका के बीच साझेदारी महात्मा गांधी के संरक्षक (ट्रस्टीशिप) के सिद्धांत में निहित है… ट्रस्टीशिप जो हमारे देशों के बीच साझा है और जो हमारे साझे ग्रह के लिए है।
बाइडेन ने राजघाट पर उन्हें ले जाने के लिए पीएम मोदी को धन्यवाद भी दिया था। बाइडेन ही नहीं, जी-20 समूह के ज्यादातर दिग्गज जो उस दिन पीएम मोदी के साथ राजघाट पर गए, उनके मन में बापू का सत्य, अंहिसा और शांति का संदेश जोर से गूंजा होगा और उन्हें प्रेरणा से भर दिया होगा। अपने अस्तित्व के छह दशक बाद सयुंक्त राष्ट्र महासभा को भी लगा कि बापू की जयंती पर अंतरराष्ट्रीय अहिंसा दिवस मनाया जाना चाहिए और इसी को लेकर 15 जून 2007 को एक प्रस्ताव पारित कर इसे हकीकत बना दिया। पक्ष हो या विपक्ष, मुद्दों पर आवाज उठाने के लिए शंखनाद करने और उसके लिए साहस जुटाने का रास्ता आज भी बापू की प्रतिमाओं और देश में राजघाट से होकर ही जाता है।
बापू का सपना स्वच्छ भारत हो अपना
बापू की आत्मकथा सत्य के प्रयोग में कई ऐसे मौकों का जिक्र है जब उन्होंने स्वच्छता के लिए खुद आगे आकर लोगों को प्रेरित किया है। अपने हाथों से सार्वजनिक जगहों पर सफाई की। भारत सरकार की एक वेबसाइट कहती है कि महात्मा गांधी ने ‘स्वच्छ भारत’ का सपना देखा था, वह चाहते थे कि सभी देशवासी मिलकर देश को स्वच्छ बनाने में मदद करें। उनके इस सपने को पूरा करने के लिए पीएम मोदी ने 2 अक्टूबर 2014 को स्वच्छ भारत अभियान शुरू किया जो आज भी जारी है।
इस बार बापू की जयंती को देखते हुए स्वच्छता अभियान कार्यक्रम के लिए भारतीय जनता पार्टी सेवा पखवाड़ा मना रही है। पीएम मोदी को भी इसमें योगदान देते हुए देखा गया। पीएम मोदी ने रविवार 1 अक्टूबर को अपने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म X पर एक वीडियो शेयर किया, जिसमें पीएम मोदी फिटनेस ट्रेनर अंकित बैयनपुरिया के साथ झाड़ू लगाते हुए नजर आए।
गांधी जी को महात्मा की उपाधि किसने दी और किसने कहा था राष्ट्रपिता?
गांधी जी को महात्मा की उपाधि देश के कुछ गणमान्य लोगों की ओर से दी गई थी। 1915 में राजवैद्य जीवराम कालिदास ने उन्हें महात्मा कहकर संबोधित किया था। एक मत यह भी है कि स्वामी श्रद्धानन्द ने 1915 में ही उन्हें महात्मा की उपाधि दी थी। कुछ लोग मानते हैं कि गुरु रविंद्रनाथ टैगोर ने बापू को सबसे पहले महात्मा कहा था। वहीं, स्वतंत्रता सेनानी और साबरमती आश्रम में उनके शिष्य रहे सुभाष चंद्र बोस ने बापू को सबसे पहले राष्ट्रपिता कहकर संबोधित किया था। कहा जाता है कि उन्होंने 6 जुलाई 1944 को रंगून रेडियो से बापू को राष्ट्रपिता बुलाते हुए आजाद हिन्द फौज के लिए आशीर्वाद मांगा था।
मां को दिए वचनों ने बचाया
बापू का नाम मोहनदास करमचंद गांधी रखा था। उनका जन्म गुजरात के पोरबंदर में 2 अक्टूबर 1869 को हुआ था। उनके पिता का नाम करमचंद गांधी और माता का पुतलीबाई है। ब्रिटिश शासन के दौरान पोरबंदर काठियावाड़ की एक छोटी सी रियासत थी, जिसके करमचंद गांधी दीवान थे। माता पुतलीबाई एक गृहणी थीं। महात्मा गांधी ने अपनी आत्मकथा में अपनी माता का बार-बार इस रूप में जिक्र किया है कि जब वह देश से बाहर पढ़ने के लिए जा रहे थे तब मां ने उनसे कुछ वचन लिए थे, जैसे कि सदाचार से रहना और शाकाहारी जीवन बिताना आदि। गांधी ने जी ने आत्मकथा में जिक्र किया है कि उनकी मां को दिए वचनों ने गलत संगत या काम में पड़ने से उनकी कई बार रक्षा की।
महात्मा गांधी ने प्रवासी वकील के रूप में दक्षिण अफ्रीका में काफी समय तक अपनी सेवा दी और वहां भारतीय समुदाय के अधिकारों के लिए संघर्ष किया। साल 1915 में वह स्वदेश लौटकर आए थे। वह असहाय और दबे-कुचले लोगों की आवाज बन गए। साल 1921 में उन्होंने कांग्रेस पार्टी की कमान संभाली थी। उन्होंने गरीबी, महिला अधिकारों, आत्मनिर्भरता और छुआछूत जैसे कई सामाजिक मुद्दों पर कार्यक्रम चलाने के अलावा स्वराज के लिए ब्रिटिश हुकूमत के खिलाफ मुहिम चलाई।
बापू के नेतृत्व में चले ये बड़े आंदोलन
बापू ने अंग्रेजी सरकार की ओर से लगाए गए नमक टैक्स के विरोध में 1930 में नमक सत्याग्रह किया और 1942 में अंग्रेजो भारत छोड़ो आंदोलन का नेतृत्व किया। अपने जीवकाल में उन्हें जेल में भी जाना पड़ा। कठिन से कठिन दौर में भी वह सत्य और अहिंसा का पालन करते थे और लोगों से इसका पालन करने के लिए कहते थे। भारत लौटने के बाद वह अपने हाथ से चरखे पर सूत कातने लगे थे और जिससे बना कपड़ा धोती के रूप में शरीर पर धारण करते थे। वह खुद शाकाहारी भोजन करते थे और लोगों को भी इसके लिए प्रेरित करते थे। आत्मशुद्धि के लिए उपवास रखना उनकी जीवनशैली में शामिल था।
1917 में चंपारण में सत्याग्रह
बापू ने अपने जीवन काल में कई बार सत्याग्रह किया। 1917 में उन्होंने चंपारण में सत्याग्रह किया। इसे उनकी पहली बड़ी उपलब्धि के रूप में जाना जाता है। इस आंदोलन में बापू ने नील की खेती करने वाले किसानों के खिलाफ होने वाले अत्याचार के खिलाफ आवाज उठाई थी। 1918 में उन्होंने गुजरात के खेड़ा में किसान सत्याग्रह किया था, जिसे खेड़ा सत्याग्रह के नाम से जाना जाता है। किसानों पर अंग्रेजी शासन की कर वसूली के खिलाफ इसे किया गया था। इसमें सरदार वल्लभ भाई पटेल और अन्य नेता भी शामिल हुए थे। 1919 में अंग्रेज रॉलेट एक्ट लाए थे, जिसमें प्रेस के नियंत्रित करने, नेताओं के गिरफ्तार करने और बगैर वारंट किसी को भी गिरफ्तार करने के प्रावधान थे। इसे काला कानून कहा गया। इस काले कानून का बापू के नेतृत्व में देशभर में विरोध हुआ था।
1920 में असहोय आंदोलन
1920 में गांधी जी और कांग्रेस की अगुवाई में असहयोग आंदोलन चलाया गया। इस आंदोलन के दौरान अंग्रेजों की ओर से दी गई सुविधाओं का इस्तेमाल न करने के लिए देशवासियों को प्रेरित किया गया था। अंग्रजों की ओर से नमक पर टैक्स लगाए जाने का विरोध गांधी जी ने नमक सत्याग्रह करके दिया। 1930 में गांधी जी ने लोगों को साथ लेते हुए अहमदाबाद के साबरमती आश्रम से समुद्रतटीय गांव दांडी तक पदयात्रा की थी, जो 24 दिन तक चली थी। 1933 में बापू ने दलित आंदोलन यानी छुआछूत के विरोध में आंदोलन छेड़ दिया था। 8 अगस्त 1942 को अखिल भारतीय कांग्रेस समिति के मुंबई अधिवेशन से महात्मा गांधी ने भारत छोड़ो आंदोलन शुरू किया था। इसका उद्देश्य भारत से अंग्रेजी हुकूमत को खत्म करना था।
बापू के अनमोल वचन
अपनी गलती को स्वीकारना झाड़ू लगाने के समान है जो धरातल की सतह को चमकदार और साफ कर देती है।
व्यक्ति अपने विचारों से निर्मित एक प्राणी है, जो वह सोचता है वही बन जाता है।स्वयं को जानने का सबसे अच्छा तरीका है खुद को दूसरों की सेवा में डुबो देना। जो भी चाहे अपनी अंतरात्मा की आवाज सुन सकता है, वो सबके भीतर है।
निर्मल अंत:करण को जो प्रतीत हो वहीं सत्य है। ऐसे जिएं कि कल आपका आखिरी दिन है और ऐसे सीखें जैसे आपको हमेशा जीवित रहना है।
धरती पर उपलब्ध प्राकृतिक संसाधन हमारी आवश्यकता पूरी करने के लिए हैं, लालच की पूर्ति के लिए नहीं।
अहिंसा कायरता की आड़ नहीं है, अहिंसा वीर व्यक्तियों का सर्वोच्च गुण है, अहिंसा का रास्ता हिंसा के मार्ग की तुलना में कहीं ज्यादा साहस की अपेक्षा रखता है। क्रूरता का उत्तर क्रूरता से देने का अर्थ अपने नैतिक और बौद्धिक पतन को स्वीकार करना है।
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