CM Mohan Yadav

CM Mohan Yadav: सीएम मोहन यादव की चाय बेचने वाली अनसुनी कहानी

मध्यप्रदेश राजनीति
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CM Mohan Yadav का जन्मदिन आज, पढ़िए उनकी अनसुनी कहानी

CM Mohan Yadav: मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव का आज जन्मदिन हैं। सीएम मोहन यादव (CM Mohan Yadav Birthday) आज अपना 60वां जन्मदिन मना रहे हैं। प्रधानमंत्री मोदी (PM Modi) समेत देशभर में तमाम बड़े नेता उन्हें जन्मदिन की बधाई दी है। मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री मोहन यादव से जुड़ी कई कहानी आपने जरूर सुनी होगी लेकिन आज सीएम मोहन यादव (CM Mohan Yadav) के जन्मदिन पर हम आपको एक ऐसी कहानी बताने जा रहे हैं जो शायद ही आप पहले कभी सुने हों। कहानी शुरू होती है एक क्लास से, जहां मास्टर जी सवाल करते और पहली पंक्ति से एक हर बार हाथ उठता। उसके पास मास्टर जी के हर सवाल का जवाब था, लेकिन उसके एक सवाल का जवाब मास्टर जी के पास कभी नहीं था कि उसके पिता के जीवन में इतना संघर्ष क्यों है। क्या अमीर गरीब की लकीर मिटाई नहीं जा सकती है। ये सवाल एक लड़के के दिमाग में कौंधते। इन सवालों के जवाब तलाशते हुए वे अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद (Akhil Bharatiya Vidyarthi Parishad) के प्रांतीय संगठन महामंत्री शालिगराम के पसंदीदा बने। ये उस बालक की जिंदगी का टर्निंग प्वाइंट था, उस बालक का नाम मोहन यादव (Mohan Yadav) था।
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उस बालक का जिसने पांचवी की छोटी क्लास में उठे हर सवाल को किताबों में भी तलाशा और बाकी रहे दुनिया के मैदान में भी जवाब तलाशे। जब दुनिया के मोर्चे पर उतारा जाए तो तैयारी पूरी हो। अक्सर कहा जाता है कि जब कुछ नहीं कर पा रहे तो राजनीति कर लो। इसी दौर में कोई विज्ञान के साथ कानून की पेचीदगी समझ कर आया। प्रबंधन के पहलुओं को जानने के साथ राजनीति को शास्त्र की तरह आत्मसात करते डॉक्टरेट की उपाधि प्राप्ति की। फिर कदम बढ़ाया.. सिर्फ किताबी तैयारी नहीं।

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छोटी ऐज से ही संघ की शाखाओं में आत्मविश्वास का पाठ, नेतृत्व क्षमता और कठिन परिस्थितियों में सही फैसला लेने का अभ्यास। विद्यार्थी परिषद के साथ राजनीति का ककहरा सीखा। सीएम (CM) पद के लिए डॉ मोहन यादव के नाम का एलान भले अचानक हुआ, लेकिन मोहन यादव इस पद पर किसी हड़बड़ी में नहीं पूरी तैयारी से आए।

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चाचा के साथ चाय भी बेची

उज्जैन (Ujjain) की गलियों में पले बढ़े मोहन का बचपन परेशानी और समस्या के बीच बीता। ईमानदारी का जीवन जीने वाले पिता दिवंगत पूनमचंद यादव मिल में काम करके अपने बच्चों का पालन पोषण कर रहे थे। चाचा की चाय की दुकान थी। जहां स्कूल से आने के बाद मोहन यादव हाथ बटाया करते थे। मोहन यादव ने चाय की दुकान पर काम किया, लेकिन पढ़ाई से किनारा तो उस समय भी नहीं होने दिया। सीएम मोहन यादव की बहन ग्यारसी देवी के मुताबिक मोहन भैय्या मेरा शुरु से ही मेहनती था। खेती बाड़ी में भी जुट जाता था। भैय्या ने पढ़ाई भी उतनी मेहनत से की है और हमेशा अच्छे नबरों से पास होता रहा है।

पार्टी के हर फैसले को किया स्वीकार

राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि मोहन यादव संघ की शाखा से निकले हैं। अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद में काम किए हैं, तो जो संस्कार हैं, उन्होंने उसको गढ़ा है। पार्टी उनके लिए सर्वोपरि है। इसकी मिसाल बड़नगर का वो चुनाव है, जब पहली बार उन्हें टिकट मिला था। तब स्थानीय लोगों ने उन्हें बाहरी कहकर उनका विरोध किया। उन्होंने पार्टी को अपना टिकट वापस लौटा दिया। ये करना इतना आसान नहीं था। उनके स्थान पर शातिलाला धबाई चुनाव ल़ड़े, लेकिन जिस दौर की राजनीति में टिकट नहीं मिलने पर नेता बगावत करने लगते हैं, उस दौर में मोहन यादव ने ना सिर्फ टिकट लौटाया, बल्कि अपनी बारी का पूरे इत्मीनान से इंतजार किया।

पिता ने कहा तू आता है लग जाता है जाम

एक साधारण परिवार से आने वाले मोहन यादव ने खुद ये वाकया सुनाया कि सीएम बनने के बाद जब वे अक्सर उज्जैन के अपने पुश्तैनी घर पर जाते तो, पिता कहते थे तुम आते हो तो हम बंध जाते हैं, घर में जाम लग जाता है। बेटा प्रदेश का सीएम है, इसका कहीं कोई दंभ पिता को नहीं, उन्हें गर्व है, लेकिन अहंकार नहीं है। बेटे के सीएम बन जाने के बाद भी पिता अपने खेत की फसल की कटाई देखने खुद ही जाते। मुख्यमंत्री बेटे को पहले की तरह खर्च भी देते।