CGHS: CGHS द्वारा कहा गया है कि जो मरीज एक बार आयुर्वेद सिद्धा यूनानी प्राकृतिक चिकित्सा, योग से इलाज करा लेगा फिर उसे छह महीने तक इनचिकित्साओं से दुबारा इलाज नहीं मिलेगा। यदि मरीज गंभीर बीमारी जैसे मधुमेह, रक्तचाप और कमर दर्द सहित कई जटिलबीमारियों से ग्रसित है तो वह ऐलोपैथी चिकित्सा से इलाज बार बार करा सकताहै परन्तु प्राकृतिक चिकित्सा, योग एवं आयुर्वेद से केवल 6 माह में एक बार।
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केन्द्र में मोदी सरकार के आने के बाद स्वास्थ्य मंत्रालय में आयुष विभागका गठन किया गया। जिसके अंतर्गत योग और प्राकृतिक चिकित्सा एवं आयुर्वेदसिद्धा यूनानी पद्वति को शामिल किया गया। मोदी सरकार ने इसके व्यापकप्रचार-प्रसार के लिए हजारों करोड़ खर्च भी किये। सरकार के प्रयास सेसार्थक परिणाम यह निकला कि लोगों में आयुष चिकित्सा के प्रति झुकाव बढ़ा। कोविड काल के दौरान लोगों में आयुर्वेद के प्रति रूझानबढ़ा है। लोग एलोपैथी चिकित्सा से हटकर आयुष चिकित्सा पद्वति का विकल्पढूंढने आयुर्वेद पद्धिति में लोग सहज महसूस करने लगे।
मोदी सरकार ने विश्व में आयुर्वेद का डंका बजवाया और आज आम से लेकर खास लोगों केजीवन का हिस्सा बन गया है। आयुष विभाग ने आयुर्वेद सिद्धा यूनानी प्राकृतिक चिकित्सा, योग में शामिलपद्वतियों को कैटैगराइज किया और संबद्ध संस्थानों को रियायतें देनी शुरू करदी। जिसका लाभ मरीजों को भी मिलने लगा। केन्द्र सरकार का सीजीएचएस विभाग देश के कई आयुष चिकित्सा संस्थानों कोपैनलबद्ध किया। पिछले आठ सालों में देशभर में लाखों मरीजों ने इसका फायदा उठाया है। अब CGHS के आयुष विभाग के अफसर आयुर्वेद को आगे नहीं बढाना चाहते। लेकिन, हाल ही में सीजीएचएस के आयुष विभाग एक गाइडलाइन जारी की गई जो आयुषचिकित्सा के मरीजों के हित में नहीं है। जिसके बाद मरीजों में रोष है।
CGHS के आयुष विभाग गाइडलाइन के अनुसार सीजीएचएस लाभार्थी चाहे वो 70 साल के ही क्यों ना हो बिना सरकारी आयुर्वेद डाक्टर के रेफेर के अपना ईलाज करने के लिए किसी भी आयुर्वेद के अस्पताल में नहीं जा सकते| जबकि अंग्रेजी अस्पताल में जाने के लिए 70 साल से बड़े व्यक्तियों को कोई रेफेरल नहीं चाहिये होता परन्तु आयुर्वेद का इलाज करने के लिए आयुर्वेद के डाक्टर का रेफेरल जरुरी है| जिसके लिए सीजीएचएस लाभार्थी – CGHS केंद्र के धक्के खाता रहता है| कई बार तो वहां बैठे आयुर्वेद के डॉक्टर पैसे भी मांगते हैं| अभी इसी रेफेर पद्धिति के चक्कर में कुछ डॉक्टर भ्रष्टाचार करते हुए पकडे गए हैं| एक तरफ तो हमारे यशवी प्रधानमंत्री जी इंस्पेक्टर राज ख़तम करने में लगे हैं दूसरी तरफ CGHS के अधिकारी अपने निजी फायदे के लिए जबरदस्ती रेफेर सिस्टम को लाये जा रहे है।
एक तरफ तो अंगेजी ईलाज से 70 गुना सस्ते आयुर्वेद के इजाज को तरफ बड़ी अच्छे तरह से लोग आकर्षित होने शुरू हो गए हैं और आजकल शुद्धि हॉस्पिटल, दलको, जीवा आयुर्वेद, तुलसी हॉस्पिटल, कैलाश आयुर्वेद संस्थान जैसे संस्थानों ने CGHS के साथ जुड़ कर आयुर्वेद में एक नई जान डाल दी है, हजारों लोग अपना ईलाज आयुर्वेद से करना चाहते है परन्तु CGHS का आयुष विभाग आपने निजी फायेदे के लिए आयुर्वेद को ख़तम करने में लगा है। एक तरफ तो CGHS के समय पर आयुर्वेदिक दवाई नहीं मिलती और यदि CGHS के साथ जुड़े उपरोक्त संस्थान अपनी दवाइयां मरीजों को देते है तो भी CGHS के अफसर उसमे नए नए आदेश देकर रोक लगते रहते है| किसी भी अंग्रेजी अस्पताल के लिए इतनी रोक टोक नहीं है परन्तु आयुर्वेदिक संस्थानों को ही CGHS के अफसर परेशान कर रहे है।
एक और विचित्र प्रकार की रूकावट cghs के अफसर पैदा कर रहे है। यदि मरीज गंभीर बीमारी जैसे मधुमेह, रक्तचाप और कमर दर्द सहित कई जटिलबीमारियों से ग्रसित है तो वह ऐलोपैथी चिकित्सा से इलाज बार बार करा सकता है परन्तु आयुर्वेद से केवल 6 माह में एकबार। CGHS द्वारा यह भी कहा गया है कि जो मरीज एक बार आयुर्वेद से इलाज करा लेगा फिर उसे छह महीने तक आयुर्वेद से इलाज नहीं मिलेगा। CGHS द्वारा ये भी कहा जा रहा है कि आयुष चिकित्सा के अंतर्गत एक दिन में एक मरीज दो से ज्यादा चिकित्सा लाभ नहीं ले सकते। ये भी CGHS का आयुष विभाग बताएगा न कि जो आयुष डाक्टर जी मरीज कि चिकित्सा कर रहा है। जैसे आयुर्वेद में मरीज एक दिन में केवल 2 ट्रीटमेंट ही ले सकता है। आयुर्वेद में केवल स्नेहन या कोई और एक इलाज।
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Allopathy चिकित्सा के लिए ऐसी कोई बाध्यता नहीं है। जबकि इंग्लिश दवाईयाजिन्दगी भर रोजाना लाइन के लिए दबाव डाला जाता है| क्या अलोपथी डाक्टर को कहा जा सकता है की आप 3 दवाई से ज्यादा नहीं लिख सकते, चाहे मरीज को कोई भीबीमारी हो। कई सवाल यही पर खड़ा होते हैं कि क्या सीजीएचएस आयुर्वेद के मरीजों को इन चिकित्साओं से हटा कर ऐलोपैथी चिकित्सा केपास भेजने को आतुर है? एक तरफ मोदी सरकार आयुष के प्रचार-प्रसार के लिए हजारों करोड़ खर्चकर चुकी है। वहीं दूसरी तरफ संबंध चिकित्सा संस्थानांे और मरीजों पर नये नियम थोपे गये हैंं। जिससे आने वाले समय में मरीजों को कई असुविधाओं कासामना करना पड़ सकता है। या यूं कहें कि इलाज नहीं मिल पाने के कारण उनकायोग और आयुष के प्रति मोहभंग हो सकता है और वह पुनःमजबूरीवश एलोपैथी चिकित्सा के प्रति रूख कर सकते हैं।
स्पष्ट तौर पर कहें तो मोदी सरकार के सपनो को पलीता स्वास्थ्य मंत्रालय के CGHS में बैठे कुछ लोग ही लगा रहे है। आज स्वास्थ्य मंत्रालय के CGHS मेंबैठे कुछ लोग ही आयुर्वेद के प्रसार मेंनये-नये अंकुश लगा रहा है। पिछले आठ सालों में जिसके उत्थान को केन्द्रसरकार ने कोई कसर ना छोड़ी हो, आज CGHS के विभागीय फैसलों की वजह सरकार की नीतियां पर सवाल खड़े हो रहे हैं। आखिर अंदरखाते में क्या चल रहा है? बहरहाल, अगर विभागीय स्तर पर यह खेल चल रहा है तो केन्द्रीय स्वास्थ्यमंत्री जी एवं केन्द्रीय आयुष मंत्री जी को इसपर त्वरित एक्शन लेना चाहिए। ताकि डैमेज कोकंट्रोल किया जा सके। क्योंकि अगर ऐसा कुछ भी होता है तो यह विभाग कीबदनामी नहीं है, मंत्रलाय की बदनामी नहीं है। यह सीधे-सीधे मोदी सरकार कीनीतियों की असफलता मानी जायेगी। क्योंकि आयुर्वेद को जन-जन तक पहुचाना मोदी सरकार के महत्वपूर्ण एजेंडे में शामिल है।

