भगवान राम ( God Ram) को जब रावण ( Ravan) से विजय प्राप्त करने के लिए लंका ( Lanka) जाना था। तब नल नील ने पानी में तैर के जाने के लिए पत्थरों से समुद्र पर पुल बनाया था। इस पुल को लेकर के कहा जाता है कि ये काफी पहले ही डूब चुका है। इस बारे में शायद आपने भी सोचा होगा की हमेशा तैरने वाला वाला रामसेतु ( Ramsetu) पानी में कैसे डूब गया?
वाल्मीकि रामायण ये कहती है कि जब भगवान राम ने मां सीता को रावण के चंगुल से आजाद करने के लिए लंका पर चढ़ाई की थी, तो उन्होंने नल और नील से एक सेतु अपने साथियों के साथ तैयार करवाया था। इस सेतु को पानी में तैरने वाले पत्थरों के द्वारा बनवाया गया था। इन पत्थरों को कहीं और से लेकर के आया गया था। बहुत सारे विशेषज्ञ ये मानते हैं कि इस सेतु में ज्वालामुखी के “प्यूमाइस स्टोन ” का यूज किया गया था। क्योंकि ये पत्थर पानी में नहीं डूबते हैं। लेकिन सवाल फिर ये उठता है कि फिर कैसे रामसेतु पानी में डूब गया।
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अमेरिका के अंतरिक्ष एजेंसी नासा ने 1993 में धनुषकोडी और श्रीलंका के उत्तर पश्चिम के बीच समुद्र में 48 किलोमीटर चौड़ी पट्टी के रूप में उभरे एक भू भाग की उपग्रह से खींची गई फोटो को भी जारी किया। रामसेतु की तस्वीर नासा ने 14 दिसंबर 1966 को जेमीनी – 11 से लिया।
जेमीनी – 11 से फोटोज लेने के तकरीबन 20- 22 साल बाद आईएसएस 1 ए ने तमिलनाडु तट पर रामेश्वरम और जाफना द्वीप के बीच समुद्र के अंदर भूमि भाग का पता लगाकर तस्वीरें ली। भारत और श्री लंका के बीच 50 किलोमीटर लंबी एक रेखा चट्टानों से बनी है।
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वहीं, धार्मिक कारणों के अनुसार मानें तो विभीषण ने खुद इस पुल को तोड़ने के लिए प्रभु श्री राम से अनुरोध किया था। विभीषण ने श्री राम जी से आग्रह किया कि भारत के वीर राजा सदैव श्रीलंका पर हमला करने के लिए रामसेतु का इस्तेमाल करेंगे। इसलिए उन्होंने भगवान राम से सेतु को तोड़ देने का अनुरोध किया।
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रावण के मरने के बाद विभीषण को राजा बना दिया गया था। विभीषण के अनुरोध को मानते हुए श्री राम ने एक तीर चलाया। आज भी अगर कोई इस पुल पर खड़ा होता है तो उसे कमर तक पानी मिलता है। हालांकि, वाल्मीकि रामायण में इसका कहीं जिक्र नहीं मिलता है।