सूर्यांश सिंह, ख़बरीमीडिया
Delhi Job News: राजधानी दिल्ली में जजों समेत कई पदों पर वेकेंसी (Vacancy) आने की सम्भावना है। जहां दिल्ली में पारिवारिक विवादों की बढ़ती संख्या और पहले से लंबित ऐसे मुकदमों (Lawsuits) के बढ़ते बोझ को कम करने के लिए अब फैमिली कोर्ट (Family Court) की संख्या बढ़ने वाली है। दिल्ली के उपराज्यपाल वी के सक्सेना (VK Saxena) ने राजधानी में दस और पारिवारिक न्यायालयों की स्थापना (Establishment) की मंजूरी दे दी है। शहर में अब ऐसी पारिवारिक अदालतों की संख्या बढ़कर 31 हो गई है।
ख़बरीमीडिया के Whatsapp ग्रुप को फौलो करने के लिए tau.id/2iy6f लिंक पर क्लिक करें
ये भी पढ़ेः गरीब मरीज़ों को दिल्ली AIIMS का बड़ा तोहफ़ा..पढ़िए ख़बर
ये भी पढ़ेः मेरठ, गाज़ियाबाद, दिल्ली में गंगाजल को लेकर बड़ी ख़बर
10 नए न्यायाधीशों समेत 71 अन्य पद भरे जाएंगे
पारिवारिक अदालतें (Family Courts) बढ़ाने के लिए अक्टूबर 2019 में पहली बार प्रस्ताव किया था। जहां 4 साल बाद दिल्ली को आखिरकार एक दशक से अधिक समय से लंबित मामलों (Pending Cases) पर निर्णय लेने में मदद करने के लिए 10 और पारिवारिक न्यायालय मिल गए हैं। एलजी की इस घोषणा से इन अदालतों के लिए 10 नए न्यायाधीशों समेत 71 अन्य पद भरे जाएंगे। इन पदों में रीडर, स्टेनो / सीनियर पीए, स्टेनो/पीए, अहलमद/जेए, सहायक अहलमद, नायब नाजिर, अर्दली और स्टाफ कार ड्राइवर शामिल हैं।
करीब 46 हजार पारिवारिक मामले लंबित
मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक पारिवारिक विवादों (Family Disputes) के पांच से दस सालो से अधिक समय से लंबित मामलों को देखा गया है। और दस पारिवारिक न्यायालयों के निर्माण के लिए 2019 में पूर्ण न्यायालय की सिफारिश बाद यह मंजूरी मिली है। दिल्ली में पारिवारिक न्यायालयों में करीब 46 हजार मामले लंबित हैं। सबसे कम 1321 मामले प्रधान न्यायाधीश और पारिवारिक न्यायालय साकेत के पास लंबित हैं। सबसे अधिक 3654 मामले पारिवारिक न्यायालय रोहिणी में लंबित हैं।
फैमिली कोर्ट कई तरह के मामले को नियंत्रित करेगा
आपको बता दें कि द्वारका में स्थित पारिवारिक न्यायालय मुख्यालय (Family Court Headquarters) ने बताया कि रोजाना औसतन 150 से 200 मामले पारिवारिक न्यायालयों में दाखिल होते हैं। इन न्यायालयों में लगभग 80 प्रतिशत कर्मचारी अन्य विभागों से काम कर रहे हैं। पारिवारिक न्यायालय घरेलू हिंसा, तलाक, बच्चों और परिवारों से जुड़े मामले सुनता है। इनके बच्चों की कस्टडी घरेलू हिंसा व सुरक्षा के आदेश, पालक देखभाल अनुमोदन और समीक्षा, संरक्षकता, बाल अपराध, पितृत्व, पर्यवेक्षण की आवश्यकता वाले व्यक्ति और बच्चे या जीवनसाथी के सहयोग आदि से संबंधित विवाद पर सुनवाई और कार्रवाई करता है। जबकि चाइल्ड सपोर्ट और कस्टडी जैसे संबंधित मामलों को फैमिली कोर्ट द्वारा नियंत्रित किया जा सकता है। तलाक के मामलों की सुनवाई केवल सुप्रीम कोर्ट में ही होती है।