बड़वा गांव के स्वयं सहायता समूह को डिजीटल प्लेटफार्म से मिला ऑनलाइन ग्राहकों का बड़ा मंच
प्रदेश सरकार की पॉलिसी से स्वयं सहायता समूहों को मिली नई राह, मेले भी मददगार
Delhi News: परंपरागत व्यवसाय पर चलने वाले हाथ डिजिटल प्लेटफार्म को छू ले तो सफलता की चाबी हाथ जरूर लगेगी। छह पीढ़ी से चल रहे जूती बनाने के व्यवसाय में अब युवा ने डिजीटल प्लेटफार्म से जूती के आकर्षक डिजाईन बनाने से लेकर ऑनलाइन बिक्री का प्लेटफार्म भी तैयार कर लिया। भिवानी जिले के बड़वा गांव के निवासी ललित स्वयं सहायता समूह की जूती को विदेशों में भी ग्राहक मिल गए है। जहां से प्रतिमाह लगभग दो लाख रूपये के आर्डर आ रहे है।
ये भी पढ़ेः IITF 2024: राजस्थान मंडप में राजस्थानी मसालों और व्यंजनों के काउंटरों पर उमड़ी भीड़
नई दिल्ली के प्रगति मैदान में 14 से 27 नवंबर तक चल रहे भारतीय अंतर्राष्ट्रीय व्यापार मेले के हरियाणा पवेलियन में एकता हैंडीक्राफ्ट के नाम से लग रही स्टॉल भिवानी जिले के बड़वा गांव के निवासी ललित की है जो परंपरागत व्यवसाय को मार्डन रूप देने की कहानी को बयां कर रही है। हालांकि इस परिवार को बड़ी पहचान अंतर्राष्ट्रीय व्यापार मेले व सूरजकुण्ड मेले से मिली है। लेकिन अब परिवार के युवा ललित ने व्यवसाय को डिजीटल प्लेटफार्म से जोड़कर इसमें नई जान फूंक दी है।
छ: पीढ़ी चला आ रहा व्यवसाय अब कंप्यूटर से बनाते है डिजाईन
ललित ने बताया कि उसके पूर्वजों का खानीदानी पेशा जूती बनाने का रहा है। दादा भानाराम निर्वाण, पिता सत्यनारायण के साथ उन्होंने भी जूती बनाने का काम सीख लिया। पहले तो परिवार के साथ ही चमड़े से जूती बनाते रहे, लेकिन उसने स्नातक करने के बाद कम्प्यूटर से जूतियों का डिजाईन बनाना सीखा जो उनके व्यवसाय को नया लुक दे गया। अब वे ज्यादातर डिजाईन कम्प्यूटर से तैयार करते है और उन्हें देखकर जूती बनाते है।
सिंगापुर, दुबई और श्रीलंका से आते आर्डर
ललित ने बताया कि कुछ समय वे राज्य सरकार की स्कीम स्वयं सहायता समूह से जुड़े और फिर व्यवसाय को बढ़ाना शुरू किया। कम्प्यूटर की जानकारी होने के कारण उन्होंने डिजीटल प्लेटफार्म पर भी जूतियों के डिजाईन डालकर अपना प्रचार शुरू किया। अब कई देशों में उनकी जूत्तियां पहुंच रही है। श्रीलंका, दुबई और सिंगापुर से तो जूती के हॉलसेल विक्रेताओं के यहां से हर माह आर्डर आ रहे है। इसके अलावा कई देशों से ऑनलाईन आर्डर भी प्राप्त हो रहे है, जहां वे 15 दिन में जूतियां उन्हें उपलब्ध करवा देते है।
चमड़े की जूतियों की अधिक मांग
उन्होंने बताया कि मार्केट में चमड़े की जूती की मांग अधिक है, जिनमें नोकदार और जरी वाली जूतियों को अधिक पसंद किया जा रहा है। अंतरराष्ट्रीय व्यापार मेले व अन्य मामलों में भी इन्हीं जूतियों की फरमाइश अधिक रहती है।
बैग, पर्स और लेदर ज्वैलरी से भी जुड़ा समूह
ललित ने बताया कि उनका स्वयं सहायता समूह अब जूती के व्यवसाय के साथ ही चमड़े के बैग, पर्स बनाने में भी लगा हुआ है। ऑनलाइन में उनके डिजाइन को पसंद किया जा रहा है। इसके अलावा लेदर ज्वेलरी बनाने का काम भी शुरू किया गया है। लेकिन यह काम अभी आरंभिक स्तर पर है।
ये भी पढ़ेः CCCC 12.0: बीसीएम आर्य स्कूल के भार्गव और अनहद बने चैंपियन
यहां यह भी बतां दे कि हरियाणा पवेलियन में एक बड़ी स्टॉल डॉ0 भीमराव अम्बेडर स्वयं सहायता समूह की है, जहां पंजाबी जूती आकर्षण का केन्द्र है, यहां अलग-अलग डिजाईन की जूतियां बिक्री के लिए रखी गई है। पलवल के मंदौरी निवासी बिजेन्द्र सिंह की स्टॉल भी लेदर आईटमस पर है, उनके यहां बेल्ट, जैकेटस को पंसद किया जा रहा है। फरीदाबाद की गरिमा भी स्वयं सहायता समूह की स्टॉल भी अच्छे उत्पादों की वजह से ग्राहकों को खींच रही है। करनाल घरौंडा के गांव ऐरानपुरा निवासी नाथीराम पर बास्केट, बैग, कारपेट, दरी और मैट खूब पंसद किये जा रहे है।