वरिष्ठ पत्रकार देवांशु झा के साथ कीजिए ‘भारत दर्शन’

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सुनिए मध्यप्रदेश के ओरछा के प्रसिद्ध चतुर्भुज मंदिर की कहानी, देवांशु झा की जुबानी

मंदिर दर्शन से पहले यात्रा वृतांत की कहानी, संक्षेप मेंबाकी नीचे दिए गए लिंक में ओरछा की पूरी डिटेल

अभी अभी मथुरा शहर छूटा है। ट्रेन कुछ देर से चल रही। मैं आठ बजे के बदले नौ बजे अपने ठिकाने पर पहुंचूंगा। इस विलम्ब से किसी को कोई दुख नहीं होने वाला। न वहां कोई मेरी प्रतीक्षा करने वाला है। न यहां कोई साथी, हमसफ़र है। मैं रेल में हूं। स्थिर हूं। शांत नहीं। रेल से उतरने के बाद भी मेरी स्थिति अपरिवर्तित रहेगी। अभी मेरे सामने एक साधारण सा भला मनुष्य बैठा है। वह अत्यंत लज्जाशील और संकोची है। बर्थ के नीचे खाली जगहों में सामान रखते हुए भी सामने वाले से पूछता है। उससे मैंने थोड़ी बातचीत की। परन्तु उसे बहुत रुचि नहीं है। फोन में कुछ देख रहा।

मैंने कुछ दिनों पहले स्वप्न देखा था-मैं भारत घूमना चाहता हूं। मेरे उस स्वप्न को ईश्वर ने भी देखा। वह हंसा। उसने चुपके से कहा-तथास्तु! मैं अपने पास के भारत को देखने निकल पड़ा हूं। परन्तु, मैं इस तरह से भारत दर्शन का अभिलाषी नहीं था। ईश्वर ने मुझे उतना ही दिया, जितने का मैं अधिकारी था। उसने मुझे देते हुए कहा-यह ले अपना अभीष्ट! तुझे यही मिलेगा! मैं इसकी व्यथा कथा नहीं लिख सकता।मैं यही अनुभव करता आया हूं कि इस जीवन के गतकर्मों का लेखा जीते जी ही हो जाता है। मैंने जानबूझ कर किसी को कष्ट नहीं दिया। या, फिर मेरी समझ ही इतनी आत्मकेंद्रित थी कि मेरे द्वारा दिए जा रहे कष्टों की अनुभूति मुझे नहीं थी। मैंने सुधार करना भी चाहा। सुधारा भी। लेकिन विद्रोह और अपमान की ज्वालाएं इतनी भीषण थीं कि हर बार मेरा धैर्य ध्वस्त होता रहा। एक चक्रव्यूह में मैं घिरा रहा।

आज जब घर से विदा हो रहा था तब उसने मुझसे कहा था कि भूल जाओ, वह सब, जिसके घेरे में तुम घुल रहे। तुम जिस कार्य के लिए जा रहे, उसे अच्छी तरह पूर्ण करना। मैंने व्यर्थ ही हामी भरी। मैं ठहरा कुत्ते की दुम। सीधा होना मुझे नहीं आया। मेरा व्यग्र व्याकुल मन कहां शान्त होने वाला है। उसे तो बस काष्ठाग्नि ही शान्त कर सकती है। उस अगन में अभी समय शेष है। तब तक इस जीवन का फेरा है। इसकी अप्रत्याशित चालें हैं। मैं ऊंट की तरह सीधे कोण में चलता हूं। अपने आसपास के अदृश्य अश्वों को नहीं जानता। वे अपनी तिकड़मी ढाई घर वाली चाल से मुझे पटक देते हैं।मैं हर जगह पछाड़ दिया जाता हूं। मुझसे कुछ नहीं सधता। सभी मुझे कुछ दिनों के बाद, बिना कुछ कहे कहते हैं- आप वांछित नहीं हैं। मेरे एकाकीपन का साम्राज्य अभेद्य, अखंड, अतिविस्तृत होता जा रहा।

वरिष्ठ पत्रकार देवांशु झा के फेसबुक वॉल से साभार

आजतक, न्यूज 24 समेत कई बड़े चैनलों में अहम पद पर रह चुके वरिष्ठ पत्रकार देवांशु झा अपनी दमदार लेखनी के लिए जाने जाते हैं। इन दिनों देवांशु झा अपने यूट्यूब चैनल के जरिए लोगों को घर बैठे भारत दर्शन करवा रहे हैं। इस कड़ी में सबसे पहले आज मध्यप्रदेश के विश्व प्रसिद्ध ओरछा मंदिर की कहानी

नीचे दिए गए लिंक में ओरझा की पूरी कहानी जानिए….

READ: Devanshu jha, Senior Journalist, Bharat darshan, khabrimedia,

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