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ग्राहकों का Bank पर भरोसा..लेकिन भरोसे पर क्यों खरे नहीं उतर पा रहे बैंक!

एक मुलाकात एजुकेशन दिल्ली NCR
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Bank: गरीब हो अमीर..पैसा कम हो या ज्यादा..आज भारत के उन सभी लोगों के पास बैंक अकाउंट(Bank Account) है जो इसके हकदार हैं। बैंक में पैसा मतलब..पैसा सुरक्षित। बैंक पर तो लोगों का भरोसा है लेकिन कई बार ऐसा होता है जब बैंक, अपने ग्राहकों के भरोसे पर खरा नहीं उतर पाते।

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सीधे-साधे ग्राहक जहाँ यह सोचकर बेफिक्र रहते हैं कि बैंकों में जमा उनकी पूंजी सबसे ज्यादा सुरक्षित है, वहीं बैंक अपने बने-बनाए नियमों के साथ आपकी जमापूंजी में कई बार सेंध मारने से भी परहेज नहीं करते। अब इस परिरिभूति को जब आप जानने-समझने की कोशिश करते हैं तो बैंको का एक सीधा सा जवाब होता है RBI की गाइडलाइन यही है, हम कुछ नहीं कर सकते। ग्राहक हमेशा यही चाहता है कि बैंक के साथ उनका लेन देन साफ-सुथरा हो। लेकिन ऐसा कई बार होता है जब बैंक अपने ग्राहकों को सटीक और जरूरी सूचना प्रदान नहीं करते हैं, जिसका खामियाजा ग्राहक को परेशान होकर भुगतना होता है।

क्यों कि ग्राहक अपनी मेहनत की कमाई इकट्ठा करके बैंकों में जमा करता है। इसमें वो लोग भी शामिल होते हैं जो छोटे-मोटे रोजगार से जुड़े होते हैं। कोई मजदूरी करता है तो किसी छोटे से संस्थान में छोटी इनख्वाह पर काम करता है। रोजी-रोटी के चक्कर में बड़ी मुश्किल से ऐसे लोग 100-200-500 रुपए बचा पाते हैं। और बचत के उन रुपयों को बैंक में जमा करवाते हैं। ऐसे लोगों की जरुरतें थोड़ी होती है। लेकिन जब इन्हें पैसों की जरुरत होती है तो वो बैंक जाकर अपने पैसे निकाल लेते हैं।

कई बार इनके अकाउंट में बैंक की तयशुदा रकम(खाते में मिनिमम बैलेंस) से कम जमा दिखता है, जिस पर बैंक फौरन पेनाल्टी लगा देते हैं। ग्राहक को जब पता चलता है कि उसके पैसे उड़ गए तो वो हैरान हो जाता है। बैंक में जाकर पूछता है, और बैंक, गाइडलाइन का हवाला देकर अपना पल्ला झाड़ लेते हैं।

ऐसे ही और दूसरे मामलों में बैंक की पेचीदगी सामने आती है। मसलन जब आप बैंक से लोन लेने जाते हैं तो अपने दर्जनों पन्नों के कागजात को दिखाकर आपसे जरूरी हस्ताक्षर फौरन करवा लिए जाते हैं। ऐसे लोगों को ना तो गाइडलाइंस की समझ होती है और ना ही उसे पढ़ने का वक्त। लेकिन जब ग्राहक शिकायत लेकर बैंक के पास पहुंचता है तो बैंक आपके सामने आपके हस्ताक्षर किए हुए सारे पेपर रख देता है। बड़ी मासूमियत के साथ कहा जाता है, आपने ही तो दस्तखत किए थे।  और आपकों बता भी देंगे, इस कागज को जरा पीछे पलटकर साफ देखिए..साफ लिखा है नियम और शर्ते लागू” ..तब आपको उस वक्त महसूस होता है कि आपने कब और कैसे इतनी बड़ी गलती कर दी।  

ऐसा कई बार होता है जब ग्राहक बैंक में अकाउंट खुलवाने जाते हैं। बैंक फॉर्म में नॉमिनी का भी ऑप्शन होता है। अगर आपने गलती से वहां नॉमिनी का नाम नहीं भरा तो आगे चलकर आपको या आपके परिजनों को मुश्किलों का सामना करना पड़ सकता है, लेकिन बैंक ये अति महत्वपूर्ण जानकारी आपको कई बार नहीं देते हैं।

वैसे बातें तो बहुत सारी है, लेकिन फिलहाल वस इसपर ही ध्यान दिलाना चाहता है बैंकों के सभी एक्सपर्ट, बेशक- तकनीक के जरिए आप अपनी जिम्मेदारी निभा दे रहे हों- लेकिन देश का एक वर्ग जो यहाँ की मिट्टी से. कुछ पूंजी इकट्ठा करके, आपके बैंकों में पैसा रखकर कम-से-कम ऐसे सपनों को संजोता है। और आपसे पारदर्शिता की उम्मीद करता है। इनके साथ सहयोग होना चाहिए, जरुरत पड़ने में नियमों में हल्का बदलाव और एक सरल प्रक्रिया। संविधान में बैंकिंग प्रणाली को सरल-सुगम बनाने के लिए कोई बेहतर सुझाव।

एक आम आदमी के नजरिए से हालात और परिस्थिति का मूल्यांकन भी होना आवश्यक है। ताकि इनके चेहरों की मुस्कुराहट बरकरार रखें यह सोचने और इस पर एक राय बनाने की जरूरत है—!!

((लेखक सुमित कुमार, वरिष्ठ पत्रकार होने के साथ फिल्म राइटर्स एसोसिएशन मुंबई से जुड़े हैं। फिल्मों के साथ-साथ अलग-अलग मुद्दों पर अपनी राय रखते हैं))