Arunima Sinha Biography in Hindi || अरुणिमा सिन्हा की जीवनी

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Arunima Sinha: आप कभी न कभी अरुणिमा सिन्हा (Arunima Sinha) का नाम सुना होगा, लेकिन शायद ही आप इनके बारे में विस्तार से जानते होंगे, अरुणिमा सिन्हा का नाम इतिहास में स्वर्णिम अक्षरों में लिखा गया है। वह एक ऐसी शख्सियत हैं, जिनकी हिम्मत और जज्बे के आगे माउंट एवरेस्ट (Mount Everest) की कठोर चोटी भी झुक गई। भारत की पहली दिव्यांग पर्वतारोही के रूप में उन्होंने विपरीत परिस्थितियों को चुनौती देकर न केवल अपना सपना पूरा किया, बल्कि लाखों लोगों को प्रेरणा का संबल भी दिया। आइए, आज के इस लेख में हम उनके जीवन के प्रमुख पड़ावों को तस्वीरों के साथ देखें और उन्हीं के शब्दों में उनकी कहानी सुनें। आइए जानते हैं Arunima Sinha Biography in Hindi में ….

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जुनून के पंखों पर उड़ान भरने वाली बचपन की जिंदगी

अरुणिमा का जन्म 1989 में उत्तर प्रदेश (Uttar Pradesh) में हुआ था। वह बचपन से ही एक खुशमिजाज और सक्रिय लड़की थीं। खेलों में उनकी विशेष रुचि थी। वो वॉलीबॉल की बेहतरीन खिलाड़ी थीं और राष्ट्रीय स्तर पर खेल चुकी थीं।

जिंदगी का एक ट्विस्ट और अकल्पनीय हादसा

2011 में अरुणिमा (Arunima Sinha) की जिंदगी ने एक अचानक और दर्दनाक मोड़ लिया। लखनऊ से दिल्ली पद्मावती एक्सप्रेस से जा रही ट्रेन में कुछ गुंडों ने उन्हें चलती ट्रेन से धक्का दे दिया। इस हादसे में उनका एक पैर घुटने के नीचे कट गया। एक हादसा जिसने उन्हें अंधकार की गहरी खाई में धकेल दिया। इस हादसे के परिणामस्वरूप उनका एक पैर काट दिया गया, लेकिन उनका जूनून और हौसला कभी नहीं हारा। उन्होंने अपने जीवन को पुनर्निर्माण करने का निर्णय लिया और पर्वतारोहण की दुनिया में कदम रखने का सपना देखा।

हौसला न टूटा, सपना बना रहा जिंदा

हालांकि, अरुणिमा (Arunima) की आत्मा में एक अदम्य जज्बा था। इस भयानक हादसे ने उन्हें तोड़ नहीं सका, बल्कि उनके हौसलों को और मजबूत कर दिया। उन्होंने अपने लिए एक नया लक्ष्य तय किया – दुनिया की सबसे ऊंची चोटी, माउंट एवरेस्ट पर विजय पाना।

हादसे के बाद दिल्ली AIMS में करीब 4 महीने तक रहने के बाद वह ठीक हुईं। उनके एक पैर के रूप में कत्रिम पैर लगाया गया जबकि दूसरे में राड लगी थी। दिल्ली AIMS से छुट्टी मिलने के बाद उन्हें दिल्ली के एक संगठन ने कत्रिम पैर दिए। अस्पताल से निकलके के बाद वह सबसे पहले जमशेदपुर गई और वहाँ जाकर बछेंद्री पाल से मिली।

बछेंद्री पाल ने अरुणिमा (Arunima) से जब मिली तो वह उनसे कहीं कि “अरुणिमा तूने इस हालत में यह सपना देखा तेरा सपना तो सच होगा ही अब तो दुनिया को दिखाने के लिए ही तुझे चढ़ना है बाकी तू जीत पहले ही गई है”। बछेंद्री पाल ने अरूणिमा के सपने को पूरा करने में खूब मदद की और उन्हें अपना शिष्य बनाया। अरुणिमा ने पूरा मन लगाकर मेहनत की और अपने सपने को पूरा करने की प्रक्रिया शुरू कर दी।

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पहाड़ों की कठिन प्रशिक्षण का सफर

अपने सपने को पूरा करने के लिए अरुणिमा (Arunima Sinha) ने नेहरू इंस्टीट्यूट ऑफ माउंटेनियरिंग में दाखिला लिया। उनके कृत्रिम पैर के साथ पहाड़ों पर चढ़ना किसी भी सामान्य इंसान के लिए कल्पना से परे था। कठिन प्रशिक्षण के दौरान खून, पसीने और आंसू बहाए, लेकिन उन्होंने हार नहीं मानी। 2013 में, सिन्हा ने माउंट एवरेस्ट को चढ़ने का निर्णय लिया और इस कठिन यात्रा में उन्होंने अपनी उदारता, साहस, और आत्मविश्वास का परिचय दिया।

अरुणिमा के दल में 6 लोग शामिल थे। कुछ दूरी तक अरुणिमा सबसे आगे रही लेकिन जैसी ही ग्रीन और ब्लू बर्फ के पास पहुंची वैसे वैसे उनका आर्टिफिशियल पैर फिसलने लगा। इस हालत में आगे बढ़ना और भी मुश्किल था। तब शेरपा ने उनसे कहा कि आपसे नहीं होगा जबरदस्ती न करिए। लेकिन अरुणिमा सिन्हा हार नहीं मानी। उनके पैर रखते ही पैर मुड़ जाता था। उनका पैर बार बार फिसल जा रहा था। बाद में वह बर्फ के टुकड़े हटाती और उस जगह में आर्टिफिशियल पैर रखकर आगे बढ़ती।

ऐसा ही करते वह धीरे धीरे कैंप 3 तक पहुँच गईं। कैंप 3 के ऊपर साउथ कोल सबमिट की बारी थी जहाँ अच्छे-अच्छे पर्वतारोही का पसीना छूट जाता है। अरुणिमा सिन्हा आगे बढ़ने के लिए रात के समय को चुनी क्योंकि रात को मौसम ठोड़ा शांत रहता है। वह जिस रोप में थी उसी रोप में एक बांग्लादेशी अधमरी हालत में दर्द से चिल्ला रहा था। उसकी चीख सुनकर और वातावरण को देखकर वह डरने लगी थी। उन सब के रोंगटे खड़े हो जा रहे थे।

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उस समय वह 10 से 15 मिनट तक अपनी जगह पर ही स्थिर रही और फिर उन लाशों को लांग कर आगे बढ़ना शुरु कर दी। कुछ दूरी जाने पर शेरपा ने उन्हें बताया कि उनका ऑक्सीजन भी समाप्त हो रहा है तो उन्हें वहीं से वापस चले आना चाहिए। लेकिन इसके बाद भी अरुणिमा सिन्हा ने वापस लौटने का फैसला नहीं किया। उन्होंने अपना हौसला बनाए रखा और आगे बढ़ती रहीं। अंततः अरुणिमा सिन्हा ने अपने बुलंद होसलो से चढ़ाई पूर्ण की। उन्होंने 52 दिनों में माउंट एवरेस्ट पर अपनी जीत का तिरंगा लहराया और 21 मई 2013 को अरुणिमा सिन्हा माउंट एवरेस्ट (Mount Everest) पर तिरंगा फहराने वाली विश्व की प्रथम विकलांग महिला पर्वतारोही बनी।

विजय का शिखर छूने का ऐतिहासिक पल

अरुणिमा सिन्हा (Arunima Sinha) ने दुनिया की सबसे ऊंची चोटी माउंट एवरेस्ट (Mount Everest) पर सफलतापूर्वक चढ़ाई कर ली। वो दुनिया की पहली दिव्यांग महिला थीं जिन्होंने यह उपलब्धि हासिल की। इस जीत ने ना केवल भारत, बल्कि पूरी दुनिया को झकझोर दिया। इसी के साथ वह दुनिया में पहली एकपैड एम्प्युटी व्यक्ति बन गईं, जिन्होंने एक पैर के बिना इस ऊंचाई को प्राप्त किया।

माउंट एवरेस्ट के बाद भी जारी रहा विजय का सिलसिला

माउंट एवरेस्ट (Mount Everest) के बाद अरुणिमा ने विजय का सिलसिला जारी रखा। उन्होंने 2016 में माउंट विंसन, दक्षिण अमेरिका की सबसे ऊंची चोटी पर भी चढ़ाई की। इसके अलावा, यूरोप की सबसे ऊंची चोटी माउंट एल्ब्रस और ओशनिया की सबसे ऊंची चोटी माउंट कोसियुस्को पर भी उनकी विजय पताका फहरा चुकी है।

अरुणिमा सिन्हा ने इस साहसिक कार्य के बाद भी अपने परिवार, समाज, और देश के लिए योगदान देना जारी रखा है। उन्होंने एक फाउंडेशन “अरुणिमा सिन्हा इंफिनिटी आर्मी” की स्थापना की है, जो विभिन्न सामाजिक कार्यों के माध्यम से लोगों की मदद करती है। इसके अलावा, उन्होंने अपने आत्मकथा “बी माइ इंस्पिरेशन” के माध्यम से लोगों को अपने जीवन में सकारात्मक परिवर्तन की प्रेरणा दी है।

अरुणिमा सिन्हा को मिला सम्मान/पुरस्कार

उत्तर प्रदेश में सुल्तानपुर जिले के भारत भारती संस्था ने दुनिया की सबसे ऊंची चोटी माउंट एवरेस्ट पर तिरंगा फहराने वाली इस अरुणिमा सिन्हा को सुल्तानपुर रत्न अवॉर्ड से सम्मानित किया। साल 2016 में अरुणिमा सिन्हा को अम्बेडकरनगर रत्न पुरस्कार से अम्बेडकरनगर महोत्सव समिति की तरफ से नवाजा गया।

अरुणिमा सिन्हा ने चोटियों पर भी की चढ़ाई

अरुणिमा सिन्हा ने अपने बुलंद होसलो के बल पर न सिर्फ माउंट एवरेस्ट के शिखर पर पहुंची बल्कि कई अन्य चोटियों की भी उंचाई को छुईं। अरुणिमा के द्वारा फतह की गयी अन्य चोटियाँ ये हैं।

अर्जेटीना के अकोंकागुआ पर्वत पर (6961 मीटर)
यूरोप के एलब्रुस पर्वत पर (5631 मीटर)
अफ्रीका के किलिमंजारी पर्वत पर (5895 मीटर)

अरुणिमा सिन्हा के मोटिवेशनल शब्द –

अभी तो इस बाज की असली उड़ान बाकी है…

अभी तो इस परिंदे का इम्तिहान बाकी है…

अभी अभी तो मैंने लांघा है समंदरों को..

अभी तो पूरा आसमान बाकी है!!!