नीलम सिंह चौहान, खबरीमीडिया
ये कहावत तो आपने भी सुनी होगी कि मेहनत करने वाला व्यक्ति एक न एक दिन सफल जरूर होता है। भले ही उसके रास्ते में कितनी भी मुश्किलें या कथनाइयां क्यों न आ जाए। बस कुछ ऐसे ही हालात राधा – गोविंद ने भी झेलें, यहां तक कि हालात ऐसे भी बने कि उन्होंने अपनी लाइफ को खत्म करने तक का निर्णय लिया। लेकिन बार बार फेल होने के बाद भी उन्होंने कोशिशों को जारी रखा और आज करोड़ों रुपयों का कारोबार खड़ा कर दिया।
जयपुर की ब्लॉक प्रिंटिंग के दम पर इन लोगों ने मुंबई के जैसे शहर में अपने कई आउटलेट्स को खोल लिए। पुश्तैनी काम को नया रंग दिया। एक फैमिली जो दो वक्त की रोटी के लिए परेशान था आज करोड़ों रुपयों के कारोबार की देख रेख कर रहा है।
ये कहानी है जयपुर के फाउंडर राधा गोविंद के संघर्ष के सफलता की:
यह भी पढ़ें: PhonePe-Paytm का इस्तेमाल करने वालों के लिए बड़ी ख़बर
500वर्ष पुराना है बिजनेस
जयपुर से तकरीबन 20- 30 किलोमीटर के दूरी पर बेगुरी नामक गांव में रहने वाले राधा गोविंद की फैमिली 500 वर्ष से ज्यादा पुरानी अपनी पुश्तैनी ब्लॉक प्रिंटिंग का कारोबार कर रहा था। इन लोगों के दादा परदादा सभी इस बिजनेस से जुड़े थे। कारोबार को इनका परिवार ही आगे बढ़ा रहा था, लेकिन धीरे धीरे समय के साथ ही चीजें बदलने लग गईं। काम बंद होने लगा और एक दिन पूरी तरह से ठप हो गया। काम बंद होते ही परिवार जनों के उपर कई तरह की मुश्किलें आ गई। उस समय राधा और गोविंद केवल 7- 8 साल के ही थे। हालात ये थे कि मां को दूसरों से आटा चावल तक मांगना पड़ा।
17 रुपए से शुरू की फिर अपनी दुकान
घर की हालात लगातार खराब होती ही जा रही थी, इतने पैसे तक नहीं थे कि फीस भरी जा सके। इस बात का इतना दुख हुआ कि वो लोग घर छोड़ने तक का प्लान करने लगे, लेकिन कोई रास्ता न दिखने पर वापस लौट आए। वापस आए तो देखा कि मां बेसुध पड़ी है। फिर उन्होंने सोचा कि अब हालात का सामना करेंगे और गुल्लक से 17 रुपए एकत्रित किए और घर के चबूतरे पर ही चॉकलेट और टॉफी बेचने लगे।
मुंबई ने चमका दी किस्मत
राधा गोविंद ये जान चुके थे की किस्मत बदलने के लिए बाहर तो जाना ही पड़ेगा। ऐसे में उन्होंने मुंबई का रुख किया, केवल दो जोड़ी कपड़ा और एक चप्पल लेकर वे मुंबई आ गए। वहां, उनको न ही कोई जान पहचान का मिला , न ही कोई काम धंधा मिला। दो तीन रातें तो उन्होंने स्टेशन पर ही निकाल दी। जैसे ही कोई सूटबूट वाला दिख जाता, वो भीग मांगना शुरू कर देते। राधा गोविंद ने कड़ी मेहनत की और दिन रात पैसे कमाए इसके बाद 45हजार लेकर को गांव वापस गए। साल 2014 – 2015 में उन्होंने गांव के कारीगरों से कपड़ा बनवाना शुरू किया। उन कपड़ों को से मुंबई ले जाकर बेंच देते थे। हाथों की कढ़ाई से बने ये कपड़े मुंबई में खूब बिके।
खड़ा किया करोड़ों रुपए का कारोबार
उन्होंने 10 वर्षों के अंदर मुंबई में ओहो! जयपुर की 3 से लेकर 4 आउटलेट्स को बेंच डाला। जो कभी खुद काम मांगता था, अब वो जरूरतमंदों को जॉब देने लगा। स्पेशली उन लोगों को जिन्हें बाकी लोग ठुकरा देते हैं। आज उनका सालाना बिजनेस 8 करोड़ रुपए से ज्यादा का हो गया है, ऑफलाइन आउटलेट्स के अलावा ई कॉमर्स प्लेटफार्म , सोशल मीडिया के जरिए “ओहो! जयपुर” के कपड़ों की भारी डिमांड है।