Vastu Tips: अक्सर हम अपने घरें में देखते हैं कि कई लोग बिस्तर पर बैठकर भोजन करते हैं। वास्तु शास्त्र (Vaastu Shaastra) के मुताबिक ऐसा करना शुभ नहीं होता है, इसके कारण से कई परेशानियां आपके जीवन में आ सकती हैं। ऐसा करना न आपके स्वास्थ्य के लिए और ना ही आपके आर्थिक पक्ष के लिए अच्छा होता है। आइए इस खबर में विस्तार से जानते हैं कि आखिर क्यों वास्तु और ज्योतिष शास्त्र (Astrology) में बिस्तर पर बैठकर खाना सही नहीं माना गया है, और भोजन ग्रहण करने के सही नियम क्या हैं।
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बिस्तर पर बैठकर नहीं करना चाहिए भोजन
वास्तु शास्त्र (Vaastu Shaastra) के मुताबिक जिस काम के लिए जो स्थान तय है वहां केवल वही कार्य होना चाहिए। बिस्तर विश्राम करने के लिए है इसलिए गलती से भी कभी बिस्तर पर बैठकर भोजन नहीं करना चाहिए, अगर आप ऐसा करते हैं तो माता अन्नपूर्णा आप से नाराज हो जाती हैं।
वास्तु के मुताबिक जो लोग बिस्तर पर बैठकर भोजन करते हैं, उनको आर्थिक नुकसान का सामना बार-बार करना पड़ सकता है। ऐसे लोगों की अचानक धन हानि होती रहती है।
धार्मिक शास्त्रों के अनुसार बिस्तर पर बैठकर भोजन करने से माता लक्ष्मी की कृपा रुक जाती है। यानि धन कमाने में और उसे संचित करने में बहुत समस्या होने लगती है।
वास्तु के मुताबिक बिस्तर पर खाना खाने के कारण से नकारात्मक शक्तियां आपके घर में प्रवेश कर सकती हैं। ऐसा करना आपके मानसिक स्वास्थ्य के लिए भी अच्छा नहीं होता।
बिस्तर पर बैठकर भोजन करने से राहु ग्रह से भी बुरे परिणाम मिलने लगते हैं। ऐसे लोगों के घर में अशांति का वातावरण बन जाता है, जो बिस्तर पर बैठकर खाना खाते हैं।
आइए अब जानते हैं कि भोजन करने के लिए कौन सी जगह सबसे अच्छी माना जाती है।
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क्या है भोजन से जुड़ा वास्तु नियम
वास्तु के मुताबिक भोजन आपको जमीन पर बैठकर करना चाहिए।
भोजन करते समय आपका मुख उत्तर-पूर्व की दिशा में हो तो इसके अच्छे परिणाम सामने आते हैं।
भोजन करने के बाद कभी भी जूठे-बर्तन किचन में नहीं रखने चाहिए।
किचन में भोजन करने का स्थान न हो तो बेहतर है।
जिस जगह पर बैठकर भोजन करते हैं, उस जगह को हमेशा साफ रखना चाहिए।
भोजन करने से पहले भोजन मंत्र का जप आपको करना चाहिए, मंत्र नीचे दिया गया है-
ॐ सह नाववतु, सह नौ भुनक्तु, सह वीर्यं करवावहै ।
तेजस्वि नावधीतमस्तु मा विद्विषावहै ॥
ॐ शान्तिः शान्तिः शान्तिः ॥
अन्नपूर्णे सदापूर्णे शंकर प्राण वल्लभे।
ज्ञान वैराग्य सिद्धयर्थ भिखां देहि च पार्वति।।
ब्रह्मार्पणं ब्रह्महविर्ब्रह्माग्नौ ब्रह्मणा हुतम् ।
ब्रह्मैव तेन गन्तव्यं ब्रह्मकर्म समाधिना ।।