नीलम सिंह चौहान, खबरीमीडिया
Mental Health: डॉक्टर्स का ये कहना है कि मानसिक स्वास्थ्य ( मेंटल हेल्थ) से जूझने वाले तकरीबन 70 फीसदी से भी अधिक भारतीय अपना उपचार नहीं करवाना चाहते हैं। इसकी मुख्य वजह है जागरूकता की कमी और लापरवाही। इस बात पर भी ज्यादा जोर दिया गया है कि मनोवैज्ञानिक मुद्दों को व्यापक रूप से समझने और समय से इलाज पाने के लिए शारीरिक और मानसिक हेल्थ के बारे में जागरूकता शिक्षा प्रणाली की अभिन्न हिस्सा होना चाहिए।
एम्स यानी कि ( अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान) के मनोचित्सक विभाग के प्रोफेसर डॉक्टर नंद कुमार का कहना है कि मेंटल हेल्थ मुद्दों के बारे में लोगों के बीच जागरूकता और समझ की कमी है, इसलिए मनो स्थिति की जांच नहीं हो पाती है। उन्होंने कहा है कि जबतक व्यक्ति ये अहसास नहीं करेगा कि वे बीमार है तबतक वे अपना इलाज कैसे करेगा। लक्षण को पहचाननें और इलाज शुरू होने के बीच के समय में काफी फासला हो जाता है, फलस्वरूप जटिलताएं तेजी से बढ़ जाती हैं।
डॉक्टर कुमार का कहना है कि नींद न पूरी होना, चिंता, डिप्रेशन से लेकर गंभीर मनोदशा संबंधी विकार, जुनून और मनोविकृति तक मानसिक स्वास्थ्य समस्याओं को काफी बड़ा दायरा होता है। ऐसे में ये समझ पाना दिक्कत का काम होता है कि उसकी असली परेशानी क्या है, और इसमें कोई बड़ी समस्या है कि नहीं।
उनका ये कहना है कि , मानसिक स्वास्थ्य समस्या वालों में एक बड़ा हिस्सा किशोरों का भी है और इस संबंध में ज्यादातर गलती और नासमझी से उन्हें किशोरावस्था से जुड़ी परेशानी को मान लिया जाता है और उनकी अनदेखी कर दी जाती है। उनका कहना है कि इसके अलावा, मेंटल हेल्थ से बीमार होने का ठप्पा लगने और उसके फलस्वरूप भेदभाव होने का डर लोगों को इलाज कराने से रोकता है। मनोचिकित्सक अस्थाना जी का कहना है कि इलाज की कीमत और लंबा उपचार भी अधिक लोगों को इलाज कराने से रोक देता है।
यह भी पढ़ें: लूज मोशन को करना चाहते हैं ठीक, तो इस्तेमाल करें ये चीजें
अस्थाना मेंटल हेल्थ फाउंडेशन, दिल्ली एम्स और दीपक चोपड़ा फाउंडेशन ( अमेरिका) द्वारा संयुक्त रूप से आयोजित “ मेंटल हेल्थ फेस्टिवल” का मेन समन्वयक रही थीं। अस्थाना का कहना है कि मानसिक स्वास्थ्य मुद्दों की समाधान के रास्ते में एक और बड़ी रुकावट मनो चिकत्सकों की कमी है। डॉक्टर कुमार का कहना है मनोचिकत्सकों की संख्या 2016 से 6,000 बढ़कर 2023 में 9000 हो गई। उन्होंने कहा कि एनसीआरबी के आंकड़े के हिसाब से आत्महत्या की संख्या 2016 के करीब 1.3 लाख से बढ़कर 2021 में 1.54 लाख हो गई है।