उद्भव त्रिपाठी, ख़बरीमीडिया
NCP Crisis: राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (Nationalist Congress Party) यानी एनसीपी में पार्टी अध्यक्ष को लेकर बयानबाजी का दौर जारी है। एनसीपी अध्यक्ष शरद पवार (Sharad Pawar) ने अपने बयानों पर शुरू हुए राजनीतिक विवाद के बीच ये कहकर कयासों पर विराम दे दिया कि वो एनसीपी (NCP) के राष्ट्रीय अध्यक्ष हैं और बने रहेंगे, जबकि जयंत पाटिल प्रदेश अध्यक्ष हैं। उन्होंने एक बार फिर से साफ कर दिया कि पार्टी विभाजित नहीं हुई है। मतलब अजित पवार अगर कुछ भी ऐसा सोच रहे हैं तो वो सोचना बंद कर दें।
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एनसीपी का साथ छोड़कर एनडीए का दामन थामने वाले भतीजे अजीत पवार के नेतृत्व वाले अलग गुट का जिक्र करते हुए शरद पवार ने कहा कि हालांकि कुछ विधायकों ने पार्टी छोड़ दी है, लेकिन उन्होंने किसी नई राजनीतिक पार्टी नहीं बनाई है। इसलिए मैं मानता हूं कि पार्टी विभाजित नहीं हुई है।
जिन्होंने साथ छोड़ा, उन्हें महत्व क्यों दें-शरद पवार
आगे पवार ने कहा कि जो पार्टी छोड़कर चले गए, उनका नाम लेकर हम उन्हें महत्व क्यों दें? मैं जानता हूं कि जो लोग भाजपा के साथ गए हैं, उनसे लोग परेशान हैं। मैं महाराष्ट्र में बदलाव देख रहा हूं और मौका आने पर लोग भाजपा को उसकी असली जगह दिखाएंगे। इसी दौरान विपक्षी गठबंधन इंडिया की तीसरी बैठक के बारे में बात करते हुए शरद पवार ने कहा कि इसमें 2024 के लोकसभा चुनाव की तैयारियों की समीक्षा की जाएगी और देश के विभिन्न हिस्सों में संयुक्त चुनाव प्रचार के लिए कार्यक्रमों की रूपरेखा तैयार की जाएगी।
भाजपा पर बोला हमला
शरद पवार ने भाजपा पर जोरदार हमला बोलते हुए कहा कि भाजपा ने विपक्षी दलों और उनके नेताओं के खिलाफ केंद्रीय जांच एजेंसियों को तैनात कर दिया है। मैं ऐसी फासीवादी ताकतों के खिलाफ लड़ना जारी रखूंगा… केंद्रीय जांच एजेंसियों (सीबीआई, ईडी और आईटी) का दुरुपयोग हो रहा है। जो लोग इन एजेंसियों से डर जाते हैं, वे भाजपा के साथ चले गए हैं।
पवार ने यह भी खुलासा किया कि कैसे नवाब मलिक और अनिल देशमुख जैसे एनसीपी नेताओं और शिवसेना (यूबीटी) के सांसद संजय राउत को ईडी-सीबीआई की धमकी दी गई और भाजपा में शामिल होने के लिए कहा गया। आगे पवार ने कहा कि मगर वे झुके नहीं, उन्होंने साहस दिखाया और उनका विरोध किया। इसलिए उन्हें जेल जाना पड़ा। वे (मलिक, देशमुख, राउत) सलाम के पात्र हैं।
किसी का नाम बिना लिए पवार ने इस बात पर अफसोस जताया कि कैसे उनके कई पूराने साथी जिनमें जांच एजेंसियों का सामना करने की हिम्मत नहीं थी, सत्तापक्ष में चले गए और खुद को सभी समस्याओं से मुक्त कर लिया।
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