उत्तर प्रदेश में प्राइवेट स्कूलों को कोरोना काल में बच्चों से ली गई फीस का 15 फीसदी अभिभावकों को वापस देना होगा।माध्यमिक शिक्षा विभाग ने 17 अप्रैल तक स्कूलों को समय दिया है। यदि इस तिथि तक स्कूल विद्यार्थियों की फीस वापस कर इसकी सूचना विभाग को नहीं देते हैं तो उनपर कड़ी कार्रवाई होगी।
जिला विद्यालय निरीक्षक डॉ.धर्मवीर सिंह ने बताया कि इस मामले में सभी संबंधित स्कूलों को इनकी पालन कराने के निर्देश दिए हैं। उच्च न्यायालय के आदेश के मद्देनजर शिक्षा विभाग ने वर्ष 2020-21 में अध्ययनरत विद्यार्थियों की फीस का 15 प्रतिशत विद्यार्थियों के अभिभावकों के खाते में स्थानांतरित करने दिया था। इसके अनुपालन के लिए माध्यमिक शिक्षा विभाग ने 8 अप्रैल 2023 तक का समय दिया था। लगातार अभिभावकों की शिकायत आ रही थी कि स्कूल इन आदेशों की अवहेलना कर रहे हैं।
इसके मद्देनजर माध्यमिक शिक्षा विभाग ने कड़ा रुख अपनाते हुए इन स्कूलों को 17 अप्रैल तक विद्यार्थियों को फीस वापस कर इसकी सूचना कार्यालय को देने का निर्देश दिया है। यदि इसके बाद भी लापरवाही पाई गई तो माध्यमिक शिक्षा विभाग इन स्कूलों पर कड़ी कार्रवाई करेगा।
इलाहाबाद हाई कोर्ट ने राज्य के सभी निजी स्कूलों को निर्देश दिया है कि वह कोरोना की अवधि के दौरान साल 2020-21 में कुल जितनी भी फीस वसूली है, उनमें से 15 फीसदी शुल्क में छूट दें। इलाहाबाद हाई कोर्ट ने यह फैसला अभिभावकों की ओर से कोरोना काल में वसूली गई फीस को नियमित करने संबंधी दायर जनहित याचिकाओं पर सुनवाई के बाद सुनाया है।
आल नोएडा स्कूल पेरेंट्स एसोसिएशन के महासचिव के अरुणाचलम के मुताबिक “माननीय उच्च न्यायालय इलाहबाद ने जब स्कूलों को 15% फीस वापसी का निर्देश दे दिया है तो फिर स्कूल कोर्ट के आदेश का पालन क्यों नहीं कर रहे हैं। अगर कोर्ट के आदेश का पालन नहीं किया गया तो ऐसे स्कूल के खिलाफ सख्ती हो सकती है।
नोएडा के सुपरटेक इकोविलेज-1 में रहने वाले रिटायर्ड अधिकारी शशिभूषण साह का कहना है कि कोरोनाकाल में ज्यादातर पैरेंट्स आर्थिक तौर पर तनाव में थे। कईयों की नौकरी चली गई थी। ऐसे में स्कूल को चाहिए कि वो माननीय हाईकोर्ट के आदेश का पालन करे।
बहरहाल अब देखना ये कि स्कूल हाईकोर्ट के आदेश पर कितना और कितनी जल्दी अमल करते हैं।