Jyoti Shinde,Editor
महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे ने कल यानी सोमवार को प्रेस कॉन्फ्रेंस कर मीडिया के सवालों का जवाब दिए। इस कॉन्फ्रेंस में उन्होंने कहा कि हमारी सरकार बाला सहेब और आनंद दिघे के आदर्शों पर चलने वाली सरकार है। हमारा काम बोल रहा है। स्वच्छ और ईमानदारी की छवि देखकर अजित पवार सरकार में शामिल हुए हैं। अब जल्द ही कैबिनेट का हम विस्तार भी करेंगे।
आपको बता दें कि महाराष्ट्र कैबिनेट में अभी बीजेपी के 9 मंत्री, शिवसेना के 9 मंत्री और अजित के अलावा 8 विधायकों ने शपथ ली है। इसप्रकार महाराष्ट्र में अभी तीनों पार्टी के बराबर-बराबर विधायक हैं।
वहीं कॉन्फ्रेंस के दौरान एकनाथ शिंदे ने कहा कि इधर सीट अभी फुल हो गया है। हमारी सरकार में कांग्रेस के कोइ भी विधायक शामिल नहीं हो रहे हैं। यह एक इमानदार सरकार है। जो पिछले एक साल से दमदारी से बाला साहब के आदर्शों पर चल रही है।
अजित से अ‘जित होगी बीजेपी
महाराष्ट्र की राजनीति में अजित पवार की इंट्री से बीजेपी को दोहरा फायदा हो रहा है। एक तरफ जहां अगर एकनाथ शिदें के विधायक कोर्ट द्वारा अयोग्य घोषित होते हैं तो बीजेपी की सरकार अजित के विधायकों के समर्थन से चलती रहेगी। वहीं दूसरा फायदा लोकसभा चुनाव 2024 में बीजेपी को मिलने के आसार है। दरअसल बीजेपी पश्चिमी महाराष्ट्र में काफी कमजोर है। और पश्चिमी महाराष्ट्र में अजित के समर्थक काफी संख्या में हैं। तो ऐसे में अगर लोकसभा चुनाव 2024 तक अजित एनडीए के समर्थन का हिस्सा रहे तो निश्चित तौर पर बीजेपी को फायदा होगा।
अजित पश्चिमी में इतना मजबूत हैं कि वह एनसीपी की कार्यकारी अध्यक्ष और शरद पवार की बेटी की लोकसभा सीट को भी प्रभावित कर सकते हैं।
अजित पवार और आठ अन्य विधायकों के एकनाथ शिंदे के नेतृत्व वाली महाराष्ट्र सरकार में शामिल होने के बाद, राकांपा ने विद्रोहियों को अयोग्य ठहराने की मांग की है। अजित पवार का दावा है कि उन्हें विधानसभा में एनसीपी के 53 विधायकों में से 40 विधायकों का समर्थन प्राप्त है। तो ऐसी स्थिति में क्या अजित पवार पर दलबदल कानून लागू होगा।
महाराष्ट्र सरकार में अजित पवार की एंट्री का पूरा गणित समझिए
अजित पवार ने महाराष्ट्र की राजनीति में उथल-पुथल मचा दी है। साहसी कदम उठाते हुए उन्होंने पाला बदल लिया और शिवसेना और भारतीय जनता पार्टी सरकार में शामिल हो गए। राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (एनसीपी) के नेता ने उपमुख्यमंत्री पद की शपथ ली और पार्टी के आठ अन्य नेताओं ने मंत्री पद की शपथ ली। शरद पवार के नेतृत्व वाली एनसीपी ने अजित और आठ अन्य बागी विधायकों के खिलाफ महाराष्ट्र विधानसभा अध्यक्ष राहुल नार्वेकर के समक्ष अयोग्यता याचिका दायर की है।
पार्टी ने भारत के चुनाव आयोग को भी पत्र लिखकर बताया है कि 1999 में एनसीपी की स्थापना करने वाले शरद पवार ही पार्टी के प्रमुख हैं और नेतृत्व में कोई बदलाव नहीं होगा। इसमें यह भी कहा गया कि सभी जिलों के पार्टी नेता वरिष्ठ नेता शरद पवार के साथ मजबूती से खड़े हैं।
शरद पवार के निर्देश पर दायर की गई याचिका
महाराष्ट्र एनसीपी अध्यक्ष जयंत पाटिल ने कहा कि पार्टी ने एक कदम उठाया है। अयोग्यता याचिका एकनाथ शिंदे के नेतृत्व वाली सरकार में मंत्री पद की शपथ लेने वाले पवार और आठ अन्य के खिलाफ। उन्होंने बागियों पर तंज कसते हुए कहा कि नौ विधायक एक पार्टी नहीं हो सकते। सूत्रों के मुताबिक, अयोग्यता की याचिका शरद पवार के निर्देश के बाद दायर की गई है।
एनसीपी की अनुशासन समिति ने सोमवार को अजित पवार और आठ अन्य बागी विधायकों के खिलाफ प्रस्ताव पारित किया। इसमें कहा गया है कि पार्टी अध्यक्ष की जानकारी या सहमति के बिना ये दल-बदल इतने गुप्त तरीके से किए गए कि यह पार्टी छोड़ने जैसा है। जो अयोग्यता को आमंत्रित करता है।
अजित पवार को कितना समर्थन
महाराष्ट्र सरकार में उपमुख्यमंत्री अजित पवार का दावा है कि राज्य विधानसभा में एनसीपी के 53 विधायकों में से 40 से अधिक का समर्थन उन्हें प्राप्त है। दलबदल विरोधी कानून के प्रावधानों से बचने के लिए अजित को 36 से ज्यादा विधायकों के समर्थन की जरूरत होगी। अगर वास्तव में अजित को 40 विधायकों का समर्थन प्राप्त है तो उनपर दलबदल कानून नहीं लागू होगा।
एक प्रेस कॉन्फ्रेंस में अजित पवार के साथ एनसीपी के वरिष्ठ नेता प्रफुल्ल पटेल के साथ दिखे। उन्होंने दावा किया कि उन्हें लगभग पूरी एनसीपी का समर्थन प्राप्त है। उन्होंने पार्टी के नाम और चुनाव चिन्ह के लिए भी लड़ाई लड़ने को कहा। यह बात शिवसेना के एकनाथ शिंदे के विद्रोह और अलग होने की याद दिलाता है। अब अजित का अगला कदम चुनाव आयोग से संपर्क करना और यह साबित करना होगा कि वह असली एनसीपी हैं।
दलबदल विरोधी कानून क्या है
संविधान की दसवीं अनुसूची राजनीतिक दलबदल को रोकने का प्रयास करती है जो पद के पुरस्कार या अन्य समान विचार से प्रेरित हो सकता है। किसी सदस्य को दलबदलू तब कहा जाता है जब उसने अक्सर किसी विरोधी समूह में शामिल होने के लिए कोई पद या संगठन छोड़ दिया हो।
राजीव सरकार ने पेश किया था यह कानून
राजीव गांधी सरकार ने 1985 में 52 वें संवैधानिक संशोधन के माध्यम से यह कानून पेश किया था। इसका उद्देश्य पद के लालच या अन्य विचारों से प्रेरित विधायकों द्वारा राजनीतिक दलबदल की बुराई को रोकना और किसी अन्य राजनीतिक दल में दलबदल के आधार पर निर्वाचित सदस्यों की अयोग्यता के प्रावधान निर्धारित करना था। 1967 के आम चुनाव के बाद पार्टी बदलने वाले विधायकों द्वारा विभिन्न राज्य सरकारों को गिराए जाने के बाद इसे लाया गया था। यह कानून संसद और राज्य के विधानसभाओं दोनों पर लागू होता है।
दलबदल विरोधी कानून कब लागू नहीं होता
इस कानून में बागी विधायकों को अयोग्यता से बचाने का प्रावधान है। जब पहली बार पेश किया गया था, तो इसमें एक तिहाई बहुमत का नियम था। किसी राजनीतिक दल के एक तिहाई निर्वाचित सदस्यों द्वारा दलबदल को विलय माना जाता था और उन्हें अयोग्यता के अधीन नहीं किया जाएगा।
हालांकि 2003 में तत्कालीन अटल बिहारी वाजपेयी सरकार ने 91 वें संविधान संशोधन के माध्यम से एक बदलाव किया। विभाजन के दौरान दल-बदल विरोधी आरोपों का सामना करने से बचने के लिए पार्टी के कम से कम दो-तिहाई सदस्यों की आवश्यकता होती है। यदि एक-तिहाई सदस्य एक अलग समूह बनाते हैं, तो अयोग्यता से छूट हटा दी गई।
निर्णय लेने वाला कौन है
दल-बदल के मामलों पर निर्णय लेने का अधिकार स्पीकर के पास है, जैसा कि कानून द्वारा दिया गया है। हालांकि, कानून पर बहस के दौरान चिंताएं व्यक्त की गई हैं कि दलबदल के मामलों में वक्ताओं को शामिल करने से उनके कार्यालय के लिए अनावश्यक टकराव पैदा हो सकता है।
अजित पवार के मामले में क्या होगा
यह देखना बाकी है। जबकि अजित पवार का दावा है कि उन्हें एनसीपी के 53 में से 40 विधायकों का समर्थन प्राप्त है, लेकिन अजित के पास अभी सिर्फ 8 विधायकों का ही साथ है। उन्हें दलबदल कानुन से बचने के लिए जल्द से जल्द अपनी तरफ लाना होगाष अगर ऐसा वह नहीं कर पाते तो वह दलबदल कानून के दायरे में आ जाएंगे और उनपर कार्यवाही हो सकती है।
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