ग्रेटर नोएडा वेस्ट की सोसायटी सुपरटेक इकोविलेज-1(Supertech Ecovillage-1) में भगवान शिव की आराधना का पर्व महाशिवरात्रि धूम धाम से मनाई गई। ख़ास मौके पर सुबह से शाम तक शिव मंदिर में श्रद्धालुओं का तांता लगा रहा। हर कोई भोलेनाथ के दर्शन करने के लिए लालायित दिखाई दे रहा था। युवा, बुजुर्ग, महिलाएं सभी आस्था और भक्ति के रंग में रंगे नजर आ रहे थे। पूरी सोसायटी में उत्साह और उमंग का माहौल साफ दिखाई दे रहा था। शाम को धूम-धाम से शिव भक्तों ने शिव की बारात निकाली। शिव बरात में शामिल होने वाले भक्तों का उत्साह देखते ही बन रहा था। रथ पर सवार भोले शंकर और पार्वती को का बाल रूप मन मोह रहा था।
महाशिवरात्रि मनाए जाने के संबंध में कई कथाएं प्रचलित हैं। भागवत पुराण के अनुसार समुद्र मंथन के समय वासुकी नाग के मुख में भयंकर विष की ज्वालाएं उठीं और वे समुद्र में मिश्रित होकर विष के रूप में प्रकट हो गई। विष की यह आग की ज्वालाएं पूरे आकाश में फैलकर सारे जगत को जलाने लगींं। इसके बाद सभी देवता, ऋषि-मुनि शिवजी के पास मदद के लिए गए। इसके बाद भगवान शिव ने उस विष को पी लिया। इसके बाद से ही उन्हें नीलकंठ कहा जाने लगा। शिव द्वारा इस बड़ी विपदा को झेलने और विष की शांति के लिए उस चंद्रमा की चांदनी में सभी देवों ने रात भर शिव का गुणगान किया। वह महान रात्रि ही शिवरात्रि के नाम से जानी गई।
एक अन्य मान्यता के अनुसार एक बार ब्रह्मा और विष्णु दोनों में इस बात को लेकर विवाद हो गया कि दोनों में से बड़ा कौन है। स्थिति यह हो गई कि दोनों ही भगवान ने अपनी दिव्य अस्त्र शस्त्रों का इस्तेमाल कर युद्ध घोषित कर दिया। इसके बाद चारों ओर हाहाकार मच गया। देवताओं, ऋषि मुनियों के अनुरोध पर भगवान शिव इस विवाद को खत्म करने के लिए ज्योतिर्लिंग रूप में प्रकट हुए। इस लिंग का न कोई आदि था और न ही अंत था। ब्रह्मा विष्णु दोनों ही इस लिंग को देखकर यह नहीं समझ पाए कि यह क्या चीज है। इसके बाद भगवान विष्णु सूकर का रूप धारण कर नीचे की ओर उतरे जबकि ब्रह्मा हंस का रूप धारण कर ऊपर की ओर यह जानने के लिए उड़े कि इस लिंग का आरंभ कहां से हुआ है और इसका अंत कहां है।
जब दोनों को ही सफलता नहीं मिली तब दोनों ने ज्योतिर्लिंग को प्रणाम किया। इसी दौरान उसमें से ऊं की ध्वनि सुनाई दी। ब्रह्मा विष्णु दोनों ही आश्चर्यचकित हो गए। इसके बाद उन्होंने देखा कि लिंग के दाहिने ओर आकार, बायीं ओर उकार और बीच में मकार है। अकार सूर्यमंडल की तरह, उकार अग्नि की तरह तथा मकार चंद्रमा की तरह चमक रहा था और उन तीन कार्यों पर शुद्ध स्फटिक की तरह भगवान शिव को देखा। इस अद्भुत दृश्य को देख ब्रह्मा और विष्णु अति प्रसन्न हो शिव की स्तुति करने लगे। शिव ने प्रसन्न हो दोनों को अचल भक्ति का वरदान दिया। प्रथम बार शिव के ज्योतिर्लिंग में प्रकट होने पर इसे महाशिवरात्रि के रूप में मनाया गया।
वहीं एक अन्य कथा के अनुसार महाशिवरात्रि पर भगवान शिव और देवी पार्वती का मिलन हुआ था। फाल्गुन चतुर्दशी तिथि पर भगवान शिव ने वैराग्य त्याग कर देवी पार्वती संग विवाह किया था और गृहस्थ जीवन में प्रवेश किया था। इसी वजह से हर वर्ष फाल्गुन चतुर्दशी तिथि को भगवान शिव और माता पार्वती के विवाह की खुशी में महाशिवरात्रि का त्योहार मनाया जाता है। इस दिन शिवभक्त कई स्थानों पर महाशिवरात्रि पर शिव जी की बारात निकालते हैं।