“या तो हमारी मांगें मान लीजिए..या फिर आंदोलन चलता रहेगा“। कुछ ऐसी सोच है सुपरटेक-1 इकोविलेज के रहने वाले उन सैंकड़ों निवासियों की जो दो हफ्ते से ज्यादा प्रदर्शन स्थल पर सिर्फ इसलिए डटे हैं ताकि उन्हें उनका वो हक मिल सके, वो हक, जो सिर्फ और सिर्फ उनका है। किसी और का नहीं। जरा सोचिए..अगर अपने ही हक के लिए इंसान को सड़क पर उतरना पड़ा तो इससे शर्मनाक बात और क्या हो सकती है।
रजिस्ट्री, पजेशन, पार्किंग, बिजली लोड, बिजली, पानी, सुरक्षा, फायर फाइटिंग समेत तमाम मुद्दे हैं जो बुनियादी हैं लेकिन मैनेजमेंट इन मांगों को दरकिनार कर रहा है। हर महीने मेंटनेंस के तौर पर यहां रहने वाले लोग हजारों रुपए अदा कर रहे हैं लेकिन सुविधाओं के नाम पर उन्हें वो फैसलिटी नहीं दी जा रही है जो उन्हें मिलनी चाहिए। ऐसा यहां रहने वाले लोगों का आरोप है।
निवासियों ने अपनी मांगें अब कागज़ पर उतारकर जगह जगह चिपकानी शुरू कर दी है। हर टावर पर पर्चे लगाए जा रहे हैं। ये मामूली पर्चे नहीं हैं बल्कि मांगों की लिस्ट है जिस पर मैनेजमेंट को ध्यान देना ही होगा।
रणभेरी बज चुकी है लेकिन लड़ाई शांतिपूर्ण है..आंदोलन भी शांतिपूर्ण तरीके से चल रहा है। और उम्मीद है कि बापू के पदचिन्हों पर चलते हुए आंदोलन और आंदोलनकारियों की जीत जरूर होगी ऐसा यहां रहने वाले निवासियों को भरोसा है।