दौलत के चक्कर मे नजरअंदाज हो रही धर्म संस्कृति!

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वैसे ज्यादा फिल्म देखना मुझे पसंद नहीं।परंतु देश, समाज,राजनीति,संस्कृति,धर्म और सच्ची घटनाओं पर कोई फिल्म कभी आती है,तो मैं जरूर देखता हूं। आखिर क्या नया और सच्चा होता है इन फिल्मों में। जब एक तरफ विरोध तो दूसरी तरफ टैक्स फ्री। ऐसी मूवी की उत्सुकता रहती है।

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अभी हाल ही में मैंने “द केरला स्टोरी” फिल्म देखी। फिल्म ‘लव जिहाद’ की सच्ची घटना पर ‘केरल राज्य’ पर आधारित फिल्म है। दूसरे शब्दों में इसे हम लव जिहाद आतंकवाद कह सकते हैं। सुनने में आता है कि आतंकवाद अनेकों प्रकार के होने के साथ उसका कोई धर्म नही होता है। इस फ़िल्म के माध्यम से जो कि सच्ची घटना पर बनी है। एक संदेश दे रही है।लव जिहाद एक आतंकवाद है।आए दिन इस लव जिहाद की खबर हम समाचार पत्रों,टीवी चैनलों में देखते हैं।

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हम फिल्म ‘द केरला स्टोरी’ के सच्चे पात्रों का बारीकी से अध्ययन करें तो पता चलेगा एक बिंदु जो मुझे महत्वपूर्ण लगा कि लव जिहाद में फसी शायद उन तीनों लड़कियों के जीवन के टर्निंग प्वाइंट का वो समय था। जब इनके माता-पिता ने इनकी परवरिश की,और उसमे संस्कृति, सभ्यता और धर्म का अभाव शायद छोड़ दिया। इनके माता-पिता ने खूब रुपया-दौलत कमाई उच्च शिक्षा का वातावरण घर पर था। पर मूल शिक्षा धर्म-या कहे तो व्यवहारिक ज्ञान जिसे हम राष्ट्र के लिए समर्पित होना, हमारी भारतीय संस्कृति को मूल रूप से जानना,धर्म का सही ज्ञान होना,अपने मूल्यों से जुड़कर रहना शायद देना भूल गए।’दौलत के चक्कर मे पालक संस्कृति,धर्म, आध्यात्मिक पर ध्यान ही नही दे रहे,जिसका परिणाम है।द केरला स्टोरी।’और यही से इन तीन लड़कियों के जीवन का पतन प्रारंभ हुआ। इन्ही सब बातों के कारण आज भी अनेकों परिवार तहस-नहस हो रहे।

वर्तमान में भी देश के अलग-अलग जगहों पर ये लव जिहाद हो रहा है। इसका मूल कारण यही है,कि माता-पिता,पालक अपने बच्चों को मूल उच्च शिक्षा क्या होती है।अथवा शिक्षा क्या है? इसको समझाने में आज असमर्थ है।आज शिक्षा जो दे रहे है वो कहे की”ग्लैमर जैसा एजुकेशन” या डिग्रियों के साथ अच्छा जॉब जैसी दिखाई देती है इससे ज्यादा कुछ नही हैं,आज हम परिवार में अपने धर्म का पाठ पड़ना शायद भूल रहे है।अपनी भारतीय संस्कृति को सही से परिचित नहीं करा पा रहे आने वाली पीढ़ी को हम।’झांसी की रानी,रानी दुर्गावती ‘का पाठ नहीं पढ़ा रहे हैं।जिससे की ‘शालिनी को फातिमा ‘बनने में ज्यादा वक्त नहीं लग रहा है।जबकि केरल राज्य देश का सबसे ज्यादा साक्षर राज्य है।फिर भी वहां यह घटनाओं का अधिक होना एक प्रश्न चिन्ह है। फिल्म में धर्म के नाम पर एक लड़की ने अनेको बार कुछ ना कुछ कहा। यह ठीक उसी प्रकार था,उन तीनों लड़कियों के लिए। कक्षा में जैसे परीक्षा देते समय किसी को कुछ नहीं आता हो और वे इधर-उधर देख कर समय निकाला देता है। अर्थात उन तीनों की बोलती बंद हो जाती है।जबकि एक लड़की इन तीनों लड़कियों का बहुत ही सुंदर तरीके से ब्रेनवॉश करती नजर आती है।

इसका क्या कारण हो सकता है।यह एक सोचने वाली बात है।शायद यही की उन तीनों लड़कियों को अपने मूल धर्म का ज्ञान नही होना।यही कारण है कि जिसका नतीजा हम सबके सामने उभर कर आया ‘द ‘केरला स्टोरी’ एक सच्चाई के रूप में’

माता-पिता अपने बच्चों को खूब उच्च शिक्षित बनाएं।इसमे कोई विरोध, संदेह या विवाद नहीं होना चाहिए। बल्कि बच्चों,माँ-बाप और परिवार वालो को एक-दूसरे पर गर्व होना चाहिए शिक्षा को लेकर।परंतु क्या?अपने मूल धर्म,जाति,सामाजिक कार्य,संस्कृति और भारतीय सभ्यता-परंपराओं, इतिहास को अनदेखा करते हुए। यह एक बड़ा विचारणीय बिंदु है।

महाराणा प्रताप, छत्रपति शिवाजी महाराज,पृथ्वीराज चौहान इनके पास इतनी दौलत और शोहरत थी,कि पूरे अखंड भारत को संचालित कर रहे थे। पर क्या इन्होंने अपने धर्म, संस्कृति, सभ्यता,प्राचीन इतिहास को कभी छोड़ा या अनदेखा किया।

फिल्म में तीनों लड़कियों के पतन का कारण वे खुद तो है,पर इससे ज्यादा इनके माता-पिता भी जिम्मेदार है।जिन्होंने उनको दिवाली,होली,रक्षा बंधन,

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जिन्होंने स्वयं पवित्र गीता में कहा है,कि मैं ही ईश्वर हूँ,भगवान श्री महादेव का महत्व भी कभी शायद नही बताया।यह”वास्तविक सच्ची घटना पर आधारित फिल्म है”कोई कितना भी इसका विरोध करे,ज्यादा या कमी निकाले।पर फ़िल्म के अंत में उन लड़कियों के माता-पिता का बयान भी इस फ़िल्म में बहुत महत्वपूर्ण दिखाई दिया। जो सबको अचंभित कर देता है।’यह फिल्म माता-पिता परिवार वालों को सचेत कर रही है,अभी नहीं तो कभी नहीं’ की तर्ज पर क्योंकि इस फिल्म ने हमें बताया कि आतंकवाद अनेकों प्रकार के होते है,उन्हीं में से एक है,’लव जिहाद’। परिवार के साथ हरएक ने एक बार यह फिल्म देखना चाहिए।जिससे कि पता चले वास्विक शिक्षा कैसी होना चाहिए।

इस फिल्म में आसिफा नामक लड़की द्वारा अन्य तीन लड़किया जो कि अन्य समुदाय से आती है,को पूर्व नियोजित प्लान के तहत या कहें योजना से जाल में फसाया।यह सिलसिला एडमिशन से शुरू,नर्सिंग कॉलेज के रूम से होकर,परिवार तक और फिर अंत में जाकर देश से बाहर भेज दिया जाता है। क्यों?इन तीनो लड़कियों में से एक लड़की आत्महत्या करने पर मजबूर हो जाती है।इसका जवाब आप स्वयं फिल्म देख कर ले सकते हैं। दूसरी ओर देश में जहां कई राज्यों ने इसे टैक्स फ्री किया,वही दो राज्य पश्चिम बंगाल और तमिलनाडु ने इस फिल्म को बैन लगा कर पूरा टँटा ही खत्म कर दिया।शायद इसके दो कारण हो सकते हैं। सच्चाई नहीं स्वीकारना या अपने राज्य को इस देश का हिस्सा नहीं मानना।फिल्म सच्चाई आधारित है।इसमें ऐसा कुछ नहीं है,प्रतिबंध जैसा।धर्म परिवर्तन,लव जिहाद अन्य बातें कई वर्षों से देश में हो रही है,ये हम आए दिन अखबारों में पढ़ते रहते है। पूरी सच्चाई को लेकर राइटर सूर्यपाल सिंह और पूरी टीम ने आम जनता के हित और जानकारी के लिए फिल्म बनाई तो क्या गलत है। फ़िल्म से उन्ही को तकलीफ है,जो सच उजागर होने से डरते है। कुछ लोगो का इसके पूर्व में बनी ‘कश्मीर’ की सच्चाई पर फ़िल्म के बारे में भी विरोध था।देश मे घटित हो रही घटनाओं से युवाओं को पर्दे के माध्यम से आजादी के 75 सालों से लेकर अब घटित सच्चाई से रूबरू करने और उसको मूवी के रूप में दिखाने में कोई परहेज नहीं होना चाहिए यह फिल्म भी यही कहती है।

अमितराव पवार,लेखक

(Declaimer- ये लेखक के अपने विचार हैं)

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