संकट संस्कृति पर तो संकट राष्ट्र पर – सुनील आंबेकर
सृष्टि के निर्माण का आधार पंच महाभूत- डॉ. चिन्मय पंड्या
Noida News: प्रेरणा शोध संस्थान न्यास के तत्वावधान में नोएडा के सेक्टर 12 स्थित सरस्वती शिशु मंदिर में आयोजित ‘प्रेरणा विमर्श 2024’ के समापन अवसर पर तीन दिवसीय कार्यक्रम के दौरान पंच परिवर्तन के पांच सूत्रों पर चर्चा की गई। समापन के मौके पर देव संस्कृति विश्वविद्यालय, हरिद्वार के प्रति कुलपति डॉ. चिन्मय पंड्या ने मुख्य अतिथि के रूप में अपने संबोधन में कहा कि मनुष्य के जीवन में सौभाग्य तभी आता है जब वह उसे पहचानने की स्थिति में होता है। उन्होंने कहा कि भारत की भूमि साधु, संतों और तपस्वियों की भूमि है और पूरी सृष्टि के निर्माण का आधार पंच महाभूत हैं।
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डॉ. पंड्या ने यह भी कहा कि वायु प्रदूषण से उतने लोग मर रहे हैं जितने युद्ध से नहीं। हमें सोचना होगा कि क्या हम गंगा के इतिहास को पढ़ाना चाहते हैं या भूगोल? उन्होंने यह भी बताया कि आजकल 34 प्रतिशत बारिश एसिडिक हो रही है और भवनों की आयु तीन गुना कम हो रही है। उन्होंने यह भी कहा कि यदि व्यक्ति संस्कारी है, तो वह श्रेष्ठ समाज का निर्माण करता है। भारतीय चिंतन का एक ऐसा पहलू है, जिसमें संस्कृति का पोषण होता है। हमें कर्तव्यों का निर्माण करना चाहिए क्योंकि जब व्यक्ति के भीतर कर्तव्यों का बोध होता है, तो समाज के उत्थान की दिशा स्वतः प्रशस्त होती है।
इस कार्यक्रम में मुख्य वक्ता के रूप में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के अखिल भारतीय प्रचार प्रमुख सुनील आंबेकर ने कहा कि रिश्ते बहुत महत्वपूर्ण हैं। उन्होंने यह भी कहा कि यदि संस्कृति संकट में है, तो राष्ट्र भी संकट में है। हमें रिश्तों की सही समझ होनी चाहिए, क्योंकि हर रिश्ते की एक विशेषता और उससे जुड़े कर्तव्य होते हैं। परिवार की एकता, जीवनशैली, व्यवस्था, पर्यावरण और आर्थिक व्यवस्था एक दूसरे से जुड़े हुए हैं, और इन सबको हमें एक साथ देखना होगा। उन्होंने यह भी सुझाव दिया कि पंच परिवर्तन के सभी विषयों को समाज के सभी वर्गों तक पहुंचाना चाहिए, और इसके लिए विभिन्न माध्यमों का इस्तेमाल किया जा सकता है।
इससे पहले, तीसरे और समापन दिन ‘स्व और नागरिक कर्तव्य’ पर देश के प्रमुख लेखकों, विचारकों और विद्वानों ने विचार विमर्श किया और नागरिक कर्तव्यों पर चिंतन किया।
कार्यक्रम के पहले सत्र में ‘स्व’ विषय पर “स्वधर्मे निधनं श्रेय” पर मंथन करते हुए मुख्य अतिथि स्वदेशी जागरण मंच के राष्ट्रीय सह-संगठक सतीश कुमार ने कहा कि सामान्यजन को व्यक्तिगत, परिवार और कार्यस्थल पर अपने स्व का बोध होना चाहिए। उन्होंने यह भी कहा कि हम इच्छाशक्ति से देशी वस्तुएं ले सकते हैं, और मजबूरी में विदेशी वस्तुएं। गांधी जी ने स्व को कुशलता से देश के आंदोलन में बदला। पंडित दीनदयाल उपाध्याय, विनोबा भावे और दत्तोपंत ठेगडी जैसे महापुरुषों ने स्वदेशी और विकेंद्रीकरण को आगे बढ़ाया। हमें अपनी भाषा, वेशभूषा, और संस्कृति पर गर्व होना चाहिए।
सत्र के मुख्य वक्ता राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के अखिल भारतीय प्रचार टोली सदस्य मुकुल कानितकर ने कहा कि स्वाभिमान के साथ अपने स्व का पालन करें और अपने आचरण, व्यवहार और कर्म में स्व का बोध आत्मसात करें। धर्म भारत का प्राण और स्व है, और विदेशियों के स्वभाव से अलग भारत का स्वभाव विश्व गुरु बनने की नियति रखता है। भारत ने हमेशा विदेशों की परंपराओं का सम्मान किया है और उन्हें विकसित होने का अवसर दिया।
कार्यक्रम के दूसरे सत्र में ‘नागरिक कर्तव्य’ पर “अधिकार से पहले कर्तव्य” पर चर्चा की गई। इस सत्र के मुख्य अतिथि प्रो. डॉ. शशिबाला, डीन, भारत विद्या संकाय, भारतीय विद्या भवन ने कहा कि कर्तव्यों का निर्माण न होने से परिवार टूट रहे हैं। कर्तव्य परायणता संस्कारों से आती है, जो हमारी संस्कृति से आते हैं। यदि मन संस्कारित होगा, तभी हम अपने कर्तव्यों का पालन कर सकेंगे।
सत्र के मुख्य वक्ता और पूर्व डीजीपी उत्तर प्रदेश बृज लाल ने कहा कि संविधान की मूल भावना को हम बदल नहीं सकते, हमारा कर्तव्य है कि संविधान की रक्षा करें। उन्होंने यह भी कहा कि संस्कार विहीनता तेजी से फैल रही है, और अगर हम एकजुट रहें तो हम सुरक्षित रहेंगे। बृज लाल ने भारत की संस्कृति के संरक्षण की आवश्यकता पर बल दिया और उदाहरण के तौर पर इंडोनेशिया का उल्लेख किया, जहां उनकी संस्कृति को सहेजा गया है।
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अंत में, सत्र के अध्यक्ष अशोक सिन्हा ने आभार व्यक्त करते हुए कहा कि चित्त और मन से सीखने और सिखाने को सक्रिय रहना चाहिए, तभी अनुशासित समाज खड़ा किया जा सकता है।
समापन सत्र में वक्ताओं ने श्रोताओं के मन में उठे प्रश्नों के उत्तर दिए और उनकी जिज्ञासाओं को शांत किया। इस कार्यक्रम के संयोजन में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के उत्तराखंड और उत्तर प्रदेश के प्रचार प्रमुख कृपाशंकर, प्रेरणा शोध संस्थान न्यास की अध्यक्ष प्रीति दादू, प्रेरणा विमर्श 2024 के अध्यक्ष अनिल त्यागी, समन्वयक श्याम किशोर सहाय, संयोजक अखिलेश चौधरी, और सचिव मोनिका चौहान ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।