फीकी रही पूर्व सैनिकों की होली, कौन सुनेगा इनका दर्द

राजनीति
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महेंद्र प्रताप सिंह, वरिष्ठ पत्रकार, दिल्ली

पूर्व सैनिकों के लिए होली के रंग इस बार भी फीके रहे। क्योंकि ठीक होली से पहले 16-मार्च-2022 को आए सुप्रीम कोर्ट (supreme court) के आदेश ने पूर्व सैनिकों को निराश कर दिया। देश के 30 लाख पेंशन लेने वाले परिवारों की खुशियां मातम में बदल गई। ये तब हुआ जब कोर्ट ने वन रैंक, वन पेंशन (one rank one pension) के केंद्र सरकार (central government) के फैसले को सही ठहरा दिया।

वन रैंक, वन पेंशन को 24-अप्रैल-2014 में लागू करते समय 700 करोड़ रूपए की राशि का प्रावधान रखा गया था। लेकिन 2014 के आम चुनाव हार जाने के बाद बीजेपी सरकार ने प्रधानमंत्री के वादे के अनुसार 07-नवंबर-2015 को वन रैंक वन पैंशन  की घोषणा की जिसे 01-अप्रैल-2014 से लागू किया गया। लेकिन वह पूर्णरूप से ये वन रैंक वन पेंशन नहीं थी क्योंकि इसमें बहुत सारी खामियां थी। जिसकी वजह से पूर्व सैनिकों का गुस्सा भड़क गया और देश भर में सैनिकों ने धरना प्रदर्शन शुरू कर दिया। साफ दिख रहा था कि सेना में छोटे रैंक के लोगों के साथ अनदेखी की गई थी। सिपाही से लेकर सूबेदार मेजर तक के लोग इसके सबसे ज्यादा निकटतम हैं।

इन खामियों को दूर करने के लिए 07-नवबंर-2015 को एक ज्यूडिशियल कमेटी बनाई गई लेकिन हुआ कुछ नहीं। 9 जून 2016 को सुप्रीम कोर्ट में केस दाखिल कर दिया  गया, लेकिन कोर्ट की तरफ से 5 राज्यों  के चुनाव के बाद 16-मार्च-22 को निराश करने वाला फैसला आया। केंद्र सरकार ने पूर्व सैनिकों के साथ, जो सेना में ओ आर जेसीओ कहलाते है उनके साथ छलावा किया। क्योंकि वन रैंक वन पेंशन के साथ-साथ 7वें कमीशन में भी जवानों का वेतन, पेंशन से 2.57 से गुणा किया गया जबकि अधिकारियों को 2.81 से गुणा करके पेंशन और वेतन दिया गया है। सबसे हैरान करने वाली बात ये कि जवानों की विकलांगता पेंशन ना के बराबर है जबकि दूसरी तरफ अधिकारियों को लाखों रूपए दिये जाते हैं। ऐसे में पूर्व सैनिक देश की सर्वोच्च अदालत से इंसाफ की गुहार लगा रहे हैं। जबकि देश के प्नधानमंत्री नें सैनिकों के पक्ष में पहल करते हुए सुप्रीम कोर्ट से अपील भी की थी, उसके बाद उन्होंने गुहार भी लगाई है।

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