उद्भव त्रिपाठी, ख़बरीमीडिया
Pollution in Noida: नोएडा में प्रदूषण गंभीर समस्या बनता जा रहा है। नई रिपोर्ट के अनुसार, यहां की हवा में पीएम 2.5 का स्तर विश्व स्वास्थ्य संगठन के मानकों से 9 गुना अधिक है। इसके कारण नोएडावासियों की जिंदगी के करीब 12 साल घट गए हैं। इसके पीछे की मुख्य वजह कंस्ट्रक्शन साइटों पर धूल का प्रदूषण है।
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जिसे कम करने में प्रशासन असफल हो रहे हैं। यूनिवर्सिटी ऑफ शिकागो के एनर्जी पॉलिसी इंस्टिट्यूट ने एक रिपोर्ट जारी किया है जिसमें दावा किया गया है कि दिल्ली के बाद नोएडा में पलूशन लोगों की जिंदगी को ज्यादा प्रभावित कर रहा है।
रिपोर्ट के अनुसार यहां पर सालभर पलूशन का स्तर WHO (World Health Organization) के मानकों से अधिक है। यह रिपोर्ट एक्यूएलआई (Air Quality Life Index) के आधार पर तैयार की गई है। रिपोर्ट की माने तो नोएडावासियों ने साल 2021 में 70 और 2022 में सिर्फ 83 दिन ही शुद्ध हवा में सांस ली। ग्रैप (Graded Response Action Plan) लागू रहने के बाद भी शहर के लोग महीनेभर तक प्रदूषित हवा में सांस लेते हैं।
हरे वनों को खत्म कर कंक्रीट के जंगल हो रहे हैं तैयार
रिपोर्ट के मुताबिक, हरे वनों को खत्म कर कंक्रीट के जंगल तैयार हो रहे हैं। हवा थमने पर शहर का प्रदूषण तेजी से बढ़ने लगता है। शहर की हवा अगर WHO के मानकों के अनुसार होने पर लोगों की घटती उम्र में सुधार हो सकता है। रिपोर्ट के अनुसार पलूशन हवा में सांस लेना सिगरेट पीने से भी ज्यादा घातक है। WHO के तय मानकों के अनुसार वायु में पीएम 2.5 का स्तर कम हो जाए तो नोएडा के लोगों का जीवन बढ़ जाएगा। लेकिन नोएडा-ग्रेनो में प्रदूषण की सबसे बड़ी वजह WHO की गाइडलाइंस को नजरअंदाज कर, लगातार हो रहे निर्माण कार्य हैं।
100 से भी ज्यादा प्रोजेक्ट में काम जारी
अक्टूबर 2022 से लेकर फरवरी 2023 तक दोनों ही जगहों पर नियमों का उल्लंघन कर किए जा रहे कंस्ट्रक्शन वर्क को लेकर यूपीपीसीबी ने तीन करोड़ रुपये का भी जुर्माना लगाया। मौजूदा समय में नोएडा-ग्रेनो में 100 से ज्यादा प्रॉजेक्ट ऐसे हैं जहां निर्माण कार्य किया जा रहा है। कई जगहों पर निर्माणाधीन साइटों को कपड़े से कवर नहीं किया जाता है तो कही पर पानी का छिड़काव देखने को नहीं मिलता है।
क्या है PM 2.5
यूनिवर्सिटी की रिपोर्ट के अनुसार प्रदूषण के दौरान हवा में पार्टिकुलेट मेटर (PM 2.5) का स्तर बढ़ा होने से नोएडा के लोगों का जीवन कम हो रहा है। हवा में धूल के छोटे कणों को पीएम पीएम 2.5 कहा जाता है। इनका आकार 2.5 माइक्रोमीटर तक का होता है। प्रदूषण बढ़ने पर पीएम 10 और पीएम 2.5 की हवा में मौजूदगी सामान्य से लगभग 9 गुना ज्यादा रहती है। हवा में पीएम 2.5 की मौजूदगी 60 और पीएम 10 की 40 अंक होने पर इसकी स्थिति संतोषजनक मानी जाती है। लेकिन प्रदूषण की स्थिति में पीएम 2.5 का स्तर 500 अंक तक दर्ज किया जाता है।
प्रदूषण के कारण
-कंस्ट्रक्शन साइट पर हर वक्त उड़ती धूल पर प्रदूषण विभाग लगाम नहीं लगा पा रहा है। पानी का छिड़काव सिर्फ दिखावे के लिए होता है।
-सड़कों के किनारे धूल की समस्या तमाम प्रयासों के बावजूद खत्म नहीं हुई। सड़कों पर धूल की सफाई नियमित नहीं की जाती है। डस्ट फ्री रोड की कवायद थम चुकी है।
-पब्लिक ट्रांसपोर्ट की कमी की वजह से सड़कों पर ट्रैफिक का लोड ज्यादा है। इसकी वजह से कई प्रमुख सड़कों पर सुबह शाम जाम की समस्या बनी रहती है।
-1 अक्टूबर से शहर में डीजल जनरेटर सेट पूरी तरह से बंद हो जाएंगे। 35 हजार से ज्यादा डीजी सेट को पीएनजी और बायोफ्यूल में कन्वर्ट नहीं कराया गया है।
अधिकारियों ने क्या कहा
यूपीपीसीबी क्षेत्राधिकारी नोएडा उत्सव शर्मा ने कहा कि प्रदूषण पर रोक के लिए टीम अभी भी नियमित रूप से निरीक्षण करती हैं। निर्माणाधीन साइटों पर भी कंस्ट्रक्शन वर्क के मानकों की जांच की जा रही है। सीएक्यूएम के आदेशानुसार प्रदूषण पर नियंत्रण की सभी तैयारियां की जा रही हैं। यूपीपीसीबी क्षेत्राधिकारी, ग्रेटर नोएडा डीके गुप्ता ने कहा कि निर्बाध बिजली सप्लाई के लिए बिजली कंपनियों को नोटिस दिया गया है। डीजी सेट में बदलाव के लिए आवेदन करने पर समय से बदलाव हो रहा है। लोग आखिरी वक्त तक बैठे रहे हैं लेकिन आवेदन नहीं किया। 1 अक्टूबर से डीजी सेट का संचालन पूरी तरह से बंद रहेगा।
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