Jaypee Group के घर खरीदार यह खबर जरूर पढ़ लें
Noida News: जेपी ग्रुप (Jaypee Group) के फ्लैट खरीदारों के लिए अच्छी और राहत भरी खबर सामने आ रही है। आपको बता दें कि भारत के सबसे बड़े दिवालियापन मामलों में से एक जयप्रकाश एसोसिएट्स लिमिटेड (JAL) का जल्द ही समाधान पूरा होने की उम्मीद है। सरकार समर्थित नेशनल एसेट रिकंस्ट्रक्शन कंपनी लिमिटेड (NARCL) ने JAL के नियंत्रण के लिए 12,000 करोड़ रुपये की राशि की पेशकश कर दी है। जिसे किसी भी प्रतिस्पर्धी बोली का सामना नहीं करना पड़ा।
ये भी पढ़ेंः Gurugram: गुरुग्राम जाने वाले दें ध्यान..ये रास्ता बंद कर दिया गया है

NARCL की अनूठी पेशकश
NARCL ने लोन देने वालों को 23 प्रतिशत की वसूली का प्रस्ताव दिया है। जिसमें 15 प्रतिशत नकद और 85 प्रतिशत सरकारी गारंटी वाली सुरक्षा रसीदें शामिल हैं। यह संरचना NARCL के लिए पहली बार प्रयोग की गई है और इसे ऋणदाताओं ने स्वीकार भी कर लिया। आईडीबीआई कैपिटल मार्केट्स एंड सिक्योरिटीज (ICMS) ने बोली की समय सीमा 14 जनवरी तक बढ़ाई थी, लेकिन किसी दूसरे कारण से कंपनी ने NARCL की पेशकश को चुनौती नहीं दी। अब JAL का नियंत्रण NARCL को सौंपने की प्रक्रिया मार्च तक पूरी होने की उम्मीद है।
ख़बरीमीडिया के Whatsapp ग्रुप को फौलो करें https://whatsapp.com/channel/0029VaBE9cCLNSa3k4cMfg25
जानिए कितना है कर्ज
आपको बता दें कि नोएडा स्थित JAL समूह पर ऋणदाताओं का 57,177 करोड़ रुपये का भारी कर्ज है। जिसमें प्रमुख हिस्सेदारी भारतीय स्टेट बैंक (15,465 करोड़) और आईसीआईसीआई बैंक (10,443 करोड़) की है। यह समाधान भारतीय वित्तीय क्षेत्र में एक बड़ी उपलब्धि मानी जाएगी। क्योंकि यह काफी समय से पेंडिग दिवालियापन मामलों में से एक है। JAL के अधिग्रहण के बाद, NARCL को इसकी मूल्यवान संपत्तियों का नियंत्रण मिलेगा।
ये भी पढ़ेंः Greater Noida: ग्रेटर नोएडा से 4 स्कूली छात्र लापता..पढ़िए क्या है पूरा मामला
दिवालियापन समाधान में बड़ा कदम
JAL ने साल 2017 में आरबीआई के निर्देश के बाद दिवालियापन कार्यवाही (Bankruptcy Proceedings) शुरू की थी। लेकिन कानूनी लड़ाइयों और प्रक्रियागत जटिलताओं के कारण समाधान में देरी होती रही। NARCL का यह फैसला इस मामले में निर्णायक साबित हो सकता है। 12,000 करोड़ रुपये की यह बोली वीडियोकॉन इंडस्ट्रीज के 65,000 करोड़ रुपये के दिवालियापन मामले के बाद दूसरे सबसे बड़े समाधान के रूप में दर्ज होगी। विशेषज्ञों के मुताबिक यह अधिग्रहण भारत में उच्च मूल्य वाले संकटग्रस्त मामलों को हल करने के प्रयासों में एक महत्वपूर्ण मील का पत्थर साबित हो सकता है।

