Election Result 2024: लगातार तीसरी बार दिल्ली की गद्दी पर बैठने का सपना देख रहे नरेंद्र मोदी (Narendra Modi) को लोकसभा चुनाव 2024 (Lok Sabha Elections 2024) में बड़ा झटका लगता नजर आ रहा है। 4 जून को काउंटिंग के दौरान रुझान में बीजेपी को तगड़ा नुकसान हुआ है। देश के सबसे ज्यादा लोकसभा सीट वाले राज्य में इस बार बीजेपी को बड़ा नुकसान हुआ है। अभी तक के आंकड़े को देखें तो बीजेपी (BJP) की अगुवाई वाली एनडीए को उत्तर प्रदेश में 35 सीटें मिलती नजर आ रही हैं। वहीं समाजवादी पार्टी (Samajwadi Party) और कांग्रेस गठबंधन के खाते में 45 सीटें आ रही हैं। इनमें सपा को 35 और कांग्रेस को 6 सीटों पर बढ़त हासिल है।
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लोकसभा चुनाव के नतीजे बता रहे हैं कि NDA को सबसे ज्यादा नुकसान उत्तर प्रदेश से ही हुआ है। जहां वह सीटें बढ़ाना तो दूर की बात, अपनी सीटें पर जीत नहीं पाई है। सपा-कांग्रेस (SP-Congress) के गठबंधन ने उन्हें कड़ा मुकाबला दिया और एक तरह से हार की कगार पर लाकर खड़ा कर दिया। आइए इस खबर के माध्यम से जानते हैं कि 5 वजह वो कौन सी थी जिसे यूपी में BJP का खेल खराब किया।
कैंडिडेट सलेक्शन
लोकसभा चुनाव के शुरुआती दिनों में लग रहा था कि बीजेपी ने प्रत्याशियों के चयन में काफी गलतियां की हैं। स्थानीय लोगों के गुस्से को दरकिनार करते हुए ऐसे लोगों को टिकट दिए गए, जो मतदाताओं को शायद पसंद नहीं आए। इसलिए बहुत सारे मतदाता जो बीजेपी को वोट करते थे, वो घर से निकले ही नहीं। गलत कैंडिडेट सलेक्शन कार्यकर्ताओं को भी पसंद नहीं आया और उन्होंने मनमुताबिक काम नहीं किया। इसका नतीजा यह हुआ कि बीजेपी को मिलने वाले मत प्रतिशत में भारी गिरावट दर्ज की गई। 2019 में जहां बीजेपी को लगभग 50 फीसदी मत मिले थे। वहीं इस बार 42 फीसदी वोट मिलता नजर आ रहा है। यानी इस चुनाव में मत प्रतिशत में लगभग 8 फीसदी की गिरावट आई है।
महंगाई भी बना मुद्दा
इस चुनाव में वोटर के मन में महंगाई और बेरोज़गारी को लेकर काफी हताशा है। तैयारी कर रहे युवाओं में भी काफी नाराजगी है। गांवों में छुट्टे जानवर भी इस बार के चुनाव में काफी बड़ा मुद्दा हैं। बीजेपी के वोटर में एक चौथाई कहते हैं कि इस बार उसे वोट नहीं देंगे। सपा और कांग्रेस का वोट कायम है।
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सपा ने सामाजिक समीकरण देख उतारे प्रत्याशी
समाजवादी पार्टी पर हमेशा से ही यही आरोप लगते आ रहे हैं कि सपा सिर्फ एक समुदाय या जाति के लोगों को ही टिकट देने में वरीयता देते हैं। लेकिन इस बार अखिलेश यादव ने काफी सतर्क रहते हुए जातिगत समीकरणों को देखते हुए प्रत्याशी उतारे। यही कारण है कि उनके कैंडिडेट जमीन पर बीजेपी को जमकर टक्कर दिए। मेरठ, घोसी, मिर्जापुर जैसी सीटें इसका उदाहरण हैं। जहां अखिलेश ने सूझबूझ से एनडीए के प्रत्याशियों को फंसा दिया।
संविधान बदलने की बात ने भी दिखाया असर
लोकसभा चुनाव को लेकर पीएम नरेंद्र मोदी ने जैसे ही 400 पार का नारा दिया, बीजेपी के कुछ बड़े नेता यह दावा करने लगे कि 400 पार इसलिए चाहिए क्योंकि संविधान में बदलाव करना है। कांग्रेस और सपा ने इसे आरक्षण से जोड़कर जनता के बीच प्रचार की। साथ में यह भी दावा किया कि बीजेपी इतनी ज्यादा सीटें इसलिए चाहती है जिससे वह संविधान बदल सके और आरक्षण समाप्त कर सके। दलितों और ओबीसी के बीच यह बातें काफी तेजी से फैली और नतीजा वोटों के रूप में सामने आया। कई जगह दलित सपा-कांग्रेस गठबंधन की ओर जाते नजर आ रहे हैं।
नौकरी और पेपर लीक बड़ा मुद्दा
बीजेपी सरकार पर लगातार ये आरोप लगते आ रहे हैं कि वे नौकरी नहीं दे पा रहे हैं। बीजेपी की सरकार में पेपर लीक हो जाता है। पेपर लीक से बचने के लिए कोई पुख्ता इंतजाम नहीं किए जाते। बहुत सारे युवा सालों से प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी कर रहे हैं, लेकिन अब उनकी उम्र ज्यादा हो गई है। वे परीक्षा नहीं दे पा रहे हैं। युवाओं में यह एक बड़ा मुद्दा था। इसी कारण से जमीन पर भारी संख्या में युवा बीजेपी से नाराज दिखे।
राजपूतों की नाराजगी ने भी दिखाया असर
उत्तर प्रदेश में राजपूतों की नाराजगी भी बीजेपी को कीमत चुकानी पड़ गई। पहले गुजरात में परषोत्तम रुपाला का क्षत्रियों पर कमेंट करना एक बड़ा मुद्दा बना। जिसका आंच यूपी तक आई। इस बीच गाजियाबाद से जनरल वीके सिंह का टिकट काटना भी एक बड़ा मुद्दा बना। मतलब साफ था किसी न किसी बहाने बीजेपी को टार्गेट करना। इस बीच चुपचाप तरीके से एक अफवाह यह भी फैलाई गई कि अगर बीजेपी को 400 सीटें मिलती हैं तो उत्तर प्रदेश के सीएम योगी आदित्यनाथ को सीएम पद से भी हटाया जाएगा। इस बात को लेकर आम आदमी पार्टी सुप्रीमो अरविंद केजरीवाल ने बीजेपी पर जमकर हमला भी बोला।
पश्चिमी यूपी में लगातार कई जिलों में राजपूतों ने सम्मेलन करके कसम दिलाई गई कि किसी भी हाल में बीजेपी को वोट नहीं देना है। अगर ठीक से कोशिश की गई होती तो ये सम्मेलन को रोका जा सकता था।
मायावती के कैंडिडेट ने भी बिगाड़ दिया खेल
उत्तर प्रदेश की राजनीति में पूर्व सीएम मायावती की पार्टी बसपा भी बहुत मायने रखती है। इस बार के चुनाव में मायावती ने ऐसे कैंडिटेट उतारे, जिन्होंने सपा-कांग्रेस गठबंधन के लिए फायदे का काम किया। बीजेपी को इससे काफी नुकसान हुआ। इससे दलित वोटों में भी भारी बंटवारा हुआ। खासकर पश्चिमी यूपी में बसपा के कैंडिडेट ने बीजेपी को काफी नुकसान पहुंचाया। मेरठ, मुजफ्फर नगर, चंदौली, खीरी और घोसी लोकसभा सीटों पर इसी वजह से मुकाबला रोचक हो गया। एक कारण यह भी है कि बहुत वोटर परिवर्तन चाहते हैं। कई लोगों का ऐसा मानना है कि चूंकि अगर तीसरी पंचवर्षीय में भी आ गए तब तो तानाशाही शुरू हो जाएगी।
लोकसभा चुनाव 2024 को बीजेपी नेतृत्व ने कुछ ज्यादा ही हल्के में ले लिया। खबर लिखे जाने तक आए सभी 543 सीटों के रुझानों में एनडीए सरकार बहुमत के आंकड़े को पार कर चुकी है। रुझानों में एनडीए 270 सीटों पर आगे है। इसके साथ ही रुझानों में इंडिया गठबंधन जोरदार टक्कर दे रहा है। कांग्रेस की अगुवाई वाला इंडिया गठबंधन अब तक 251 सीटों पर बढ़त बनाए हुए है।
जानिए 2019 का हाल
आपको बता दें कि लोकसभा चुनाव 2019 में सपा-बसपा ने मिलकर चुनाव लड़ा था। इसके इसके बाद भी 16 सीटों पर ही उन्हें जीत हासिल हुई थी। वहीं कांग्रेस की बात करें तो उसको केवल 1 सीट रायबरेली ही मिल पाई थी। बीजेपी ने अपने अकेले दम पर 80 में से कुल 62 सीटों पर जीत दर्ज की थी।