Greater Noida West

Greater Noida West: ग्रेटर नोएडा वेस्ट में प्रॉपर्टी खरीदने वाले सावधान!

ग्रेटर नोएडा- वेस्ट दिल्ली NCR नोएडा
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Greater Noida West में प्रॉपर्टी खरीदने वाले हो जाइए सावधान, पढ़िए जरूरी खबर

Greater Noida West: अगर आप भी ग्रेटर नोएडा वेस्ट में प्रॉपर्टी खरीदने की सोच रहे हैं तो जरा सावधान हो जाइए। आपको बता दें कि नोएडा से लेकर ग्रेटर नोएडा कर आलीशान फ्लैट (Luxurious Flat) और उच्च स्तरीय सुविधाओं का ब्रोशर दिखाकर हजारों फ्लैट बायर्स (Flat Buyers) की जीवन भर की कमाई फंसा चुके बिल्डरों ने अब वर्चुअल प्रॉपर्टी (Virtual Property) का नया जाल बिछाया है। निवेश पर मुनाफा, महीने-तीन महीने के किस्तों में पैसा वापसी जैसे वादे कर कई बिल्डर प्रॉपर्टी बेचने के नाम पर खरीदार को फंसा रहे हैं।
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इसमें फ्लैट बायर्स (Flat Buyers) को सिर्फ कोई शोरूम या दुकान दिखाकर यह बताया जा रहा है कि इसमें उनका हिस्सा है। कितना हिस्सा है, किधर का हिस्सा है, कितने खरीदार हैं यह सबकुछ नहीं बताया जाता है। सिर्फ इतना ही नहीं इस खरीद- फरोख्त में कोई रजिस्ट्री (Registry) भी नहीं होती है। सिर्फ बिल्डर की सेल्स टीम स्टांप पर लिखित में दे रही है। कई खरीदारों की ओर से काली कमाई इस वर्चुअल प्रॉपर्टी में खपाए जाने और कैश में संपत्ति बेचने के इनपुट पर 8 बिल्डरों की जांच विभाग ने शुरू कर दी है। सूत्रों से प्राप्त जानकारी के अनुसार जिन परियोजनाओं को लेकर आयकर की जांच शुरू हुई है उसमें नोएडा में तीन और ग्रेनो में दो, यमुना प्राधिकरण (Yamuna Authority) क्षेत्र में 3 बिल्डरों की परियोजनाएं हैं। इनमें शॉपिंग मॉल (Shopping Malls), निर्माणधीन बाजार, वाणिज्यिक संपत्ति के टावर शामिल हैं।

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निवेश के नाम पर फंस रहे हैं खरीदार

आम लोगों को अपने जाल में फंसाने के लिए पहले इनमें संपत्तियों का विज्ञापन जारी किया गया। कई दुकानें, शोरूम ऐसे हैं जिनमें नामी ब्रांड भी आ गए हैं। अब खरीदने के इच्छुक लोग जब संपर्क कर रहे हैं तो एक-एक दुकान की कीमत करोड़ों में बतायी जाती है। फिर बिल्डर की संपत्ति बेचने वाली टीम के सदस्य को-शेयरिंग में संपत्ति लेने का ऑप्शन दिया जाता है। इसमें मुनाफा, निवेश के अगले महीने से मुनाफे की किश्तों में ब्याज समेत वापसी का लालच भी दिया जाता है।

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शेयरिंग करने के चक्कर में फंस रहे हैं लोग

शेयरिंग करने के चक्कर में लोग फंस जा रहे हैं। फिर किसी शोरूम या दुकान में हिस्सेदारी बताकर बिल्डर की टीम बिक्री कर रही है। इस कारण से इनकम टैक्स ने ऐसी संपत्तियों को वर्चुअल प्रॉपर्टी का नाम अपनी जांच में दिया है। विभाग के अधिकारी इस जांच को लेकर अभी कुछ भी बोलने के लिए तैयार नहीं हैं।

न प्राधिकरण की मंजूरी न ही रजिस्ट्री की आवश्यकता

बिल्डरों का इस वर्चुअल प्रॉपर्टी के खेल में चारों ओर से मुनाफा ही मुनाफी हो रहा है। नियम यह है कि परियोजना पूरी होने के बाद निर्माण पूरा होने का प्रमाणपत्र कंप्लीशन सर्टिफिकेट प्राधिकरण फिर बकाया जमा कर कब्जा देने का सर्टिफिकेट ऑक्युपेंसी सर्टिफिकेट देता है। इसके बाद रजिस्ट्री की प्रक्रिया होती है। इसके लिए स्टांप खरीदना आवश्यक होता है। लेकिन वर्चुअल प्रॉपर्टी में यह नियम और प्रॉधिकरण की देनदारी भी बाईपास हो जा रही है। बिल्डर प्राधिकरण का बकाया दिए बगैर संपत्ति से पैसा प्राप्त कर ले रहे हैं। बिल्डरों पर हजारों करोड़ रुपये प्राधिकरण का बकाया है। कई संपत्तियां फ्लैट परियोजनाओं में बन रही बाजार की भी शामिल हैं। यमुना प्राधिकरण क्षेत्र में तो एयरपोर्ट के सपने भी लोगों को दिखाए जा रहे हैं।

रजिस्ट्री जरूर करवा लें

सुप्रीम कोर्ट के वकील कुमार मिहिर के अनुसार पहले कई परियोजनाओं में फ्लैट के दोहरे आवंटन के मामले सामने आए हैं। फ्लैट में तो खरीदार को यह जानकारी रहती है कि उसने कौन सा फ्लैट खरीदा है। यहां तक आवंटन के प्रपत्र भी बिल्डरों ने दिए थे। लेकिन बिल्डर के दिवालिया होने पर नियुक्त रेजोल्यूशन प्रोफेशनल (आरपी) ने अलग-अलग परियोजनाओं में अलग-अलग फैसले लिए हैं। कई जगहों पर दोनों का आवंटन सही नहीं माना गया। कहीं पर पहले की तारीख में आए खरीदार तो कहीं पर ज्यादा पैसा देने वाले खरीदार का आवंटन सही माना गया। कुमार मिहिर बताते हैं कि ऐसे किसी लालच में आने से पहले खरीदार को सोचना होगा। अगर प्रॉपर्टी बनकर तैयार है तो भले छोटी खरीदें लेकिन रजिस्ट्री जरूर करवा लें।